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2 दिसम्बर, 2025

बिहार में NDA की जीत का अनसुना किस्सा: डिजिटल रणभूमि के पीछे कौन था?

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बिहार की सियासी बिसात पर हर चुनाव में बड़े-बड़े धुरंधर उतरते हैं, लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में एक अदृश्य शक्ति भी सक्रिय थी, जिसने नतीजों का रुख पलट दिया. ये कहानी है डिजिटल रणनीति के उस महारथी की, जिसके दिमाग ने एनडीए की जीत की पटकथा लिखी और सोशल मीडिया के जरिए जनता के दिल तक पहुंचा एक ऐसा संदेश, जिसने सबको चौंका दिया.

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए गठबंधन की जीत को कई मायनों में एक सुनियोजित डिजिटल रणनीति की सफलता के तौर पर देखा गया. इस पूरे अभियान की कमान जेडीयू के आईटी और सोशल मीडिया विंग के प्रमुख मनीष कुमार के हाथों में थी, जिनकी दक्षता ने चुनावी विमर्श को एक नई दिशा दी. बीआईटी मेसरा से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुके मनीष कुमार ने चुनाव से काफी पहले ही इस जनादेश की नींव रखनी शुरू कर दी थी.

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उनकी रणनीति का शुरुआती चरण इतना प्रभावशाली था कि इसने जल्द ही पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी. यह सिर्फ प्रचार नहीं था, बल्कि बिहार की नब्ज को समझते हुए एक ऐसा संवाद स्थापित करने का प्रयास था, जो मतदाताओं के दिलों तक सीधे पहुंचे.

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डिजिटल रणनीति का मास्टरमाइंड: मनीष कुमार का अदृश्य हाथ

मनीष कुमार द्वारा गढ़ा गया अभियान थीम ’25 से 30 फिर से नीतीश’ सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया. यह नारा न सिर्फ जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के चुनावी आत्मविश्वास का प्रतीक बना, बल्कि नीतीश कुमार के नेतृत्व के प्रति एक सकारात्मक माहौल बनाने में भी कारगर साबित हुआ. मनीष ने बिहार की राजनीति की गहरी समझ दिखाते हुए यह पहचाना कि इस राज्य में भावनात्मक जुड़ाव ही राजनीतिक सफलता की कुंजी है.

इसी समझ के आधार पर उनकी टीम ने गीतों, डॉक्यूमेंट्री फिल्मों, लघु फिल्मों और वास्तविक जीवन की घटनाओं के मंचन के माध्यम से नीतीश कुमार के जन-सम्पर्क को एक नया आयाम दिया. यह सामग्री सिर्फ चुनावी प्रचार का हिस्सा नहीं थी, बल्कि जनता के अनुभवों और उनकी आकांक्षाओं का सच्चा प्रतिबिंब भी थी, जिसने लोगों को खुद से जुड़ा महसूस कराया.

’25 से 30 फिर से नीतीश’: एक नारे से बदला माहौल

इस महत्वाकांक्षी डिजिटल मुहिम के पीछे एक मजबूत टीम काम कर रही थी. राहुल रौशन और राघवेंद्र जैसे कुशल क्रिएटिव कैंपेनर ‘द स्पेक्ट्रम’ टीम के साथ मिलकर इस अभियान को धार दे रहे थे. इस दल में वीडियो एडिटर्स, ग्राफिक्स डिजाइनर्स, वॉइस ओवर आर्टिस्ट, लेखक और फील्ड रिपोर्टर्स की एक बड़ी टुकड़ी शामिल थी, जो लगातार नवीन सामग्री तैयार कर रही थी.

अभियान को बिहार के महत्वपूर्ण पर्वों और लोक-भावनाओं से भी जोड़ा गया. दिवाली और छठ जैसे त्योहारों के दौरान “Back to Bihar” (वापस बिहार) का संदेश प्रमुखता से उभरा. इस पहल ने यह दर्शाया कि नीतीश सरकार के कार्यकाल में राज्य में लौटने और उसके विकास में भागीदार बनने की भावना प्रबल हो चुकी है. यह सिर्फ एक राजनीतिक नारा नहीं था, बल्कि प्रवासी बिहारियों को अपने जड़ों से फिर जोड़ने का एक भावनात्मक प्रयास था.

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पर्वों से जुड़ाव और युवाओं पर फोकस: टीम की अनोखी रणनीति

युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित एडिट्स, पोल्स, इंटरैक्टिव सेशन्स, युवाओं के लिए विशेष गीत और लघु फिल्मों जैसी नवीन रणनीतियों का इस्तेमाल किया. इस तकनीकी नवाचार ने चुनावी बहस को सुशासन बनाम अराजकता के पारंपरिक मुद्दे पर फिर से केंद्रित कर दिया.

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चुनावी मैदान की गहमागहमी से परे, पर्दे के पीछे रहकर मनीष कुमार और उनकी टीम ने बिहार की डिजिटल लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने न केवल एक सफल अभियान चलाया, बल्कि भविष्य के चुनावों के लिए डिजिटल रणनीतियों का एक नया खाका भी तैयार किया. उनकी यह मेहनत एनडीए की जीत का एक अहम स्तंभ साबित हुई.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का चुनावी हथियार और अंतिम परिणाम

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