साल में कई नवरात्रियां आती हैं, लेकिन पौष मास में पड़ने वाली एक ऐसी विशेष नवरात्रि है, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. यह सिर्फ व्रत-उपवास का पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति और अन्न की देवी को समर्पित एक गहन साधना का अवसर है. तो आइए जानते हैं, क्यों शाकंभरी नवरात्रि बाकी नवरात्रियों से इतनी अलग और रहस्यमयी मानी जाती है.
शाकंभरी नवरात्रि का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष मास में मनाई जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. यह नौ दिवसीय उत्सव देवी शाकंभरी को समर्पित है, जिन्हें अन्न, फल और समस्त वनस्पतियों की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि देवी शाकंभरी की कृपा से धरती पर अन्न और जल की कमी नहीं होती, और सृष्टि में हरियाली तथा पोषण बना रहता है. इस दौरान भक्त देवी की आराधना कर सुख-समृद्धि और आरोग्य की कामना करते हैं.
कौन हैं देवी शाकंभरी?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पृथ्वी पर भीषण अकाल पड़ा था और जीव-जंतु अन्न-जल के अभाव में त्राहि-त्राहि कर रहे थे, तब देवी दुर्गा ने शाकंभरी रूप धारण किया था. उन्होंने अपने शरीर से साग-सब्जी, फल और अन्य वनस्पतियों को उत्पन्न कर संसार का पोषण किया था. इसी कारण उन्हें शाकंभरी कहा गया. यह रूप प्रकृति के पोषण और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है.
शारदीय नवरात्रि से भिन्नता
शाकंभरी नवरात्रि कई मायनों में शारदीय और चैत्र नवरात्रि से भिन्न है. जहां शारदीय नवरात्रि में मुख्य रूप से देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और इसे शक्ति के विभिन्न पहलुओं का उत्सव माना जाता है, वहीं शाकंभरी नवरात्रि विशेष रूप से देवी के शाकंभरी स्वरूप पर केंद्रित है.
- प्राकृतिक महत्व: शाकंभरी नवरात्रि का संबंध सीधे तौर पर प्रकृति, अन्न और वनस्पति से है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है.
- तांत्रिक साधना: कुछ मान्यताओं के अनुसार, शाकंभरी नवरात्रि का तांत्रिक महत्व भी अधिक होता है. इस दौरान विशेष अनुष्ठान और साधनाएं की जाती हैं, जो साधकों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती हैं.
- समर्पण: यह पर्व विशेष रूप से अन्न और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के लिए देवी का आह्वान करने का समय होता है.
कब होती है शाकंभरी नवरात्रि?
शाकंभरी नवरात्रि पौष मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाई जाती है. यह नौ दिवसीय पर्व प्रकृति के पोषण, अन्न की महिमा और देवी की उदारता का प्रतीक है. इस दौरान भक्त फल, सब्जियों और अन्न से देवी की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, ताकि उनके जीवन में कभी किसी चीज़ की कमी न हो.

