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दिसम्बर, 24, 2025

Shyam Benegal: भारतीय सिनेमा के ‘चलता-फिरता विश्वकोश’ का सफरनामा, जिसने रचा फिल्मों का नया अध्याय

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Shyam Benegal News: भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत हो गया है, जिसने अपनी कहानियों से सिर्फ मनोरंजन ही नहीं किया बल्कि दर्शकों को सोचने पर भी मजबूर किया। सिनेमा की दुनिया का वह चमकता सितारा, जिसने पर्दे पर सादगी और गहराई का ऐसा संगम रचा कि हर कहानी एक अनमोल पाठ बन गई। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। सिनेमाई दुनिया के इस महान शिल्पकार का नाम श्याम बेनेगल है, जिनका हाल ही में 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया, लेकिन उनकी कला की छाप हमेशा अमर रहेगी।

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श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में हुआ था। उनके घर में बचपन से ही कला और कैमरे का माहौल था, क्योंकि उनके पिता एक फोटोग्राफर थे। इसी रचनात्मक परिवेश के चलते, महज 12 साल की छोटी उम्र में ही श्याम बेनेगल ने अपने पिता के कैमरे से अपनी पहली फिल्म बना डाली थी। अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद, उनका मन हमेशा फिल्मों की ओर ही लगा रहा। कॉलेज के दिनों में उन्होंने एक फिल्म सोसाइटी का गठन किया, जहां फिल्मों पर गहन चर्चाएँ होती थीं। यहीं से उनके भीतर का वह ‘सोचने वाला फिल्मकार’ धीरे-धीरे आकार लेने लगा, जिसने आगे चलकर भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी।

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Shyam Benegal: एक दूरदर्शी फिल्मकार का अद्भुत सफर

मुंबई आने के बाद, श्याम बेनेगल ने एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में अपना करियर शुरू किया। विज्ञापन जगत में काम करते हुए उन्हें कैमरे के कोण, फ्रेमिंग और कम समय में प्रभावशाली कहानी कहने की कला में महारत हासिल हुई। यही अनुभव आगे चलकर उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी शक्ति बना। इस दौरान उन्होंने सैकड़ों विज्ञापन और डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाईं। साल 1962 में, उन्होंने गुजराती भाषा में अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्देशन किया। इसके बाद वे एफटीआईआई पुणे में बतौर शिक्षक भी जुड़े और उन्होंने आने वाली पीढ़ी के फिल्मकारों को सिनेमा की बारीकियों और गहरी समझ से रूबरू कराया।

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साल 1973 भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, जब उनकी पहली फीचर फिल्म ‘अंकुर’ रिलीज हुई। इस फिल्म ने अपनी यथार्थवादी कहानी और सशक्त अभिनय से दर्शकों और आलोचकों दोनों को चौंका दिया। ग्रामीण जीवन, किसानों के संघर्ष और शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आधारित यह फिल्म, बिना किसी बड़े सितारे के भी राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने में सफल रही और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सराही गई। ‘अंकुर’ की सफलता के बाद, उन्होंने ‘निशांत’, ‘मंथन’ और ‘भूमिका’ जैसी एक से बढ़कर एक फिल्में दीं, जिन्होंने उन्हें पैरलल सिनेमा का पर्याय बना दिया। विशेष रूप से, ‘मंथन’ फिल्म उन्होंने हजारों किसानों के सामूहिक सहयोग से बनाई थी, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अनूठा प्रयोग था। मनोरंजन जगत की चटपटी खबरों के लिए यहां क्लिक करें https://deshajtimes.com/news/entertainment/।

अमरीश पुरी ने कहा था ‘चलता-फिरता विश्वकोश’

श्याम बेनेगल की खासियत सिर्फ फिल्म बनाना नहीं थी, बल्कि वे जिस भी विषय पर काम करते थे, उसकी जड़ तक जाते थे। किसी भी कहानी पर हाथ डालने से पहले, वे उसके ऐतिहासिक संदर्भ, सामाजिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक प्रभावों का गहन अध्ययन करते थे। इसी वजह से अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकार उन्हें ‘चलता-फिरता विश्वकोश’ कहा करते थे। अमरीश पुरी अक्सर कहते थे कि श्याम बेनेगल से बात करना किसी मोटी किताब को पढ़ने जैसा है। सेट पर भी वे इतिहास, समाज और मानवीय व्यवहार पर ऐसे दिलचस्प उदाहरण देते थे कि सभी कलाकार दंग रह जाते थे। उनकी यही अध्ययनशील प्रवृत्ति उनकी फिल्मों की गहराई का आधार बनी।

श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को कई ऐसे अनमोल रत्न दिए, जिनकी चमक आज भी बरकरार है। उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, ओम पुरी और अमरीश पुरी जैसे कलाकारों को तराशा, जिनकी अदाकारी की मिसालें आज भी दी जाती हैं। इन सितारों की अद्भुत कलाकारी में उनकी दूरदर्शी दृष्टि की भी अहम भूमिका थी। फिल्मों के साथ-साथ, उन्होंने दूरदर्शन के लिए ‘भारत एक खोज’ जैसा एक ऐतिहासिक और ज्ञानवर्धक धारावाहिक भी बनाया, जिसने करोड़ों भारतीयों को अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति से जोड़ा। यह भी उनकी महान सिनेमाई विरासत का एक अहम हिस्सा है।

अपने बेमिसाल करियर में श्याम बेनेगल को 18 से भी ज्यादा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। देश और सिनेमा के प्रति उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें 1976 में पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण और भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से 2005 में नवाजा गया। उन्होंने राज्यसभा सांसद के रूप में भी देश की सेवा की। उनकी आखिरी निर्देशित फिल्म ‘मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन’ साल 2023 में रिलीज हुई थी, जिसने एक बार फिर उनकी रचनात्मकता और समकालीन विषयों पर पकड़ को दर्शाया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की उम्र में श्याम बेनेगल का निधन भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके जाने से हमने सिर्फ एक महान निर्देशक ही नहीं, बल्कि ज्ञान, समझ और संवेदना से लबरेज एक ऐसे ‘चलता-फिरता विश्वकोश’ को खो दिया है, जिसने सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज का दर्पण बनाया। उनकी फिल्में और उनकी कलात्मक विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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