Two Tier Journalism| विभाजन की फाड़, दो पाट, पत्रका रिता… चुनाव…लोकतंत्र… राजनीतिक खिलाड़ी | यही काठ के घेरे में है। मिट्टी की चूल्हे पर यही पक रही। उबलते पानी में यही खौल रहा। आखिर…मीडिया क्या देखता है। उसे दिखाई क्या दे रहा। क्या लिखना है। लिखा क्या जा रहा। क्या सोच होनी चाहिए। आज क्या सोचता है। यह सवाल, आग से उपजी वह राख के मानिंद है, जहां सिर्फ तपिश ही बची मिलती है। उसका कोई निराकरण नहीं। वजह भी है। मीडिया के चरित्र पर सवाल उसे दोषमुक्त नहीं होने देंगे।
Two Tier Journalism| देखिए ना, हवा देश की कैसी बयार में है।
देखिए ना, हवा देश की कैसी बयार में है। अब तो, दूरदर्शन भी चीखने लगा है। वजह साफ है, नीर की धार जिस करवट बहेगी, आवेग उसी तरफ उद्देलित होंगे। अपनी सोच है नहीं। थोपी हुई विषाक्त मानसिकता से जब शब्द उकेरेंगे। बाजीगरी कहां से आएगी। वह अलंकार कहां से फूटेगा। वह तमंगा कहां से जड़ेगा। आप लोकतंत्र जीवत रखना चाहते हैं। पूर्ण मारना चाहते हैं। या अचेतावस्था में उसे छोड़ देना चाहते हैं। यह प्रवृत्ति घातक है, जहां आज पत्रकारिता का बेपर्द आवरण दो लपटों से घिरा है। देसी और विदेशी। देसी पत्रकारिता में कई तरह की बीज हैं।, कोई शुद्ध जमीनीं, कोई मिट्टी से निकली। या, एक वर्ग जहां, कोई भी पत्रकारिता का कलम थाम सकता है। हजार टके की माइक खरीद सकता है। रिपोर्टर होने का तमंगा हासिल कर सकता है।
Two Tier Journalism| जहां अक्षर का ज्ञान होना किसी अनिवार्यता के साथ खड़ा नहीं मिलता।
और, हद यह, समाज का अधिकांश ही नहीं करीब-करीब सामुच्य इन्हीं शुद्ध जमींनी को ही पत्रकार मानते, उनकी मान-मर्यादा में लिप्त हैं, जहां अक्षर का ज्ञान होना किसी अनिवार्यता के साथ खड़ा नहीं मिलता। इन्हीं दो श्रेणी की ओर बढ़ता देसी और विदेशी पत्रकारिता की धार कहां जाकर थमेगा, रूकेगा, कहना-समझना मुश्किल। जहां, देसी और विदेशी पत्रकारिता दो पाटों में है। विभक्त है। दोनों मेंं मगर एक समानता स्पष्ट है। दोनों पहले निष्कर्ष निकालते हैं, बाद में उसकी पुष्टि करते हैं…वैसे आज यह विमर्श का मंच वहां से जहां …
Two Tier Journalism| देश के नामचीन पत्रकार प्रभु चावला का आलेख छपा है…
आज एक हिंदी के प्रसिद्ध अखबार में, देश के नामचीन पत्रकार प्रभु चावला का आलेख छपा है…। यहां उसी की विवेचना उन्हीं के शब्दों में करने की कोशिश है…, जहां निश्चत तौर से सरकार विदेशी मीडिया की रिपोर्टिंग से असहज है। सरकार मानती है। यह रिपोटिंग तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। पश्चिमी मीडिया इन दिनों मोदी सरकार के लिए कभी दबंग शासक, तो कभी तानाशाह जैसे संज्ञाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। न्यूयार्क टाइम्स, गार्डियन, इकोनॉमिस्ट, फाइनेशियल टाइम्स, एलए टाइम्स, रॉयटर, ला मोंद, टाइम ओर ब्लूमवर्ग से चुनीं गईं खबरें मोदी के प्रति नफरत और भारतीय संस्थानों के प्रति नफरत दिखा रहा।
Two Tier Journalism| ये शीर्षक भारतीय चुनाव में पश्चिमी मीडिया की बहुत ज्यादा दिलचस्पी को
ये शीर्षक भारतीय चुनाव में पश्चिमी मीडिया की बहुत ज्यादा दिलचस्पी को हमेशा घरेलू मामलों में दखल के तौर पर देखा गया है जहां, भारत का मोदीकरण लगभग पूरा-टाइम। असंतोष का अवैध बनाने से लोकतंत्र को नुकसान-गार्डियन, प्रगतिशील दक्षिण द्वारा मोदी का अस्वीकार-ब्लूमबर्ग, मदर ऑफ डेमोक्रेसी की हालत ठीक नहीं-फाइनेशिंयल टाइम्स, मोदी के झूठों का मंदिर न्यूयार्क टाइम्स, भारतीय लोकतंत्र नाम मात्र का- ला मोंद, मोदी का अनुदारवाद भारती की आर्थिक प्रगति को बाधित कर सकता है-इकोनॉमिस्ट, भारत में लोकतंत्र में कमी को देखते हुए पश्चिम अपने संबंधों की समीक्षा कर सकता है-चैथम हाउस, मोदी और भारत के तनाशाही की ओर अग्रसेर होने पर बाइडेन चुप क्यों हैं-एलए टाइम्स….जब लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ऐसी बातें लिख रहे थे, तो भारत में कार्यरत विदेशी पत्रकार भी इससे जुड़ गए।
Two Tier Journalism| विदेश मंत्री जयशंकर कहते हैं,
स्वभाविक है, सरकार इस विदेशी मीडिया की रिपोटिंग से असहज है। विदेशी पत्रकार रिकॉर्ड जीडीपी वृद्धि के बाद भी भारत के गर्त में जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यही वजह है विदेश मंत्री जयशंकर कहते हैं, विदेशी मीडिया को लगता है हमारे चुनाव में वे भी राजनीतिक खिलाड़ी हैं।