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दिसम्बर, 23, 2025

अरावली खनन विवाद: केंद्र ने साफ़ की तस्वीर, कहा – खनन के लिए सिर्फ 0.19% क्षेत्र खुला

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Aravalli Mining: Imagine पहाड़ खनन के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति के संतुलन के लिए बने हों। जब सत्ता के गलियारों से पहाड़ों की परिभाषा बदलने की बात उठे, तो चिंता स्वाभाविक है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने अरावली की नई परिभाषा पर उठ रहे सवालों पर चुप्पी तोड़ी है।

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**अरावली खनन विवाद: केंद्र ने साफ़ की तस्वीर, कहा – खनन के लिए सिर्फ 0.19% क्षेत्र खुला**

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अरावली खनन: क्या है नई परिभाषा और इसका मकसद?

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोमवार को स्पष्ट किया कि अरावली पहाड़ियों की हालिया और बहुचर्चित परिभाषा केवल खनन गतिविधियों के लिए लागू होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि अरावली के कुल भूभाग का केवल 277.89 वर्ग किलोमीटर, जो लगभग 0.19 प्रतिशत है, ही खनन के लिए निर्धारित है। मंत्री ने यह भी घोषणा की कि विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन पूरा होने तक कोई भी नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा। संशोधित परिभाषा को लेकर उठ रही चिंताओं को दूर करने के उद्देश्य से आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यादव ने कहा कि मोदी सरकार हरित अरावली मिशन के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है और बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक क्षति की आशंकाएं पूरी तरह निराधार हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह परिभाषा केवल खनन उद्देश्यों के लिए ही प्रासंगिक है और इसका उपयोग सिर्फ खनन के संदर्भ में ही किया जाएगा। अरावली क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 1,43,577 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से बेहद सीमित 277.89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही खनन की अनुमति है।

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हालांकि, पर्यावरण मंत्री ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा तैयार की जा रही रिपोर्ट की समयसीमा पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। यह रिपोर्ट किसी भी नए खनन पट्टे पर विचार करने से पहले अनिवार्य है। उन्होंने कहा, “यह मामला अभी भी अदालत में है। मैं फिलहाल समयसीमा पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।” यहां पर पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर सरकार का ध्यान है।

सुप्रीम कोर्ट की मुहर और सरकार का संकल्प

यादव की ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार की अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को स्वीकार करने और सतत खनन संबंधी सिफारिशों को मंजूरी देने के बाद उपजे तीखी राजनीतिक आलोचना के बीच आई हैं। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस कदम से खनन हितों को अनुचित लाभ मिलेगा, जिसे मंत्री ने सिरे से खारिज कर दिया। यादव ने स्पष्ट किया कि अरावली पर्वतमाला में खनन गतिविधि को केवल एक बहुत ही सीमित क्षेत्र में ही अनुमति दी जाएगी, और इस बात पर जोर दिया कि पर्वतमाला को अभी भी मजबूत पारिस्थितिक संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने यह भी बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के ‘हरित अरावली अभियान’ की सराहना की है, जो इस क्षेत्र में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा कदम है। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी एक विस्तृत स्पष्टीकरण जारी किया है। मंत्रालय ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर के आदेश के अनुपालन में एक व्यापक अध्ययन किए जाने तक कोई भी नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया है कि किसी भी नए पट्टे को जारी करने से पहले संपूर्ण अरावली पर्वतमाला के लिए सतत खनन योजना (MPSM) तैयार की जाए। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में होने वाला कोई भी खनन कार्य पर्यावरणीय सिद्धांतों का उल्लंघन न करे और क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।

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