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23 फ़रवरी, 2024
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Darbhanga में मधुश्रावणी, सिया पावइन पूजू आइ… महिला ही पुरोहित, नवविवाहिता ही यजमान, 1 महीना 12 दिनों की बिना नमक वाली कठिन व्रत…संकल्प यही, पति के लिए… गौरी हम पूजब हे

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सतीश झा, बेनीपुर, देशज टाइम्स। मिथिला में नव विवाहित ललनाओं का प्रसिद्ध लोक पर्व मधुश्रावणी शुक्रवार को नागपंचमी के साथ प्रारंभ हो गयी है। इस बार श्रावण महीना दो महीने का होने के कारण यानी मलमास और श्रावण मास दो महीना होने के कारण यह पूजा इस बार 1 महीना 12 दिन तक नवविवाहिताएं करेंगी।

यह पूजा नवविवाहिताएं श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की नागपंचमी से शुरू हो रहे इस पर्व का समापन 19 अगस्त को द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को टेमी व गौरी पूजन के साथ खत्म होगा जहां नवविवाहिताओं की ओर से किया जाने वाला इस मधुश्रावणी पूजा का समापन हो जाएगा।

एक संध्या भोजन कर पूरे नियम निष्ठा के साथ टेमी दागने की प्रथा के साथ यह पर्व सम्पन्न होगी। शुक्रवार से प्रारंभ हुए इस पर्व को लेकर मिथिलांचल का बाग बगिया ललनाओं के कलरव से गुंजायमान होने लगी है।

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नवविवाहित ललनाऐं एवं उनके सखी सहेली की ओर से सुबह से चुनकर लाई गई फूल को किसी धार्मिक या सामाजिक स्थल पर पहुंचकर झुंड में रंग-बिरंगे परिधानों में सजधज कर गीत गाती हुई फूल के डलिया को सजाती है जो अपने में आप में एक मनमोहक छटा बिखेर रही है।

इस पर्व की यह मान्यता है कि जो नव विवाहित कन्या विवाह के प्रथम वर्ष पांचों बहन नाग देवता का पूजन करेंगी वह और उनकी पति जीवन भर नाग देवता के कोप से वंचित रहेगी। इस पर्व के महता को देखते हुए इसका विधि विधान बहुत ही निष्ठा पूर्वक की जाती है।

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इस दौरान नवविवाहिता अपने ससुराल से आये अन्न, जल, बिना नमक के एक संध्या ही ग्रहण करती है। और इस पर्व की दो प्रमुख विशेषता है कि प्रथमत: एक दिन पूर्व चुने गये बासी फूल पती से नाग देवता की पूजा की जाती है।

दूसरी, इस पूजा के पुरोहित भी गांव की कोई बुजुर्ग महिला ही होती हैं। इस पूजा के संबंध में संबंध में किम्वदन्ति है कि जब माता पार्वती भगवान् शंकर के कथित पुत्री को कीङा मकोङा समझ पाॅव से कुचलने लगी तो भगवान् शंकर ने पार्वती को उनकी ही पांचों पुत्री के रुप में परिचय करवाते हुए कहा कि यह पांचों बहन नाग देवता हैं।

कलियुग में जो नवविवाहिता श्रावण शुक्ल पक्ष में इनका पूजा-अर्चना करेंगी। उसका पूरा परिवार आजीवन सर्प दंश से वंचित रहेगा। वैसे इस वर्ष मलमास या अधिमास के कारण यह पर्व मात्र चौदह दिन न होकर बीच में ही 17 जुलाई से रुककर पुन: 17अगस्त को चालू होगी। इसका समापन 19 अगस्त को टेमी दागने की परंपरा के साथ सम्पन्न होगी।

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