क्या चीनी मिलों की वापसी मिथिला के किसानों की तकदीर बदल पाएगी? या फिर यह सिर्फ एक चुनावी घोषणा बनकर रह जाएगी? एक फैसले का स्वागत हुआ है, लेकिन इसके पीछे छिपी ‘देरी’ और ‘उपेक्षा’ पर तीखे सवाल भी उठे हैं. मिथिला स्टूडेंट यूनियन ने सरकार को साफ चेतावनी दी है.
मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या भूषण ने अपने पैतृक गाँव बिरौल के महवा से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर राज्य कैबिनेट द्वारा चीनी मिलों की पुनः स्थापना से संबंधित निर्णय का स्वागत किया है. उन्होंने इस कदम को मिथिला के किसानों, मजदूरों और युवा पीढ़ी की आशाओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक सकारात्मक पहल बताया. हालांकि, विद्या भूषण ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय जितना सराहनीय है, उतना ही यह एक ‘देर से लिया गया कदम’ भी है. उनका कहना था कि मिथिला में चीनी मिलों का आंदोलन किसी एक दिन का परिणाम नहीं, बल्कि पिछले दस वर्षों से चले आ रहे लगातार संघर्ष और जनदबाव का नतीजा है.
सरकार की नीयत पर सवाल: देरी से उठे कदम
राष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या भूषण ने बिहार और केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि मिथिला हमेशा विकासात्मक प्राथमिकताओं से बाहर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया, “मिथिला के तमाम प्रोजेक्ट साजिशन लटकाए जाते रहे हैं. दरभंगा एम्स की घोषणा को पूरे दस वर्ष होने को आए, लेकिन आज तक केवल बाउंड्री और मुख्य गेट के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता. अस्पताल बनने के बजाय बोर्ड लगा हुआ है और पूरा क्षेत्र मुँह ताक रहा है. यह सिर्फ देरी नहीं, बल्कि मिथिला की उपेक्षा का खुला प्रमाण है.”
विद्या भूषण ने आगे कहा कि औद्योगिक पुनरुत्थान, उच्च शिक्षा की स्थिति हो या बुनियादी ढांचा—हर स्तर पर मिथिला को हाशिये पर रखा गया है. उन्होंने विश्वविद्यालयों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक अराजकता गहरी होती जा रही है. सत्र अनियमित हैं, परीक्षा परिणाम विलंबित हैं, छात्रावास ध्वस्त हाल में हैं और प्रशासन मौन है. यह स्थिति युवाओं के भविष्य पर सीधा प्रहार है.” उन्होंने इस स्थिति को सरकार की उदासीनता और क्षेत्रीय असंतुलन की नीति का परिणाम बताया.
चीनी मिल सिर्फ उद्योग नहीं, मिथिला का भविष्य
MSU ने यह स्पष्ट किया कि चीनी मिलों की बहाली केवल एक उद्योग का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह मिथिला की अर्थव्यवस्था, रोजगार, कृषि आधारित विकास और पलायन रोकने का एक महत्वपूर्ण समाधान है. संगठन ने बताया कि सुपौल, सहरसा, समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी के किसान वर्षों से गन्ना खेती का विकल्प खत्म होने के कारण गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. MSU ने मांग की कि यदि सरकार वास्तव में ईमानदार है, तो केवल घोषणाएं न करे, बल्कि समयबद्ध कार्ययोजना, निवेश, तकनीकी उन्नयन और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के प्रावधान सुनिश्चित करे.
चेतावनी: सिर्फ घोषणा नहीं, जमीनी काम चाहिए
विद्या भूषण ने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस फैसले को केवल एक राजनीतिक घोषणा तक सीमित रखती है, तो MSU एक व्यापक जन आंदोलन के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, “हम स्वागत भी करते हैं और सवाल भी. मिथिला सम्मान से समझौता नहीं करेगी. आंदोलन शिथिल नहीं पड़ेगा. जब तक धरातल पर मशीनें नहीं चलने लगेंगी, हम दबाव बनाए रखेंगे.”
अंत में, राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकार के सामने निम्नलिखित मांगें रखीं:
- चीनी मिलों की पुनः स्थापना हेतु समयसीमा और विस्तृत रोडमैप तुरंत सार्वजनिक किया जाए.
- दरभंगा एम्स निर्माण को कैबिनेट की तर्ज पर विशेष प्रगति समीक्षा के तहत लेकर छह महीने में ठोस प्रगति बताई जाए.
- विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक सुधार, सत्र नियमितीकरण और छात्रावासों के पुनर्जीवन पर तत्काल कार्रवाई हो.
- मिथिला के लंबित प्रोजेक्टों की सूची जारी कर उनके लिए विशेष विकास पैकेज घोषित किया जाए.
विद्या भूषण ने कहा, “मिथिला की लड़ाई विकास, सम्मान और अधिकार की लड़ाई है. सरकारें बदलती रही हैं, लेकिन हमारी प्रतिबद्धता नहीं. चीनी मिल आंदोलन हमारी जनआस्था और संघर्ष का प्रतीक है—और यह तब तक जारी रहेगा, जब तक मिथिला को उसका हक नहीं मिल जाता.”






