MGNREGA protest: दरभंगा देशज टाइम्स । जैसे मरुभूमि में पानी की एक-एक बूंद कीमती होती है, वैसे ही गांवों में रोजगार का हर दिन मजदूरों के लिए संजीवनी है। लेकिन अब इसी संजीवनी पर सरकारी कैंची चलने की आहट सुनाई दे रही है, जिसके खिलाफ विरोध का बिगुल बज चुका है। केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में प्रस्तावित बड़े बदलावों के खिलाफ खेत व ग्रामीण मजदूर संगठन (खेग्रामस) और भाकपा(माले) ने मोर्चा खोल दिया है। संगठनों ने 22 दिसंबर 2025 को एक देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है, जिसके तहत दरभंगा में भी एक विशाल प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।
MGNREGA Protest: क्यों हो रहा है इस नए बिल का विरोध?
खेग्रामस और भाकपा(माले) के पदाधिकारियों ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि केंद्र सरकार मनरेगा के मूल चरित्र को बदलने की कोशिश कर रही है। सरकार मनरेगा की जगह ‘विकसित भारत-रोज़गार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025’ (VB G-RAM-G बिल) लाने की तैयारी में है, जो मजदूरों के अधिकारों पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा कि मनरेगा एक मांग-आधारित कानून था, जो काम पाने का एक सीमित अधिकार देता था, लेकिन यह नया बिल मजदूरों को इस अधिकार से भी वंचित कर देगा। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह बिल कानूनी तौर पर केंद्र सरकार को मांग के अनुसार फंड आवंटित करने की उसकी जिम्मेदारी से भी मुक्त कर देता है।
संगठनों ने काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने के सरकारी दावे को महज एक ‘जुमला’ करार दिया है। उनका आरोप है कि नए बिल में जॉब कार्ड को युक्तिसंगत बनाने के नाम पर बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवारों को योजना के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा, जिससे ग्रामीण रोजगार के अवसर और घट जाएंगे। इसके अलावा, खेती के मुख्य सीजन के दौरान 60 दिनों तक रोजगार पर रोक लगाने से मजदूर उस समय काम से वंचित हो जाएंगे जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और वे पूरी तरह से जमींदारों पर निर्भर हो जाएंगे।
राज्यों पर बढ़ेगा वित्तीय बोझ, केंद्र की जवाबदेही होगी कम
प्रस्तावित बिल में फंडिंग पैटर्न में बदलाव का भी जिक्र है, जिसके तहत केंद्र सरकार अपनी वित्तीय जिम्मेदारी राज्यों पर डाल रही है। इससे राज्य सरकारों पर एक असहनीय वित्तीय बोझ पड़ेगा, जबकि नीति-निर्धारण की प्रक्रिया में उनकी कोई भूमिका नहीं होगी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। बेरोजगारी भत्ते और काम में देरी पर दिए जाने वाले मुआवजे का खर्च भी राज्यों को ही वहन करना होगा। इन सभी बदलावों का एकमात्र मकसद योजना के दायरे को सीमित करना और केंद्र सरकार की जवाबदेही को खत्म करना है।
महात्मा गांधी का अपमान है योजना का नाम बदलना
संगठनों ने योजना का नाम MGNREGA से बदलकर G-RAM-G करने को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान बताया है। उन्होंने कहा कि यह भाजपा और आरएसएस की उनकी विरासत के प्रति द्वेषपूर्ण भावना को दर्शाता है। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। उन्होंने मांग की है कि भाजपा सरकार इस बिल को तत्काल वापस ले और मनरेगा को कमजोर करने की जगह इसे और मजबूत करे। उनकी मांग है कि काम के दिनों की संख्या बढ़ाकर न्यूनतम 200 दिन की जाए और इसके लिए पर्याप्त फंड आवंटित किया जाए। 22 दिसंबर को होने वाले प्रदर्शन में उन्होंने आम लोगों से बड़ी संख्या में शामिल होकर नए बिल का विरोध करने की अपील की है।



