दरभंगा, देशज टाइम्स। यह खबर दरभंगा के लिए कोई नई बात नहीं है। ना ही हैरानी होती है सुनकर, देखकर कि नाले में नवजात की लाश बह रही हैं। वह भी वहां जब नवजातों की जिंदगी महफूज रहती है, यानी डीएमसीएच का वह ईदगिर्द इलाका।
मगर, यह सीधा डीएमसीएच प्रशासन की लापरवाही कहें तो थोड़ी अतिशियोक्ति होगी। कारण, डीएमसीएच में मरने वाले बच्चों के साथ उनके परिजनों का पूरा चावल, दाल, छोटा गैस सिलेंडर, कपड़ों की एक पूरी बस्ती साथ में चलती है। यह बस्ती इलाज कराने जिले के अंदर के दूर-दराज से या बाहर के जिलों से यहां आकर रूकती है, यहां खाना बनाती है। इलाज करवाती है। या तो जिंदगी चुनकर ले जाती है, या मौत को गले लगाकर रूखसत हो जाती है।
हां, कभी-कभी मौत पर बवाल जरूर होते देखा है। परिजन और डॉक्टर भी भिड़े हैं। इसमें गलती किसकी, इसपर विचार की जरूरत। कारण, डॉक्टर धरती के भगवान होते हैं। ऐसे में उनसे उलझना, कतई सही नहीं। मगर, अपनों को खोने के बाद आपा खोना सामान्य मनोविज्ञान है। इसे भी समझना होगा।
यह भी सबसे खास है, आखिर ये बच्चे जो लाश बनकर तैरते मिलते हैं, इनका कसूर क्या है। क्या ये इलाज के बिना मरे, या ये मारे गए। मारे गए तो इन्हें फेंकना मजबूरी थी। अगर, खुद बीमारी से लड़े, मरे तो इनका उचित संस्कार होना चाहिए था।
मगर ऐसा कब होगा? अवैध संबंध में, नाबालिग मां जब बच्चे को जन्म देती है। या फिर बेटी होने पर ताने सुनती एक मां खुद की कोख उजाड़ने पर मजबूर होती है तो यह दिखता है। दिखता रहा भी है। यह दिखता भी रहेगा।
कारण, समाज के भीतर की मनोदशा, उसका स्वभाव, ऐसी स्त्रियों पर तानों के ऐसे प्रप्रंच रचती है, मन खुद उद्देलित हो उठता है। खुद से सवाल करने लगता है, फिर सामने आता है, मां का एक विभत्स रूप जिसे कलयुगी, घिनौनी हरकत वाली हम मान लेते हैं। मगर, उसकी मजबूरी, उसकी जरूरत, उसकी दैहिक-लाजिक शर्म पर नहीं सोचते।
किसी को दोषी तत्काल मान बैठना हमारी नियति में है। समाज यही करता आया है। बिना सोचे, एकतरफा फैसला लेना सामाजिक चिंतन से दूर है। बस, इसी मानसिकता की आड़ में जन्मता है ऐसी नालों में बहती बेमौत जिंदगी जो अपने पीछे कई सवाल, कई दौर की चर्चाओं का लंबी फेहरिस्त छोड़ जाता है।
ऐसे में, उत्तर बिहार के सबसे बड़ा अस्पताल DMCH से लापरवाही और इंसानियत को शर्मशार कर देने वाला जो दृश्य दिखाया जा रहा है वह वास्तव में डीएमसीएच की परछाईं है इस पर यकींन करना उतना ही मुश्किल, जितना यह जान लेना कि डीएमसीएच के ईद और उसके गिर्द कुकरमुर्तें वाली पूरी औषधिय झुंडों में समेटे नर्सिंग होम की गंदगी का लजीज दृश्य भी हमारे बीच है।
बात वही हो जाती है। प्रशासन को दोष देना आसान है। मगर, वास्तविकता को सहेजना, उसे दिखाना और लिखना, इसमें हम बिना पड़ताल किए ही लिखते हैं, यह दृश्य जिसने भी देखा उसका मुंह खुला और आंखें फटी रह गईं।
दरअसल, DMCH के गायनिक विभाग के सामने वाले नाले में एक नवजात शिशु का शव तैरता दिखा। यह वास्तव में गायनिक में जन्मे नवजात का है। अगर हां, तो उसका कहीं ना कहीं कोई लिखा वाक्य अस्पताल प्रशासन की मोटी फेहरिस्त में जरूर दर्ज होगा।
हम सिर्फ इसी आधार पर इस नवजात को डीएमसीएच से जोड़ रहे जहां मामला DMCH परिसर के सटे होने का है जहां शुक्रवार की सुबह गायनिक विभाग के सामने वाले नाले में एक नवजात बच्चे का शव तैरता दिखा।
बाद में पुलिस के साथ अस्पताल प्रशासन का वहां पहुंचना। बेंता थाना की तहकीकात। शव को नाले से बाहर निकलवाने और मामले की जांच में जुटती पूरी पुलिसिया टीम किस निष्कर्ष पर निकलेगी यह बताना फिलहाल मुश्किल है।
अस्पताल के उपाधीक्षक हरेंद्र कुमार की बातों पर गौर करें तो उन्होंने भी कहा कि मुझे इसकी सूचना मिली है। लेकिन यह हमारे यहां का बायो मेडिकल वेस्ट नहीं है।
हमारे यहां हॉस्पिटल का बायो मेडिकल वेस्ट पॉलिथीन में अलग से पैक करके रखा जाता है,जिसे एजेंसी के लोग यहां आकर ले जाते हैं और डिस्पोज करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह कहीं ओर से शव को लाकर यहां फेंक दिया गया होगा। इसमें सच्चाई है और इसकी बारीकी पुलिसिया जांच होनी चाहिए।
ऐसे में, यहां सिस्टम की लाश मैं क्यों कह रहा। कारण है, यह दोष अकेला डीएमसीएच का नहीं है। यह दोष पुलिस का नहीं है। यह खुले नालों का नहीं है। यहां चाहकर भी डीएमसीएच प्रशासन कुछ कर नहीं सकता। पुलिस की भी अपनी सीमा है।
सवाल उस व्यवस्था का है उस पूरे सिस्टम का है जिसमें समाज भी घेरे में है। समाज का हर नागरिक उसकी परिधि में है। दोष सीधा मढ़ देना, किसी को नीचा दिखाना, बात उससे कतई आगे है। जरूरत है एक मुक्ववल निर्माण की, जिससे यह दृश्य ना देखना पड़ा। किसी मां को कलयुगी कहने की नौबत ना आए क्योंकि…
अंत में इतना भर, मां… जिंदगी का विश्वास होती है, मां जीवन का संबल होती है, मां जीवन का सराहा होती है, वो छोड़ती नहीं, क्योंकि …एक मुद्दत से मेरी मां नहीं सोई…मैंने इक बार कहा था-मुझे डर लगता है।