दरभंगा न्यूज: दुनिया को जकड़ चुकी एड्स जैसी गंभीर बीमारी से मुक्ति पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन, इस चुनौती को स्वीकार करने और 2030 तक भारत को एड्स-मुक्त बनाने के लक्ष्य को साधने में युवा कितनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, इसकी एक झलक हाल ही में आयोजित एक संगोष्ठी में देखने को मिली। मारवाड़ी महाविद्यालय में जुटे विशेषज्ञों ने बताया कि कैसे युवाओं का योगदान इस भयावह बीमारी के खिलाफ अंतिम हथियार साबित हो सकता है।
दरभंगा के मारवाड़ी महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) इकाई ने ‘विश्व एड्स दिवस’ के अवसर पर ‘एड्स नियंत्रण में युवाओं का योगदान’ विषय पर एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रोफेसर लक्ष्मण प्रसाद जायसवाल ने युवाओं को एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS) है। प्रोफेसर जायसवाल ने बताया कि एचआईवी वायरस मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को गंभीर रूप से क्षति पहुँचाता है, जिससे शरीर बीमारियों से लड़ने में अक्षम हो जाता है और अंततः संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि एड्स के नियंत्रण में युवा वर्ग की भूमिका अत्यंत निर्णायक है।
जागरूकता ही बचाव का पहला कदम
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित विश्वविद्यालय के एनएसएस समन्वयक डॉ. आर. एन. चौरसिया ने एड्स के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसके कारणों, लक्षणों और बचाव के तरीकों पर विस्तृत जानकारी दी। डॉ. चौरसिया ने इस बात पर जोर दिया कि एड्स रोगियों के प्रति किसी भी प्रकार की घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए, बल्कि उन्हें सामाजिक सहयोग प्रदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उचित परहेज और स्वस्थ दिनचर्या का पालन करके एड्स से संक्रमित व्यक्ति भी एक सामान्य जीवन जी सकता है।
डॉ. चौरसिया ने भारत सरकार के महत्वपूर्ण लक्ष्य का भी उल्लेख किया, जिसके तहत देश को 2030 तक एड्स-मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में युवा वर्ग का योगदान सर्वोपरि माना गया है। उन्होंने एड्स की वैश्विक भयावहता को रेखांकित करते हुए बताया कि दुनिया भर में अब तक 4.41 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से अपनी जान गँवा चुके हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि 2010 के बाद से एचआईवी/एड्स के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जिसका श्रेय भारत में युवाओं द्वारा किए गए सक्रिय और जमीनी स्तर के प्रयासों को जाता है।
एड्स: क्या है, कैसे फैलता है और बचाव
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (DMCH) के रक्त अधिकोष प्रभारी डॉ. संजीव कुमार ने ऐतिहासिक तथ्यों और संक्रमण के तरीकों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एचआईवी का सर्वप्रथम पता अमेरिका में वर्ष 1981 में चला था। डॉ. कुमार ने एड्स के फैलने के मुख्य कारणों को सूचीबद्ध किया, जिनमें असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त का आदान-प्रदान, संक्रमित सुई का प्रयोग और गर्भावस्था के दौरान संक्रमित माँ से उसके होने वाले बच्चे में संक्रमण शामिल हैं। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि युवाओं की जागरूकता और भागीदारी से ही एड्स तथा अन्य गंभीर बीमारियों से मुक्त एक स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है।
महाविद्यालय के बर्सर डॉ. अवधेश प्रसाद यादव ने एड्स के उपचार के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने बताया कि भले ही एड्स का कोई पूर्ण इलाज अभी तक संभव न हो, लेकिन इस बीमारी के बारे में सही और सटीक जानकारी ही इससे बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है। डॉ. यादव के अनुसार, सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education and Communication – IEC) के माध्यम से युवा पीढ़ी एड्स के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
युवाओं की बड़ी जिम्मेदारी
संगोष्ठी की कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुनीता कुमारी ने भारत की युवा शक्ति पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बताया कि भारत में 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 37.1 करोड़ से अधिक युवा हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 27% है। यह आँकड़ा भारत को दुनिया के सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देशों में से एक बनाता है। डॉ. कुमारी ने इस बात पर जोर दिया कि इतनी बड़ी युवा आबादी पर समाज के प्रति काफी जिम्मेदारियाँ हैं, और इसलिए उन्हें एड्स जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति और अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। स्वागत भाषण डॉ. हेना गौहर ने प्रस्तुत किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रिया नंदन द्वारा किया गया। इस अवसर पर सभी स्वयंसेवकों को उनकी सक्रिय सहभागिता के लिए प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ भेंट कर किया गया। इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में महाविद्यालय के कई गणमान्य शिक्षक-शिक्षिकाएँ और कर्मचारीगण उपस्थित थे, जिनमें डॉ. अरविंद झा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. गजेंद्र भारद्वाज, डॉ. शकील अख्तर, डॉ. सोनी सिंह, डॉ. बी. डी. मोची, गुरुदेव शिल्पी, डॉ. सुषमा भारती, डॉ. आशुतोष कुमार, डॉ. अमृता सिन्हा, डॉ. उजमा नाज़ और आनंद शंकर प्रमुख थे। इनके अतिरिक्त, एनएसएस के स्वयंसेवक नीलेश, अनिल, फैजल, स्मिता, स्मृति, सलोनी, विवेकानंद, आनंद सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ भी मौजूद थे, जिन्होंने इस जागरूकता कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया।








