वैदिक परंपरा: दरभंगा देशज टाइम्स। ज्ञान की सरिता जब किसी पवित्र भूमि से फूटती है, तो उसकी धारा सदियों तक मानवता को तृप्त करती है। मिथिला की भूमि ऐसी ही एक ज्ञानगंगा का उद्गम स्थल रही है, जहां वैदिक मंत्रों के गूढ़ रहस्यों पर गहन मंथन हुआ। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का सफल समापन हो गया है, जिसने वैदिक ज्ञान के विभिन्न आयामों को उजागर किया।
मिथिला में गूंजी वैदिक परंपरा की वाणी: तीन दिवसीय संगोष्ठी का हुआ भव्य समापन
वैदिक परंपरा का वैश्विक प्रभाव और मिथिला का विशिष्ट योगदान
दरभंगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शन विभाग और महर्षि सांदीपनि वेद विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में ‘वैदिक मंत्रों के दार्शनिक विश्लेषण’ विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का आज सफलतापूर्वक समापन हो गया। देश के कोने-कोने से पधारे विद्वानों ने सात अलग-अलग सत्रों में वैदिक मंत्रों के व्यावहारिक पक्षों पर गहन चिंतन किया और उनकी प्रामाणिकता को अकाट्य तर्कों से सिद्ध किया।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने ‘आनो भद्रा:’ मंत्र की विस्तृत व्याख्या की और सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आए विशिष्ट विद्वानों के प्रति हार्दिक आभार भी व्यक्त किया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
मुख्य अतिथि, पद्मश्री से विभूषित पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में वैदिक ज्ञान-परंपरा की वैज्ञानिकता, प्रामाणिकता और उसके वैश्विक प्रभाव पर विस्तार से प्रकाश डाला।
प्रो. मिश्र ने भारतीय कालगणना की प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टि को स्पष्ट करते हुए वसंत संपात और पुनर्वसु नक्षत्र की विशिष्टता को रेखांकित किया। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा प्रमाणित तिथि-निर्धारण के महत्व पर बल दिया और इसके संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। वैदिक खगोलशास्त्र को समझने के लिए उन्होंने ‘ओरायन’ ग्रंथ के अध्ययन पर विशेष जोर दिया। प्रो. मिश्र ने बताया कि ईसा से लगभग 1100 वर्ष पूर्व अरब देशों में वेदों का अध्ययन और अध्यापन होता था, जो वैदिक ज्ञान के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का सशक्त प्रमाण है। उन्होंने ‘अजत अरबीयन महादेव’ की अवधारणा का उल्लेख करते हुए सांस्कृतिक समन्वय की ओर भी संकेत किया।
प्रो. मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि विश्व की विभिन्न परंपराओं के निर्माण में वेदों से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है, जो भारतीय दर्शन की सार्वभौमिकता को दर्शाता है। उनके उद्बोधन का समापन उनकी सशक्त और भावपूर्ण कविताओं के साथ हुआ, जिसने उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनका वक्तव्य बौद्धिक गंभीरता और भावनात्मक ऊंचाई का अद्भुत संगम था, जिसकी विद्वानों और श्रोताओं ने अत्यंत सराहना की।
ज्ञान की धरती मिथिला: दर्शन और मीमांसा का गौरवशाली इतिहास
पीआरओ निशिकांत ने जानकारी देते हुए बताया कि काशी, शिमला, उज्जैन, बंगाल, बिहार सहित अन्य क्षेत्रों से आए लगभग 60 विद्वानों ने इस संगोष्ठी में गहन चिंतन-मनन किया। इस दौरान छह दर्जन से अधिक शोध-पत्रों का वाचन भी किया गया, जिन्होंने वैदिक ज्ञान और भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर नई रोशनी डाली। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
इसी क्रम में सारस्वतातिथि प्रो. सुरेश्वर झा ने वेद को स्वतः प्रमाण के रूप में परिभाषित करते हुए वैदिक मंत्रों का दार्शनिक विश्लेषण किया और उनके गूढ़ अर्थों को स्पष्ट किया। मानपुर गया के मुख्य अतिथि डॉ. संजय कुमार उर्फ सुदर्शनाचार्य महाराज ने ‘असतो मा सद्गमय’, ‘सत्यं वद’, ‘धर्मं चर’, ‘आचार्य देवो भव’ जैसे वैदिक सूक्तियों की व्याख्या की। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। ये उद्बोधन भारतीय दर्शन के मूल सिद्धांतों को सरल और सुगम तरीके से प्रस्तुत कर रहे थे।
एक अन्य सत्र की अध्यक्षता करते हुए बीएचयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार झा ने मंडन मिश्र, बच्चा झा और उदयनाचार्य जैसे महान विभूतियों के दर्शन के क्षेत्र में योगदान का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि वेद विद्या के सभी मंत्र दर्शन से परिपूर्ण हैं और सभी दर्शनों की उत्पत्ति भूमि मिथिला ही है। वहीं, पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को विकसित करने पर बल दिया और कहा कि ज्ञान की महिमा को समाज तक पहुंचाना हमारा नैतिक कर्तव्य है। उन्होंने वैदिक शांति मंत्रों का विवेचन करते हुए अठारह विद्याओं की भी विस्तार से चर्चा की।
प्रो. जयशंकर झा ने वैदिक मंत्रों की लौकिक जीवन में उपयोगिता पर प्रकाश डाला। समापन सत्र में आगत अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी के परिकल्पक और कुलसचिव प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी ने किया। उन्होंने कहा कि मिथिला अनादि काल से ज्ञान की धरती रही है, जिसका दर्शन और मीमांसा का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास है। उन्होंने वेद अध्ययन पर विशेष जोर दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. शशिकांत तिवारी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुधीर कुमार ने किया। संगोष्ठी के संयोजक दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. धीरज कुमार पाण्डेय थे और सह-संयोजक साहित्य विभाग के प्राध्यापक डॉ. सुधीर कुमार थे।
इस महत्वपूर्ण आयोजन में प्रो. दिलीप कुमार झा, प्रो. दयानाथ झा, प्रो. पुरेंद्र वारिक, डॉ. घनश्याम मिश्र, डॉ. सुनील कुमार झा, प्रो. विनय मिश्र, डॉ. ध्रुव मिश्र, डॉ. रामसेवक झा, डॉ. रितेश चतुर्वेदी, डॉ. शम्भु शरण तिवारी, डॉ. निशा, डॉ. सविता आर्या, डॉ. माया, डॉ. यदुवीर स्वरूप शास्त्री, डॉ. छविलाल, डॉ. अवधेश श्रोत्रिय, डॉ. संतोष तिवारी, डॉ. विभव कुमार झा सहित दर्जनों प्राध्यापक, कर्मचारी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। यह संगोष्ठी निश्चित रूप से वैदिक ज्ञान के प्रसार और उसके महत्व को पुनः स्थापित करने में मील का पत्थर साबित होगी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।


