पटना न्यूज़: बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी सवालों के घेरे में है. अब इस पराजय का पोस्टमार्टम करने और भविष्य की रणनीति तय करने के लिए पटना में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है. क्या कांग्रेस ‘अकेला चलो’ की राह पर आगे बढ़ेगी या महागठबंधन में ही रहकर नई दिशा तलाशेगी?
पटना में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आज सुबह 11 बजे से एक अहम बैठक शुरू हो चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम की अध्यक्षता में हो रही इस बैठक को बिहार चुनाव परिणामों के बाद पार्टी की पहली औपचारिक समीक्षा बैठक माना जा रहा है.
इस महत्वपूर्ण मंथन सत्र में सभी जिलाध्यक्षों, कार्यकारी जिलाध्यक्षों, विभिन्न विभागों के प्रभारियों, मोर्चा-सेल प्रमुखों और फ्रंटल संगठनों के शीर्ष नेताओं को अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है. पार्टी की कोशिश है कि जमीनी स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की राय ली जाए.
हार के कारणों पर गहन विश्लेषण
बैठक का मुख्य एजेंडा बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का गहराई से विश्लेषण करना है. पार्टी नेतृत्व सभी उपस्थित नेताओं से उनके चुनावी अनुभवों, सुझावों और प्रतिक्रियाओं को सुनेगा. इसका उद्देश्य उन कमियों को पहचानना है जो चुनाव प्रचार या सांगठनिक ढांचे में रह गईं, ताकि भविष्य में उन्हें सुधारा जा सके.
चुनावी समीक्षा के साथ-साथ संगठन को मजबूत करने पर भी विशेष जोर दिया जाएगा. इसमें नए सिरे से सदस्यता अभियान को गति देना और बूथ स्तर पर कमेटियों का गठन सुनिश्चित करना जैसे महत्वपूर्ण सांगठनिक मुद्दे भी शामिल हैं. पार्टी राज्य में अपनी जड़ें मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहती है.
‘वोट चोरी’ के आरोपों पर रणनीति
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने कई बार कथित ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया था. आज की बैठक में इस संवेदनशील विषय पर भी विस्तार से चर्चा होगी. इसके मद्देनजर, 14 दिसंबर को दिल्ली में कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘वोट चोरी’ के खिलाफ राष्ट्रीय विरोध रैली की तैयारियों की रणनीति भी बनाई जाएगी.
बिहार प्रदेश इकाई को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह दिल्ली में होने वाली इस राष्ट्रीय रैली में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं और नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित करे, ताकि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत संदेश दिया जा सके.
RJD से गठबंधन पर उठते सवाल
इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि कुछ ही दिन पहले दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान और बिहार के नेताओं के बीच एक बैठक हुई थी. सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, उस बैठक में बिहार के कई कांग्रेस नेताओं ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से अलग होने की जोरदार मांग उठाई थी. इन नेताओं ने अपनी हार का बड़ा कारण गठबंधन सहयोगी राजद को बताया था.
अब पटना में हो रही इस बैठक के बाद यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस पार्टी ‘अकेला चलो’ की नीति पर आगे बढ़ने का स्पष्ट संकेत देती है, या फिर महागठबंधन के भीतर रहते हुए ही अपनी रणनीति में कोई बड़ा बदलाव करती है. पार्टी के सामने अपने भविष्य का मार्ग चुनने की चुनौती है.
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन के बैनर तले कुल 60 सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि, पार्टी इनमें से सिर्फ 6 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी. इस निराशाजनक प्रदर्शन ने कांग्रेस के प्रदेश संगठन और शीर्ष नेतृत्व दोनों को गहरे सवालों के घेरे में ला दिया है.
ऐसे में आज की यह बैठक केवल चुनाव परिणामों की समीक्षा का एक मंच मात्र नहीं है, बल्कि यह बिहार में कांग्रेस की भविष्य की राजनीतिक दिशा और दशा तय करने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है.








