दरभंगा में बंदरों का आंतक है। यहां तक कि एक बच्ची की मौत भी बंदर के कारण हो चुकी है बावजूद, धार्मिक आस्था के कारण कोई बंदर को मारने की सोच भी नहीं सकता। कई बार लोगों ने प्रशासन से गुहार लगाई। बंदरों की धरपकड़ आज तक नहीं हुई। लोग चाहते हैं कि बंदरों को पकड़ कर जंगलों में छुड़वा दिया जाए। इन दिनों एक दो नहीं, सैकड़ों की संख्या में कालोनियों में इस कदर विराजने लगे हैं कि वे अब आदमी के लिए मुसीबत बन गए हैं। यही नहीं, अब उनका व्यवहार चिड़चिड़ा भी हो गया है। कई बार तो घरों में घुसकर लोगों को लहूलुहान भी कर दे रहे हैं। बच्चे और बुजुर्ग सभी भय में है। नगर के दो दर्जन से अधिक कालोनियों में बंदरों के भय से लोगों का सड़क पर निकलना मुश्किल हो गया है। घरों के दरवाजे-खिड़की भी बराबर बंद रखना पड़ता है। आतंकी बंदरों के कारण घर की छत पर भी निकलते समय लोगों को डंडा लेकर निकलना पड़ रहा है। बिजली के तारों पर यूं कलाबाजी करते-फिरते है कि मत पूछिए, लेकिन सांस सूखती है कालोनी के लोगों की। कहीं आपस में तार सटे तो कालोनी की बिजली गुल, फिर बिजली के लिए दौड़धूप करनी होगी। लोगों का कहना है कि बंदरों की मौजूदगी से दिक्कत नहीं है, असल परेशानी उनके गुस्सैल मिजाज को लेकर है। वे हमले के साथ ही लोगों के मांस उधेड़ ले रहे है।
सेठों का हित साध रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
सत्य अहिंसा फांक रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
पूंछों से छवि आंक रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बंदर बापू के!
मुस्काते हैं आंखें मीचे तीनों बंदर बापू के!
हमें अंगूठा दिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
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