MGNREGA: ग्रामीण भारत की धड़कन और रोजगार का आधार माने जाने वाले मनरेगा में मोदी सरकार द्वारा किए गए बदलावों ने देशव्यापी विरोध को जन्म दिया है, जहां किसान मजदूर मोर्चा भारत ने इन संशोधनों को श्रमिकों के भविष्य पर वज्रपात बताया है।
MGNREGA में बड़े बदलाव: मोदी सरकार के फैसलों पर किसान मजदूर मोर्चा का आर-पार का आंदोलन!
MGNREGA में कटौती और केंद्रीयकरण का आरोप
किसान मजदूर मोर्चा भारत (केएमएमबी) ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया विधायी परिवर्तनों की कड़ी आलोचना की है। मोर्चा का आरोप है कि नई नीतियों का मुख्य उद्देश्य देशभर में मनरेगा श्रमिकों को रोजगार के उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित करना है। उनका तर्क है कि डीडीपीओ कार्यालयों और पंचायतों से कार्यान्वयन शक्तियां छीनकर केंद्र सरकार अब कार्य अनुमोदन और रोजगार आवंटन पर अपना नियंत्रण पूरी तरह से केंद्रीकृत कर रही है। इन जनविरोधी बदलावों का विरोध करने के लिए, केएमएमबी ने इस महीने के अंत से जिला स्तरीय प्रदर्शनों की एक श्रृंखला आयोजित करने की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत पंजाब से होगी।
संगठन ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए आवंटित धनराशि में लगभग 40 प्रतिशत की भारी कटौती करके इस महत्वपूर्ण योजना को प्रभावी ढंग से सीमित करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही, पंचायतों और राज्य सरकार के उन संस्थानों—विशेष रूप से डीडीपीओ कार्यालयों—से अधिकार छीने जा रहे हैं, जिन्होंने मनरेगा कार्यों के कार्यान्वयन में दशकों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोर्चा के अनुसार, केंद्र सरकार का यह कदम स्थानीय स्वशासन को कमजोर करने और सभी निर्णयों को अपने हाथ में लेने का प्रयास है, जिससे कौन से कार्य स्वीकृत होंगे और किसे रोजगार मिलेगा, यह सब दिल्ली से तय होगा। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
केएमएमबी का यह भी दावा है कि मनरेगा के तहत अनुमत कार्यों की कई श्रेणियों में कटौती की जा रही है, जिससे रोजगार के अवसर और भी कम हो जाएंगे। अकेले पंजाब में ही लगभग 11-12 लाख जॉब कार्ड धारक हैं, जबकि पूरे भारत में लगभग 12 करोड़ श्रमिक अपनी आजीविका के लिए मनरेगा पर निर्भर हैं। संगठन का गंभीर आरोप है कि इन करोड़ों श्रमिकों को जानबूझकर बेरोजगारी की ओर धकेलकर केंद्र सरकार बड़े कॉरपोरेट घरानों को बेहद सस्ता श्रम उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है, जिससे उनके शोषण का मार्ग प्रशस्त होगा और श्रमिक अधिकार कमजोर होंगे।
आंदोलन की चेतावनी और कठोर मांगें
इन कठोर नीतियों के विरोध में, किसान मजदूर मोर्चा भारत ने एक बड़े आंदोलन की घोषणा की है। मोर्चा ने बताया है कि 29 दिसंबर को पंजाब के विभिन्न जिला मुख्यालयों पर मोदी सरकार का पुतला जलाया जाएगा, जो इन जनविरोधी फैसलों के खिलाफ उनके गुस्से का प्रतीक होगा। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मोर्चा ने अपनी मांगों में स्पष्ट रूप से कहा है कि मनरेगा को उसके पूर्व स्वरूप में तुरंत बहाल और लागू किया जाए। उनकी प्रमुख मांगों में से एक यह भी है कि गारंटीकृत कार्य दिवसों को बढ़ाकर 200 दिन प्रति वर्ष किया जाए और दैनिक मजदूरी को भी बढ़ाकर कम से कम 700 रुपये किया जाए, ताकि श्रमिकों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके। इसके अतिरिक्त, संगठन ने केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए चार श्रम कानूनों का भी कड़ा विरोध किया है, यह आरोप लगाते हुए कि ये कानून देशभर में श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं और उन्हें कारपोरेट के अधीन बनाते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
मोर्चा ने अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए यह दृढ़ संकल्प व्यक्त किया कि श्रमिकों और मजदूरों के अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित होने तक उनका यह संघर्ष लगातार जारी रहेगा। उनका कहना है कि वे तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक मनरेगा को उसके वास्तविक उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से बहाल नहीं कर दिया जाता।
इससे पहले, तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने चेन्नई में विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (वीबी-जी राम जी) अधिनियम के खिलाफ एक विशाल विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में डीएमके और उसके सहयोगी दलों के कई प्रमुख नेताओं ने भाग लिया, जिन्होंने इस नए अधिनियम को मनरेगा से महात्मा गांधी की विरासत को मिटाने का एक सुनियोजित प्रयास बताया। यह आंदोलन दर्शाता है कि मनरेगा में बदलावों को लेकर देशव्यापी नाराजगी है और विभिन्न राज्यों में इसके खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

