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दिसम्बर, 24, 2025

क्या भारत-न्यूजीलैंड Free Trade Agreement न्यूजीलैंड के लिए फायदे का सौदा नहीं?

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Free Trade Agreement: भारत और न्यूजीलैंड के बीच बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की घोषणा ने दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में एक नया अध्याय खोल दिया है। जहां एक ओर इसे द्विपक्षीय व्यापार को गति देने वाला कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने इस डील को ‘बकवास’ करार देते हुए इसके ‘फ्री’ और ‘फेयर’ न होने पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जिससे इस समझौते पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।

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क्या भारत-न्यूजीलैंड Free Trade Agreement न्यूजीलैंड के लिए फायदे का सौदा नहीं?

Free Trade Agreement: न्यूजीलैंड के विदेश मंत्री की तीखी प्रतिक्रिया

विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए लिखा, “न्यूजीलैंड फर्स्ट पार्टी आज घोषित भारत-न्यूजीलैंड फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का अफसोस के साथ विरोध करती है। हम मानते हैं कि यह समझौता न तो फ्री है और न ही फेयर।” उन्होंने आगे कहा कि यह डील न्यूजीलैंड के लिए कई मायनों में नुकसानदेह है, खासकर आव्रजन (इमिग्रेशन) के मुद्दों पर उन्हें ‘बहुत कुछ गंवाना पड़ रहा है’। पीटर्स का मानना है कि इस डील से न्यूजीलैंड के नागरिकों को, जिसमें डेयरी क्षेत्र भी शामिल है, बदले में कुछ खास हासिल नहीं हो रहा है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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यह उल्लेखनीय है कि इस समझौते में भारत ने अपने किसानों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए डेयरी उत्पादों (जैसे दूध, घी, मक्खन, चीज़ और क्रीम) को FTA के दायरे से बाहर रखा है। इसका अर्थ है कि इन उत्पादों पर टैरिफ में कोई कमी नहीं की जाएगी। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत अपने विशाल डेयरी सेक्टर को मुक्त व्यापार के लिए कभी नहीं खोलेगा, क्योंकि यह लगभग 70 मिलियन छोटे किसानों की आजीविका का आधार है। यह एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा है जिस पर भारत सरकार कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।

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यह भी पढ़ें:  तनाव के बावजूद मजबूत India-Bangladesh Trade: भारत पर कितनी निर्भर है बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था?

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डेयरी उत्पादों पर भारत का अड़ियल रुख

भारत का यह रुख न्यूजीलैंड के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि न्यूजीलैंड विश्व के सबसे बड़े डेयरी उत्पाद निर्यातकों में से एक है। पीटर्स की आपत्तियों से स्पष्ट है कि न्यूजीलैंड के भीतर इस समझौते को लेकर एक मजबूत राजनीतिक विरोध है। उनकी पार्टी ने चेतावनी दी है कि जब भी यह डील संसद में पेश की जाएगी, वे इसका कड़ा विरोध करेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में यह गतिरोध कैसे सुलझता है और क्या दोनों देश किसी ऐसे बिंदु पर पहुंच पाते हैं, जहां दोनों के हित सुरक्षित रहें। इस समझौते का अंतिम स्वरूप और इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर विशेषज्ञों की पैनी नज़र बनी हुई है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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