गायघाट न्यूज़: बिहार की महत्वाकांक्षी नल-जल योजना, जिसका उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाना था, अब सवालों के घेरे में है। मुजफ्फरपुर के गायघाट स्थित शिवदहा वार्ड 8 में सामने आया एक ऐसा मामला, जिसने योजना के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। करोड़ों खर्च के बाद भी यह योजना दम तोड़ चुकी है, और ग्रामीण आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए भटक रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, शिवदहा वार्ड 8 में नल-जल योजना का हाल बेहाल है। यहां आश्चर्यजनक रूप से योजना के तहत लगाई गई पानी टंकी और पाइपलाइन के आसपास कोई घेराबंदी ही नहीं की गई है। सुरक्षा के अभाव में यह पूरी योजना धरातल पर आने से पहले ही फेल हो गई है। आलम यह है कि करोड़ों की लागत से तैयार हुई यह व्यवस्था आज खंडहर में तब्दील हो चुकी है और स्थानीय निवासियों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
‘अनुरक्षक’ कौन? योजना की बदहाली का जिम्मेदार कौन?
इस गंभीर अनियमितता के सामने आने के बाद पीएचईडी विभाग ने अपने स्तर पर त्वरित कार्रवाई की बात कही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस योजना का अनुरक्षक कौन है? जब बुनियादी संरचना ही असुरक्षित छोड़ दी गई है, तो इसे संचालित कौन करेगा? कोई ग्रामीण इस टूटी हुई व्यवस्था की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि आखिर इतना बड़ा घोटाला कैसे हुआ और इसका जवाब कौन देगा?
कागजों पर पूरी, जमीन पर अधूरी: करोड़ों हुए खर्च, फिर भी प्यासे गांव
राज्य सरकार ने ग्रामीण अंचलों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हैंडपंपों के साथ-साथ नल-जल योजना के माध्यम से हर घर नल का जल पहुंचाने की व्यवस्था की थी। इस योजना के तहत गांवों में करोड़ों रुपए खर्च कर पानी की टंकी का निर्माण किया गया, पाइपलाइन बिछाई गईं और घर-घर नल कनेक्शन भी दिए गए। लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी यह योजना धरातल पर ग्रामीणों को लाभ नहीं पहुंचा पा रही है।
परिणामस्वरूप, जिन गांवों में यह सुविधा उपलब्ध होनी थी, वहां के ग्रामीण आज भी दो किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर हैं। योजना का मुख्य उद्देश्य ही विफल होता दिख रहा है, जिससे सरकारी धन का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग उजागर हो रहा है।
लापरवाह अधिकारी और पंचायती राज व्यवस्था की विफलता
इस बदहाली के पीछे विभागीय अफसरों की घोर लापरवाही और ग्राम पंचायतों द्वारा समय पर रख-रखाव न करना प्रमुख कारण बताया जा रहा है। जिन स्थानों पर पाइपलाइन बिछाई गई थी, वे देखरेख के अभाव में क्षतिग्रस्त हो रही हैं, तो कई गांवों में तो ये पाइपलाइनें पूरी तरह से गायब ही हो चुकी हैं। यह स्थिति न केवल योजना के क्रियान्वयन पर, बल्कि सरकारी तंत्र की जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल उठाती है।
- विभागीय अफसरों की लापरवाही
- ग्राम पंचायतों द्वारा समय पर रख-रखाव का अभाव
- क्षतिग्रस्त पाइपलाइनें
- कई गांवों से पाइपलाइनों का गायब होना







