Darbhanga Airport News: यह तो हवाई टिकट का सीधा ब्लैक है…। कालाबाजारी… खुलेआम। याद कीजिए। नब्बे का दौर। लोग सज-घजकर घरों से सिनेमा घर पहुंचते थे। वहां, हाउस फुल का बोर्ड टंगा मिलता था। याद कीजिए। जब, लव स्टोरी दरभंगा के तात्कालीन पूनम सिनेमा हॉल में रिलीज हुई थी। लाठी चार्ज करना पड़ा था। टिकटों की मारामारी चल रही थी। लाठी खाए सिनेप्रेमी घरों की ओर रिक्शा खोजने लगे थे। मगर, हॉल के बाहर टिकट की ब्लैक में बिक्री हो रही थी। अति उत्साहित दर्शक ब्लैक में टिकट खरीदकर सिनेमा हॉल में घुस रहे थे। कमोबेश यही ब्लैक यानि कालाबाजारी इन दिनों विमान सेवा कंपनी के ग्राहक झेल रहे हैं।
क्या ऐसा होता है? सही में ऐसा है क्या? नहीं? बिल्कुल नहीं?
अब देखिए ना। दरभंगा से बेंगलुरु का फ्यूल और अन्य खर्चें विमानन कंपनियों को एक ही तरह के लगते होंगे। यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मगर, इनकी दरें पर्व-त्यौहारों में बढ़ जाती हैं। क्या, पर्व आते ही, विमान अधिक फ्यूल पीने लगते हैं। क्या विमानन कर्मियों को पर्व के दौरान अधिक पैसे देने पड़ते हैं, तभी वह अपनी सेवा देंगे। क्या ऐसा होता है? सही में ऐसा है क्या? नहीं? बिल्कुल नहीं?
पर्व-त्यौहारों के आते ही विमानन टिकटों के दाम बढ़ाना कहां तक उचित है? क्या यह खुलेआम अघोषित ब्लैक में टिकट बेचने वाली बात नहीं हो गई?
फिर, पर्व त्यौहारों के आते ही विमानन टिकटों के दाम बढ़ाना कहां तक उचित है? क्या यह खुलेआम अघोषित ब्लैक में टिकट बेचने वाली बात नहीं हो गई? क्यों? पर्व आते ही इनके टिकटों के दाम सीधे दो गुणा बढ़ा दिए जाते हैं। इसपर लगाम कौन लगाएगा। क्या यह सीधे ब्लैक में टिकट बेचने सरीखे नहीं है।
हवाई चप्पल पहनकर हवा में उड़ने का स्वप्न,कवायद हवा हवाई
कोई, किसी सरकार, किसी प्रशासन, किसी विमानन कंपनियों की चिंता आम लोगों के प्रति नहीं है। हवाई चप्पल पहनकर हवा में उड़ने का स्वप्न दिखाने की कवायद हवा हवाई है। कुछ दिनों पूर्व, जदयू नेता संजय कुमार झा ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की थी। मगर, फंफूद लगे व्यवस्था में ऐसी आवाजें गुम, फाइलों में दबने में तनिक भी देर नहीं लगती।
दरभंगा एयरपोर्ट के विस्तार की कवायद लगातार जारी है। मगर,किराया भाड़ा के लिए आवाज उठी तो दीमक लग गई
दरभंगा एयरपोर्ट के विस्तार की कवायद लगातार जारी है। मगर, किराया भाड़ा के लिए कहीं कोई आवाज नहीं उठती। दरभंगा चेंबर ऑफ कॉमर्स भी इसको लेकर ज्ञापन देकर अपनी आवाज रखी। मगर, चेंबर की आवाज भी दीमक चट कर गए। सवाल है, कौन आवाज उठाए। किसकी आवाज सुनीं जाएंगी। शायद इस ब्लैक के खेल में आवाज की भी कालाबाजारी चल रही।
अब देखिए। यह एक बानगी है। सत्ताइस अक्टूबर से दरभंगा बेंगलुरु सीधी विमान फिर से सेवा देने जा रही है।
अब देखिए। यह एक बानगी है। सत्ताइस अक्टूबर से दरभंगा बेंगलुरु सीधी विमान फिर से सेवा देने जा रही है। मगर किराया चौदह हजार के पार है। खबर का सार यह, सत्ताइस अक्टूबर को इसका यात्री किराया 14954 है। 31 को दीपावली है तो यात्री किराया 18104, एक व दो नवंबर को 16950, तीन को 15900, चार, पांच, छह को 14954, सात को 13274, फिर आठ,नौ, दस नवंबर को 9548। आखिर क्यों? इस बीच 31 को दीपावली और। फिर महापर्व छठ। यह खत्म होते ही टिकट के दाम सीधे औधे-पौने भाव? इसका जिम्मेदार कौन है? क्या यह यात्रियों के साथ धोखा नहीं है?
टिकट फुल का बोर्ड टांग दीजिए। रेलवे यही करता है।
अगर आप, यात्रियों का उड़ान की सुविधा नहीं दे सकते। टिकट फुल का बोर्ड टांग दीजिए। रेलवे यही करता है। बस कंपनी भी अपने यात्रियों के लिए यही सेवा देती हैं। यहां तक कि निजी यात्री सुविधा देने वाले भी यही करते हैं। साहेब खाली नहीं हूं…मगर ये विमान वाले? सीधे डाका। खुलेआम…खुल्लमखुल्ला।