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17 अगस्त, 2024
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एक ही दिन 10 हज़ार ध्वजा, 200 साल पुरानी परंपरा! 3 ब्राह्मण व 2 कन्याओं का भोजन-जानिए मकड़मपुर बजरंगबली का क्या है अद्भुत चमत्कार!

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बेनीपुर का अद्भुत चमत्कार! एक ही दिन 10 हज़ार ध्वजा चढ़ते हैं बजरंगबली मंदिर में। 200 साल पुरानी परंपरा! दरभंगा के मकड़मपुर में बजरंगबली को चढ़ाई जाती हैं हज़ारों ध्वजाएं। नेपाल से भी आते हैं श्रद्धालु! बेनीपुर महावीर मंदिर में ध्वजारोहण का भव्य नज़ारा। मनोकामना पूरी करने वाला त्योहार! एक ध्वजा पर 3 ब्राह्मण व 2 कन्याओं का भोजन अनिवार्य। रामनवमी पर नहीं, भादव नवमी को होता है ध्वजारोहण – बेनीपुर का त्योहार क्यों है अनोखा?पढ़िए सतीश चंद्र झा, देशज टाइम्स की यह रिपोर्ट।

मकड़मपुर का ध्वजारोहण महोत्सव: आस्था, परंपरा और इतिहास का अनूठा संगम, ध्वजारोहण की अनोखी परंपरा

संपूर्ण भारतवर्ष में चैत्र शुक्ल नवमी (रामनवमी) को बजरंगबली के मंदिरों में ध्वजारोहण की परंपरा है। लेकिन दरभंगा जिले के बेनीपुर प्रखंड स्थित मकड़मपुर गांव में हर वर्ष भाद्र कृष्ण पक्ष नवमी को एक साथ हजारों की संख्या में ध्वजारोहण किया जाता है।
यह परंपरा इस गांव को पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि नेपाल सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित बनाती है।@देशज टाइम्स रिपोर्ट।

महावीर जी मंदिर का महत्व

मकड़मपुर स्थित श्री श्री 108 वीर बजरंगबली मंदिर इस परंपरा का मुख्य केंद्र है।
ध्वजारोहण के दिन पूरा क्षेत्र उत्सव का रूप ले लेता है— अनुमंडल क्षेत्र की हर सड़क पर श्रद्धालुओं का कारवां मकड़मपुर की ओर बढ़ता है। आसपास के जिलों दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सहरसा और यहां तक कि नेपाल से भी श्रद्धालु ध्वजा चढ़ाने पहुँचते हैं। पिछले वर्ष 10,000 से अधिक ध्वजाएँ स्थापित की गईं थीं और संख्या प्रतिवर्ष बढ़ रही है।

इतिहास और किंवदंतियां

स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा सदियों पुरानी है। एक मान्यता के अनुसार, पूर्व काल में महामारी रोकने हेतु पुजारी को स्वप्न में ध्वजारोहण का संकेत मिला और तभी से यह परंपरा शुरू हुई।

दूसरी कथा के अनुसार, मुगल शासन काल में जलेवार गरौल (वर्तमान अलीनगर प्रखंड) से विस्थापित होकर आए कन्हैया चौधरी ने इस स्थान पर महावीर जी की स्थापना की और मन्नत के तहत दो ध्वजा अर्पण करने का संकल्प लिया। समय के साथ यह परंपरा गाँव से क्षेत्रीय और राष्ट्रीय आस्था का केंद्र बन गई।

राजनीतिक व ऐतिहासिक जुड़ाव

इस धार्मिक स्थल की महत्ता का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि— भारत सरकार के पूर्व रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र और ग्रामीण विकास मंत्री स्व. हरिनाथ मिश्र ने भी मन्नत पूरी होने पर यहां ध्वजा अर्पित किया था। इसके अलावे कई जनप्रतिनिधि प्रतिवर्ष यहां श्रद्धा भाव से आते हैं। ग्राम से जुड़े हर वर्ग के हस्तियों ने इस महोत्सव को “अद्वितीय” बताया। इनका कहना है—

“संपूर्ण भारतवर्ष में ऐसा ध्वजारोहण त्यौहार कृष्णाष्टमी के अगले दिन कहीं और देखने को नहीं मिलता। यह पर्व केवल बेनीपुर विधानसभा क्षेत्र के मकड़मपुर गांव में ही अनूठे रूप से मनाया जाता है।”

धार्मिक आयोजन और नियम

मंदिर प्रांगण में ध्वजा चढ़ाने के साथ विशेष पूजा-अर्चना होती है। परंपरा के अनुसार, एक ध्वजा चढ़ाने वाले को तीन ब्राह्मणों और दो कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना पड़ता है। प्रसाद के रूप में मुख्यतः रोट, चूड़ा, दही, चीनी, केला और मिठाई वितरित किया जाता है। मंदिर परिसर में अब तक पांच देवी-देवताओं के मंदिर और एक धर्मशाला श्रद्धालुओं द्वारा निर्मित की जा चुकी है।

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आस्था, विश्वास और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक

मकड़मपुर का यह ध्वजारोहण महोत्सव सिर्फ़ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक है। लगभग 200 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी समाज को एकजुटता, भक्ति और संस्कृति से जोड़ रही है। दरभंगा जिले के लिए यह पर्व केवल आस्था का केंद्र नहीं बल्कि धार्मिक पर्यटन की असीम संभावना भी समेटे हुए है। ऐसे में अब ग्रामीण और जनप्रतिनिधि भारत सरकार और बिहार सरकार से आग्रह किया कि मकड़मपुर ध्वजारोहण उत्सव को विशेष धार्मिक स्थल के रूप में राष्ट्रीय मान्यता दी जाए।

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