मई,18,2024
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चांद देखने की मनाही भी, पूजा का विधान भी उसी चांद की

चौठचंद्र (चौरचन) मिथिला का एक ऐसा त्योहार, जिसमें समाहित है, भाद्रपद का माह, शुक्ल पक्ष और उसकी चतुर्थी तिथि। चंद्र दोष से मुक्ति का महापर्व, संपूर्ण अनुष्ठान, दही सी सफेदी, मिथिला की खुशबू ठकुआ, पिरकिया भी...।

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चौठचंद्र (चौरचन) मिथिला का एक ऐसा त्योहार जिसमें समाहित है, भाद्रपद का माह, शुक्ल पक्ष और उसकी चतुर्थी तिथि। चंद्र दोष से मुक्ति का महापर्व। जहां, चांद को देखना पूरी तरह से मनाही है, लेकिन चांद की पूजा का विधान भी। कच्चे चावल को पीसकर बनाई जाने वाली अरपन हो या फिर दही की छांछ। मिथिला ही एक ऐसा देश है जहां प्रकृति से जुड़ी हर पावनि, हमें नतमस्तक कराता है…पढ़िए रितेश कुमार सिन्हा की यह रिपोर्ट… 

मिथिलांचल के संस्कृति में प्रकृति पूजन का बड़ा ही महत्व है। मिथिलांचल के लोग जल, अग्नि से लेकर सूर्य और चंद्रमा तक की पूजा यहां लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है।

बिहार में डूबते सूर्य और उगते सूर्य को छठ के मौके पर पूजा करते हैं, लेकिन मिथिलांचल में चौरचन (चौथ ) के मौके पर कटे हुए चांद की पूजा महिलाएं किया करती है। जहा एक तरफ ऐसी मान्यता है जब पूरा देश कटे हुए चांद को देखने से परहेज करता है।

उस समय भादो की चौथ के दिन मिथिलांचल के लोग कटे हुए चांद को देखकर जलार्पित कर पूजा करता है। धार्मिक मान्यता बताकर यहां के ब्राह्मण सनातनी लोगो को भादो की चांद देखने से रोका जाता है।

लेकिन इस दिन मिथिलांचल के सभी जाति के लोग छठ के समान अपने आंगन में कटे हुए चांद को निकलने का इंतजार करते हैं। जब चांद को देख लिया जाता है उसकी न सिर्फ पूजा करते बल्कि रात के में लोग पूरे विधि विधान के साथ चांद को अर्घ देते है और अच्छे फलों की कामना करते है।

इस वर्ष यह पर्व मिथिलांचल में 18 सितंबर सोमवार को मनाया जाएगा। जिसको लेकर यहां की महिलाओं ने तैयारी शुरू कर दी है। व्रती रूबी झा कहती है कि हमलोग इस पर्व को छठ पर्व की शुरुआत के रूप में देखते है।

उनका कहना है इस चौथ चंद्र में हमलोग चांद के निकलने की फल फूल और प्रसाद हाथों में लेकर चंद्रमा से दर्शन देने की गुहार लगाते है। जब वह दर्शन देते है तो हमलोग उन्हें दूध का अर्घ देकर पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

इस लोक पर्व छठ की तरह की चांद निकलने का बड़ा ही महत्च है। शाम को जब चाँद निकलने में देर होती है तो व्रती अपने हाथों में बने प्रसाद खीर पूरी लेकर चांद से मिन्नत करती है कि आप जल्दी से निकलिए और हमारी पूजा को स्वीकार करिए।

अब मिथिला के इस लोकपर्व को लोग देश के विभिन्न हिस्सों में मिथिला समाज के लोग करने लगे है, जिस कारण अन्य लोगो ने भी पर्व के प्रति जिज्ञासा बढ़ी है। लोग अब इसके महत्व को जानने की कोशिश करने लगे है।

यह पर भादो तिथि को मिथिलावासियो के हर आंगन में सुबह से पकवानों का बनाना शुरू हो जाता है। कहा जाता है इस दिन का पकवान खाना अनिवार्य होता है इस दिन इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति इस प्रसाद को ग्रहण करने से वंचित न रह जाय। इस कारण से रात को चांद को अर्घ देने के आस परोस में प्रसाद को बांटा जाता है।

भादो मास के चौथ के दिन कटे हुए चांद को निकलने को लेकर एक पौराणिक कथा है। पंडित परमानंद झा कहते है को इसकी कथा गौरी पुत्र गणेश से सम्बंधित है। पुराण में वर्णित कथा में कहा गया है कि गणेश कही से चलकर आने के दौरान वह गिर गए।

उनके गिरते ही चंद्रमा हंस दिए इस पर गणेश जी ने श्राप दे दिया जिससे चांद की खूबसूरती गायब को गायब कर दिया। गणेश जी कहा कि आज के दिन जो भी तुनको देखेगा उसे चोरी और झूठ का कलंक लगेगा। इस श्राप से कृष्ण भी नही बच पाए उन्हें भी दिव्य मणि चुराने का आरोप झेलना पड़ा था। इस कारण मिथिला के लोक इस कलंकमुक्ति पर्व मानकर इसे मनाते हैं।

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