Deepak Kumar, मुजफ्फरपुर | मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) राकेश कुमार ने जिले के आठ थानों के 134 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। इन अधिकारियों पर आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया गया है। ये कार्रवाई नगर, सदर, अहियापुर, काजी मोहम्मदपुर, ब्रह्मपुरा और मनियारी थानों में की गई है।
क्या है मामला?
आरोप है कि इन पुलिस अधिकारियों ने अपने स्थानांतरण के बाद 943 आपराधिक मामलों की फाइलें अपने साथ ले लीं। इससे सैकड़ों मामलों की सुनवाई अटकी हुई है और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है। इनमें से कुछ मामले तो 5-10 साल से भी अधिक पुराने हैं। पीड़ित थक-हार कर न्याय के लिए संघर्ष करते रहे हैं।
क्यों हुई कार्रवाई?
भारत में जब भी किसी पुलिस अधिकारी का स्थानांतरण होता है तो उसे सभी संबंधित केस की फाइलें अपने उत्तराधिकारी को सौंपनी होती हैं, ताकि मामले की जांच और सुनवाई बाधित न हो। लेकिन इन 134 पुलिस अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। इसके कारण इन मामलों की जांच लंबित पड़ी रही और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका।
कुल कितने अधिकारियों पर कार्रवाई?
मुजफ्फरपुर जिले के विभिन्न थानों में जिन अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है, उनमें से:
- काजी मोहम्मदपुर थाने में 11 पुलिस अधिकारी
- सदर थाने में 21 पुलिस अधिकारी
- ब्रह्मपुरा थाने में 27 पुलिस अधिकारी
- अहियापुर थाने में 6 पुलिस अधिकारी
- नगर थाने में 54 पुलिस अधिकारी शामिल हैं।
इन सभी अधिकारियों ने अपने स्थानांतरण के बाद अपने मामलों की फाइलें नए अधिकारियों को सौंपने के बजाय उन्हें अपने साथ ले लिया, जिससे इन मामलों की सुनवाई में देरी हुई।
भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज
इस मामले में भारतीय न्याय संहिता की धारा 316(5) के तहत आरोपित अधिकारियों पर आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि अधिकारियों ने जानबूझकर मामलों की जांच में रुकावट डाली, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित हुई।
अधिकारियों पर गंभीर आरोप
काजी मोहम्मदपुर थाना में एक दशक से अधिक समय से केस का प्रभार और फाइल लेकर लापता चल रहे अधिकारियों में भुनेश्वर सिंह, फुलजेम्स कंडोला, सरोज कुमार, गोपाल पांडेय, राधा सरन पाठक, देवेंद्र प्रसाद, रामाधार सिंह, विश्वनाथ झा, दिनेश महतो, सुनील कुमार और विजय सिंह को आरोपित किया गया है।
आगे की कार्रवाई
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और इन अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की योजना बनाई है। अगर यह पाया जाता है कि इन अधिकारियों ने जानबूझकर केस से जुड़ी फाइलें नहीं सौंपी, तो उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है।