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दिसम्बर, 25, 2025

नए लेबर कोड्स: प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों के लिए बड़ी उम्मीद, लेकिन कहां फंसा पेंच?

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New Labour Codes: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए लेबर कोड्स को लेकर लाखों प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों में एक नई उम्मीद जगी थी, खासकर फिक्स्ड टर्म कर्मियों के लिए ग्रेच्युटी नियमों में बड़े बदलाव की घोषणा ने लोगों का ध्यान खींचा था। जहां पहले ग्रेच्युटी के लिए लगातार 5 साल की सेवा अनिवार्य थी, वहीं नए प्रावधानों में इसे घटाकर सिर्फ एक साल कर दिया गया था। यह फैसला कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा था, लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी हकीकत कुछ और ही है। कंपनियां अभी भी पुराने नियमों के तहत ही काम कर रही हैं, और सवाल यह उठता है कि आखिर कर्मचारियों को इस बहुप्रतीक्षित बदलाव का लाभ क्यों नहीं मिल पा रहा है।

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नए लेबर कोड्स: प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों के लिए बड़ी उम्मीद, लेकिन कहां फंसा पेंच?

नए लेबर कोड्स: क्यों नहीं मिल रहा कर्मचारियों को लाभ?

नए लेबर कोड्स के नियमों को लागू करने में हो रही देरी की मुख्य वजह इसके कानून बनाने और लागू करने की प्रक्रिया में निहित है। भारत में लेबर कानून समवर्ती सूची (Concurrent List) के तहत आते हैं। इसका अर्थ यह है कि जहां केंद्र सरकार कानून बनाती है, वहीं इन नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकारों को अपने स्तर पर अलग से अधिसूचनाएं जारी करनी होती हैं। जब तक राज्य सरकारें अपने श्रम कानूनों को अधिसूचित नहीं करतीं, तब तक कंपनियां इन केंद्रीय नियमों को लागू करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं होती हैं। कंपनियों द्वारा नए लेबर कोड्स को लागू न करने के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारण है और यही वजह है कि लाखों कर्मचारियों को ग्रेच्युटी जैसे लाभों का इंतजार करना पड़ रहा है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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कंपनियों का मौजूदा रुख और चुनौतियां

अधिकतर कंपनियां राज्य सरकारों द्वारा नियमों को जारी न किए जाने के कारण अभी भी पुराने श्रम कानूनों के अनुसार ही काम कर रही हैं। वे भविष्य में किसी भी संभावित कानूनी परेशानी या विवाद से बचने के लिए सतर्कता बरत रही हैं। कंपनियां मानती हैं कि अगर वे बिना स्पष्ट दिशा-निर्देशों के नए नियमों को लागू करती हैं, तो उन्हें ऑडिट और जांच प्रक्रियाओं में अनावश्यक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इस वजह से, ग्रेच्युटी के लिए 5 साल की सेवा वाला पुराना नियम ही अभी भी प्रचलन में है, जिससे फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को मिलने वाला एक साल की सेवा पर ग्रेच्युटी का लाभ अधर में लटका हुआ है।

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यह भी पढ़ें:  भारतीय Real Estate ने 2025 में रचे कीर्तिमान: जानें कैसे बदला बाजार का रुख

राज्य सरकारों की सतर्कता और राजनीतिक समीकरण

राज्य सरकारों द्वारा नए लेबर कोड्स को लागू करने में देरी के पीछे कई जटिल कारण हैं। इनमें ट्रेड यूनियनों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) सेक्टर की चिंताओं को ध्यान में रखना प्रमुख है। राज्य सरकारें किसी भी तरह के बड़े फैसले लेने से पहले इन सभी हितधारकों के विचारों और संभावित प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार कर रही हैं। इसके अलावा, नए लेबर कोड्स को लागू करने में देरी के पीछे राजनीतिक और सामाजिक कारण भी माने जा रहे हैं, क्योंकि इन बदलावों का दूरगामी प्रभाव हो सकता है। कुछ राज्यों ने अपने ड्राफ्ट नियम जारी किए हैं, लेकिन अधिकांश राज्यों में अभी भी इन पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श का दौर जारी है। रियल-टाइम बिजनेस – टेक्नोलॉजी खबरों के लिए यहां क्लिक करें: ऐसे में, कर्मचारियों को नए लेबर कोड्स के तहत मिलने वाले अधिकारों और सुविधाओं का लाभ कब तक मिल पाएगा, यह अभी भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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