आज मिथिला के पास क्या नहीं है। मगर, हनुमान की चाहत आज भी अधूरी है। भले, अमित शाह सनातन धर्म और भारत-इंडिया के विवादों के बीच मिथिलांचल की मर्यादा को समेटने झंझारपुर आ रहे हैं।
अमित शाह का यहां आना कई इशारे भी कर रहा है। मगर, सवाल की शुरूआत उसी हनुमान के मिथिला से, जिसके पांच भगिने आज भी सक्षम, पूर्ण समर्थ हैं, मिथिलांचल की धरती को परिपूर्णता, संपूर्णता देने में।
भले, मिथिलांचल का यह झंझारपुर सीट भी अगड़ी जाति को साधने की कोशिश भर हो। या, पिछड़े और अतिपिछड़े बहुल सीट से संपूर्ण मिथिलांचल को साधने की कवायद। मगर, इतना तय है, अमित शाह की झंझारपुर में आज की रैली के मायने और उसके रास्ते मिथिला की माटी, यहां की जरूरत, यहां की उपयोगिता पर बहस के बीच, उसी के ईद-गिर्द घूमेगा, सिमटेगा, यह भी तय है।
कारण, उस मिथिला का गान रैली की शान में जरूर समाहित होगा, जिसके पास खेत भी है। खलिहान भी। दलान भी है। स्वर्ग के बाद सिर्फ मिथिला के पास ही मखान भी है।
राजनीतिकरण के उलझते परत में बीपीएससी और प्राथमिक शिक्षा से मैथिली को दरकिनार करने से लेकर, जो मिथिला कभी देश की मान्यता को खुद में समेटे संपूर्ण देश था, उसके सांगठनिक शक्ति का यूं विखंडन, खंड-खंड विभाजित होकर सामने हताश देखना, सालता है। हम आज के बीजेपी के संकटमोचक अमित शाह के झंझारपुर आने का विश्लेषण करेंगे। मगर बात मिथिला की ही करेंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में इस झंझारपुर सीट पर जदयू के उम्मीदवार रामप्रीत मंडल ने जीत हासिल की थी। लेकिन, जदयू के एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने का असर इस सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को जरुर मिलेगा।
जातीय समीकरणों के आधार पर देखें तो राजद और जदयू के साथ होने से महागठबंधन को यहां मजबूती मिलेगी। क्योंकि, यह पिछड़ा और अतिपिछड़ा बहुल सीट है। ये भी देखना खास अलगे चुनाव में भाजपा इस सीट पर चुनाव लड़ेगी। या, फिर अपने सहयोगी दल के भरोसे ही अपनी किस्मत आजमाएगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में इस झंझारपुर सीट पर जदयू के उम्मीदवार रामप्रीत मंडल ने जीत हासिल की थी। लेकिन, जदयू के एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने का असर इस सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को जरुर मिलेगा।
जातीय समीकरणों के आधार पर देखें तो, राजद और जदयू के साथ होने से महागठबंधन को यहां मजबूती मिलेगी। क्योंकि, यह पिछड़ा और अतिपिछड़ा बहुल सीट है। ये भी देखना खास अलग है, चुनाव में भाजपा इस सीट पर चुनाव लड़ेगी या फिर अपने सहयोगी दल के भरोसे ही अपनी किस्मत आजमाएगी।
अमित शाह का यहां आना, सनातन से लेकर भारत तक की बातों की अगली फेहरिस्त है। लेकिन, यह भी तय है, शाह का लक्ष्य लोकसभा चुनाव का गणित देखना है। लोगों को दिखाना-जताना है। अमित शाह की रैली मिथिलांचल में झंझारपुर सीट पर अगड़ी जाति को साधने की कोशिश के रूप में भी देखी जा रही है।
शाह का ताजा दौरा मिथिलांचल की राजनीति को नया मोड़ देने वाला साबित हो सकता है। अमित शाह का यह बिहार का छठा और सीमांचल क्षेत्र का बीते एक साल में दूसरा दौरा होगा।
अररिया में अमित शाह का पहली बार आगमन हो रहा है। इससे पहले सितंबर 2022 में उन्होंने पूर्णिया और किशनगंज जिले का दौरा करते हुए लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी के चुनावी प्रचार का शंखनाद किया था।
इसके बाद अलग-अलग समय में उन्होंने सिताब दियारा (छपरा), वाल्मीकिनगर, पटना, नवादा और लखीसराय में जनसभाएं कीं। सीमांचल में पूर्णिया एवं किशनगंज के बाद अब वे अररिया जिले का दौरा करेंगे। हालांकि, उनका यह कार्यक्रम पूरी तरह सरकारी है।
मगर, मिथिला, यहां के लोगों की जरूरत बिहार की सत्ता की ओर दलगत धकेलती है। ऐसे, भी भाजपा हमेशा से छोटे राज्यों के गठन का पक्षधर रही है। वैसे भी, छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा, हमेशा बीजेपी में स्थायीत्व पाता रहा है। कांग्रेस का भी कन्सेप्ट कमोबेश यही था। छोटा परिवार सुखी परिवार। यानि, नारा भी, छोटा राज्य, सुखी राज्य। मगर, छोटे राज्यों का गठन भाजपा सरकार में ही हुआ। उत्तराखंड, तेलांगाना, आंध्रा, बोडो सब भाजपा सरकार में ही पृथक अस्तित्व में आए।
इन राज्यों के गठन में परिणाम भी अगल-अलग आए हैं। कोई राज्य भाषा के आधार पर बनें। तो, किसी राज्य के गठन में परिसीमन का आधार मुखर रहा। मिथिला कभी देश हुआ करता था। और, आज यह सैकड़ों वर्षों से पृथक राज्य के डिमांड में तरबतर है। समय- समय पर भाजपा की ओर से आने वाले बयानों से भी पृथक मिथिला राज्य के गठन को अ-परोक्ष बल मिला है। अब तक, मिथिला राज्य नहीं बन पाने और इस आंदोलन के मुखर नहीं होने का कारण, यहां के विभिन्न नेताओं का अलग-अलग टुकड़ों में बंटा होना भी रहा है। इससे, मिथिला के सांगठनिक शक्ति का विखंडन होता रहा। और, इस वजह, ये शक्तियां राजनीतिक रूप से अलग इस्तेमाल होने को मोहताज रहे।
अब यहां देखने वाली बात यह है, कई दशक तक मैथिली को संविधान के आठवीं सूची में शामिल करने के लिए कई दशक तक मिथिलासेवी आंदोलनरत रहे। 2003 में वाजपेयी सरकार में इसे स्थान मिला। लेकिन, जब अगली बार लोकसभा चुनाव हुए तो मिथिला से भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया। लिहाजा, जो गति मिलनी चाहिए थी, वह मिथिला के पूर्ण आवरण उसके सामुच्य के लिए, संभव हो ना सका।
अष्ठम अधिसूची में इसे पूर्व बीजेपी के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने शामिल किया था। इसे याद करते हुए विद्यापति सेवा संस्थान के संस्थापक महासचिव और अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समित के अध्यक्ष बैद्यनाथ चौधरी बैजू भावुक हो उठते हैं। कहते हैं, वाजपेयी जी ने उनसे पूछा था, हनुमान अब तो मिथिला राज्य नहीं मांगोंगे। बीजेपी के प्रधानमंत्री वाजपेयी और तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी से बैजू बाबू ने कहा था, हुजूर, एक साथ दे ही दिया जाता तो आगे इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।
इस क्षण को याद करते हुए, मौजूदा भारत-इंडिया के बीच बंटते देश के बीच मिथिला राज्य की जरूरत और बीजेपी से अपेक्षा के बीच बैजू बाबू बताते हैं, मोदी सरकार से दस करोड़ मिथिलावासी पृथक मिथिला राज्य गठन की अपेक्षा रखते हैं।
विद्यापति सेवा संस्थान के संस्थापक महासचिव और अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समित के अध्यक्ष बैद्यनाथ चौधरी बैजूने कहाइतिहास गवाह है कि मिथिला के जनमानस के मन मस्तिष्क पर संतुष्टि और सम्मान का भाव जगाने में भाजपा सरकार की अहम भूमिका रही है।
अटल विहारी वाजपेयी की सरकार में जनक-जानकी, आज्ञेय, मैत्री, मंडन भारती, गार्गी समेत करोड़ों मैथिलों की मां की भाषा मैथिली को आठवीं अनूसूची में शामिल कर सम्मानित तो किया गया। मगर, आज के मौजूदा समय में, संपूर्ण मिथिला को नरेंद्र मोदी सरकार से जायज अहर्ता हासिल करने की उम्मीद है। मिथिला राज्य का गठन उनके शासन में अवश्य संभावी है, क्योंकि वह भी छोटा राज्य सुखी राज्य के पक्षधर हैं।
विद्यापति सेवा संस्थान के संस्थापक महासचिव और अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समित के अध्यक्ष बैद्यनाथ चौधरी बैजूने कहाजहां तक भारत और नेपाल में अस्थापित पूर्व मिथिला के संरक्षण की बात है, तो भारत और नेपाल की मिथिला भले नक्शे में अगल हो लेकिन इन दोनों के बीच रोजी-रोटी का संबंध अभी भी कायम है।
और, भारत और नेपाल में रहने वाले मैथिलों के बीच में एक दूसरे से अलग होने का भाव कभी भी नहीं जगता। अगर, पृथक मिथिला राज्य के गठन के समय नेपाल अधिकृत पूर्व मिथिला क्षेत्र को भी एकत्रित किया जाए, तो अंतरराष्ट्रीय संबंध की एक नई परंपरा जीवंत हो सकेगी।
नेपाल अधिकृत पूर्व मिथिला क्षेत्र, जनकपुर, पूर्व मिथिला मधेश में रहने वाले लोग जिनकी भाषा, संस्कार और संस्कृति आज भी मैथिली ही है, उनको समेट कर एक नई परंपरा को जीवंत किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय संबंध के एक नई परंपरा की वृहत शुरूआत की जा सकती है।