मुख्यमंत्री आवास 1, Aney Marg की अनसुनी कहानी…बिहार की राजनीति में सरकारी बंगलों का बदलना और उन पर छिड़ने वाली जंग कोई नई बात नहीं है. सियासत के इस खेल में कभी किसी का बंगला छिनता है तो कभी किसी को नया ठिकाना मिलता है. लेकिन इन सबसे बेफिक्र, जनादेश की ताकत पर पिछले लगभग दो दशकों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आधिकारिक सरकारी आवास 1 अणे मार्ग ही उनका स्थायी ठिकाना बना हुआ है. जीतन राम मांझी के कुछ महीनों के कार्यकाल को छोड़ दें, तो लगभग 19 सालों से यह भवन नीतीश कुमार का ही निवास रहा है, फिर चाहे राज्य में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार रही हो या महागठबंधन की. एक दौर तो ऐसा भी आया था, जब नीतीश सरकार में सिर्फ जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के मंत्री थे और फिर भी अणे मार्ग पर उनका कब्जा बरकरार रहा.
1, Aney Marg की अनसुनी कहानी… क्या आपको पता है ?
हर सड़क का नामकरण किसी न किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की याद में किया जाता है, और पटना का यह प्रतिष्ठित अणे मार्ग भी इसका अपवाद नहीं है. यह मार्ग मराठा स्वतंत्रता सेनानी और आजादी के बाद बिहार राज्य के दूसरे राज्यपाल रहे माधव श्रीहरि अणे के नाम पर है. महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के यवतमाल जिले से ताल्लुक रखने वाले माधव श्रीहरि अणे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता रहे हैं. उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में होम रूल लीग के साथ आजादी की लड़ाई में कदम रखा था.
अणे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे, लेकिन बीच में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी का गठन भी किया. 1934 में हुए केंद्रीय विधानसभा (जो वर्तमान लोकसभा के समकक्ष थी) के चुनावों में उनकी नवगठित पार्टी ने 12 सीटें जीतकर सदन में दूसरा स्थान हासिल किया था. उस समय 148 सीटों वाले सदन में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं.
माधव श्रीहरि अणे: स्वतंत्रता संग्राम से राजभवन तक
माधव श्रीहरि अणे का राजनीतिक सफर काफी विस्तृत रहा. 1941 में उन्हें वायसराय परिषद का सदस्य नियुक्त किया गया, जहां उन्हें प्रवासी भारतीयों से संबंधित विभाग का कार्यभार सौंपा गया. इसके बाद, 1943 से 1947 तक अणे श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्यरत रहे, उन्होंने विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, वे संविधान सभा के सदस्य भी बने, जहां उन्होंने नए भारत के संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आजादी के बाद, बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम के कार्यकाल के पांच महीने बाद ही, 12 जनवरी 1948 को माधव श्रीहरि अणे को बिहार का गवर्नर नियुक्त करके पटना भेजा गया. उन्होंने 14 जून 1952 तक इस महत्वपूर्ण पद पर अपनी सेवाएं दीं. हालांकि, बीमारी के चलते उनके परिवार के सदस्य उन्हें वापस महाराष्ट्र ले गए. बाद में, उन्होंने नागपुर से दो बार लोकसभा सांसद के रूप में भी देश की सेवा की.
विदर्भ राज्य के प्रस्तावक
माधव श्रीहरि अणे का एक और महत्वपूर्ण योगदान यह था कि उन्होंने ही पहली बार राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष एक अलग विदर्भ राज्य के गठन का प्रस्ताव रखा था. उनका यह कदम क्षेत्रीय पहचान और आकांक्षाओं को राजनीतिक पटल पर लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है. इस प्रकार, 1 अणे मार्ग सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री का आवास नहीं, बल्कि उस शख्सियत के गहरे इतिहास से जुड़ा है, जिसने भारत के निर्माण और राज्य की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी है.








