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24 नवम्बर, 2024
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Darbhanga का गोनू ग्राम, झिझिया…यह नाच नहीं, हमारी संस्कृति-धार्मिक विरासत की भित्ति चित्र है…तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझिया बनलियैयो

क्या कहती हैं सिंहवाड़ा के भरवाड़ा की फूलों देवी, इंदु देवी, फुल कुमारी। गीत-नृत्य में ब्रह्म बाबा से भरोसा भी है तो, जीवन को थाह लेने की प्रवृत्ति, धार्मिक पथ पर चलने का मार्ग जोड़ती... गोनू ग्राम के लोगों की यह कोशिश, DeshajTimes.Com का सलाम है, उन देवी तुल्य महिलाओं को जिन्होंने हमारी नैतिकता, उद्देश्य, स्थिरता को जीवित रखने का बीड़ा उठा रखा है...

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दरभंगा के सिंहवाड़ा, उसी का भरवाड़ा, विराजता गोनू ग्राम और वहां की झिझिया…।यह नाच नहीं, हमारी संस्कृति-धार्मिक विरासत की भित्ति चित्र है…।तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझिया बनलियैयो। इस गीत में भरोसा भी है तो जीवन को थाह लेने की प्रवृत्ति, वही भरोसा भी। यह परंपरागत झिझिया नाच हमें हमारी उन विरासत से रूबरू कराती हमें धार्मिक पथ पर चलने का मार्ग जोड़ती है, जहां से भटकने की प्रवृत्ति समाज ने पुरजोर तरीके से सीख लिया है। फिर से जीवित करने की कोशिश में जुटे गोनू ग्राम के लोगों की यह कोशिश, देशज टाइम्स का सलाम है उन देवी तुल्य महिलाओं को जिन्होंने इसे जीवित रखने का बीड़ा उठा रखा है, बस सहयोग और सानिध्य की जरूरत है। पढ़िए रितेश कुमार सिन्हा की यह रिपोर्ट…

 

दरभंगा का संपूर्ण धरा, मिथिलांचल में दुर्गापूजा हो और झिझिया नाच न ही ऐसा नही सकता है। लेकिन अब ये पम्परा मिथिलांचल से विलुप्त सा हो गया है। झिझिया नाच एक ऐसी परम्परा रही है जो महाअष्टमी की रात (निशापूजन) के दौरान इस नाच की विधा रही है। जो अब मिथिलांचल से लगभग पूरी समाप्त होकर कुछ मंचो तक सीमित होकर रह सा गया। ये एक ऐसी विधा थी कि झिझिया नाच देखने के लिए लोगो की आंखे दुर्गा पूजा का इंतजार रहता था।

इस वर्ष बजी दुर्गा पूजा की रौनक बढ़ती जा रही है। सिंहवारा प्रखंड के भरवारा बाजार स्थित एक पूजा पंडाल में शाम होते ही महिलाएं गली-गली से अपने सिर पर झिझिया का घड़ा सर पर रखकर भक्ति भाव से नाचते गाते पूजा पंडाल तक पहुंच रही है। झिझिया नृत्य को देखने के लिए सड़कों एवं पूजा पंडालो में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है।

तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझिया बनलियै यो

दुर्गा पूजा के मौके पर दशहरा के समय सज धज कर महिलाएं सिर पर झिझिया का घड़ा रखकर तोहरे भरोसे ब्रह्म बाबा झिझिया बनलियै यो गीत गाते हुए सड़कों पर निकलती है तो यह मरोरम दृश्य देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट जाती है।

झिझिया के निर्माण में लगी रीता देवी, समुद्री देवी, रामदुलारी आदि महिलाओं ने बताया कि झिझिया तीन से पांच मिट्टी के घड़ो का बना है। घड़ो में बड़ी संख्या में छिद्र कर झिझिया के लिए तैयार किया जाता है। एक पर एक ऊपर नीचे रख घड़े में दीपक जलाकर मां भगवती की आराधना की जाती है माना जाता है कि झिझिया को सिर पर रखकर जिन सड़कों से लोग निकालते हैं वहां की आसुरी शक्ति का नाश होता है। शांति, सद्भाव एवं समरसता बनी रहती है।

ग्रामीणों ने बताया कि गोनू ग्राम भरवाड़ा में अपनी संस्कृति और संस्कार लौटने लगे हैं। यही कारण है कि बारह वर्षों के बाद पंचायत में पिछले वर्ष पुरजोर ढंग झिझिया उत्सव फिर से शुरू किया गया है। स्वर्णकार संघ के अध्यक्ष शंभु ठाकुर, बालबोध शाह आदि ने बताया कि दुरआत्माओ पर विजय का प्रतीक यह उत्सव समाप्त हो रहा था। विकास के इस दौर में हम अपनी संस्कृति को सहेजने की फिर से कोशिश कर रहे है। झिझिया लेकर निकली फूलों देवी, इंदु देवी, फुल कुमारी आदि ने बताया कि हमलोगों की अनदेखी के कारण मिथिला से कई पर्व एवं उत्सव विलुप्त हो रहे हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि वाकपटुता के धनी गोनू झा एवं गुनी गरबी दयाल के समय झिझिया उत्सव अपने परवान पर था। कोलकाता, पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदार, झाल, करताल के साथ गोनू झा के समकालीन माने जाने वाले गुनी गरबी दयाल के गहवर पर तंत्र सिद्धि के लिए पिछले वर्षों तक पहुंच रहे थे। गहवर के जमीन के विवाद के बाद यह सिलसिला थम सा गया।

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