Bihar Land Mutation: भूमि के कागजात एक व्यक्ति के जीवन की पूंजी होते हैं, लेकिन जब इन्हीं दस्तावेजों के अपडेट में सरकार का पेंच फंस जाए, तो आमजन का सिर चकराना स्वाभाविक है। बिहार में हजारों दाखिल-खारिज मामले सालों से सरकारी फाइलों में धूल फांक रहे हैं, जिससे भू-स्वामियों की परेशानी बढ़ती जा रही है।
पटना में Bihar Land Mutation के हजारों मामले लंबित, आमजन हलकान; जानें पूरी रिपोर्ट
Bihar Land Mutation: पटना में लंबित मामलों की भयावह स्थिति
राजधानी पटना में दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) के हजारों मामले लंबित पड़े हैं, जिससे आम जनता को अपनी भूमि के स्वामित्व संबंधी अधिकारों को लेकर भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति न सिर्फ प्रशासनिक सुस्ती को दर्शाती है, बल्कि नागरिकों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इन लंबित मामलों के कारण भूमि खरीद-बिक्री से लेकर सरकारी योजनाओं के लाभ तक में अड़चनें आ रही हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिहटा अंचल में 2010, संपतचक में 1267, नौबतपुर में 1635, धनरूआ में 1335, फुलवारीशरीफ में 1397 और दानापुर में 1130 दाखिल-खारिज के मामले अब तक निबटारे का इंतजार कर रहे हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह समस्या किसी एक अंचल तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे जिले में व्यापक रूप से फैली हुई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन मामलों के निबटारे में देरी का मुख्य कारण मानव संसाधन की कमी और ऑनलाइन पोर्टल में तकनीकी खामियां हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ अंचलों में कर्मचारियों की मनमानी भी इसमें एक बड़ा कारक बनती है। भू-अभिलेखों के सही और समय पर अपडेट न होने से नागरिकों को बेवजह न्यायालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
इन सभी अंचलों में, फुलवारीशरीफ की स्थिति सबसे खराब है, जहां दाखिल-खारिज के मामलों की संख्या चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। स्थानीय लोग लगातार शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान होता नहीं दिख रहा। प्रशासन को इस ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि लोगों को समय पर न्याय मिल सके और उनके भू-अधिकार सुरक्षित रहें। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
प्रशासनिक उदासीनता और आमजन की परेशानी
दाखिल-खारिज की प्रक्रिया भूमि के स्वामित्व हस्तांतरण का एक अनिवार्य चरण है। इसके बिना, भूमि पर कानूनी हक स्थापित करना मुश्किल हो जाता है। लंबे समय तक मामले लंबित रहने से भूमि संबंधी विवादों में वृद्धि होती है और विकास कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सरकार को परिमार्जन प्लस जैसे ऑनलाइन पोर्टलों को और अधिक सुदृढ़ बनाने तथा लंबित मामलों के त्वरित निस्तारण के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत है। डिजिटल भू-अभिलेखों को अद्यतन करने की प्रक्रिया को सरल बनाना भी आवश्यक है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं किया जाएगा, तब तक लाखों भू-स्वामियों को अपनी जमीन से जुड़े अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। यह स्थिति सुशासन के दावे पर भी सवाल खड़े करती है।





