Guru Gobind Singh Jayanti: पावन पौष माह में दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का प्रकाश पर्व संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन त्याग, बलिदान और धर्म की रक्षा का अप्रतिम उदाहरण है। इस शुभ अवसर पर हम उनके चरणों में श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और उनके आदर्शों को स्मरण करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती: धर्म और शौर्य के प्रतीक दशम गुरु का प्रकाश पर्व
गुरु गोबिंद सिंह जयंती का आध्यात्मिक महत्व
इस विशेष प्रकाश पर्व पर, जब हम गुरु गोबिंद सिंह जी के अद्वितीय साहस को याद करते हैं, तब मन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। उनका “सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियों से बाज लड़ाऊं” का संकल्प केवल एक नारा नहीं, बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए उनके अडिग विश्वास का प्रतीक था। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। गुरु जी का जीवन हमें सिखाता है कि अन्याय के विरुद्ध खड़े होना और कमजोरों की रक्षा करना ही सच्चा धर्म है। धर्म, व्रत और त्योहारों की संपूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और शिक्षाएं
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 1666 ई. में बिहार के पटना साहिब में हुआ था। नौ वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने गुरु गद्दी संभाली और सिख धर्म को नई दिशा प्रदान की। उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने उन्हें धर्म की रक्षा और समाज में न्याय स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। गुरु जी ने अपने जीवनकाल में अनेकों युद्ध लड़े, लेकिन उनका उद्देश्य कभी राज्य विस्तार नहीं था, बल्कि धर्म की मर्यादा और मानवता की रक्षा करना था। उन्होंने समानता, बंधुत्व और सेवा को सर्वोच्च स्थान दिया।
खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोबिंद सिंह जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1699 में खालसा पंथ की स्थापना थी। उन्होंने वैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में ‘पंच प्यारे’ चुने और उन्हें अमृतपान कराकर खालसा योद्धा बनाया। खालसा का अर्थ है ‘शुद्ध’। उन्होंने खालसा को केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा—ये पाँच ककार धारण करने का आदेश दिया, जो उन्हें एक विशिष्ट पहचान देते हैं और उन्हें निडर तथा धर्मपरायण जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। खालसा की स्थापना ने एक ऐसे समाज की नींव रखी जहाँ सभी समान थे और जहाँ धर्म तथा न्याय के लिए लड़ने की शपथ ली जाती थी। यह आज भी हमारे लिए एक महान प्रेरणा है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
उनके प्रेरक संदेश
गुरु गोबिंद सिंह जी ने केवल धार्मिक शिक्षाएं ही नहीं दीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन दर्शन भी प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा था, “मानुस की जात सभै एकै पहिचानबो”—अर्थात सभी मनुष्य एक समान हैं, कोई छोटा या बड़ा नहीं। उन्होंने ज़फरनामा के माध्यम से तत्कालीन मुगल शासक औरंगज़ेब को भी सत्य और न्याय का मार्ग दिखाया। उनके संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। वे हमें साहस, करुणा और निस्वार्थ सेवा का पाठ पढ़ाते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व हमें आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि का अवसर देता है। उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। हमें उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज में सद्भाव, न्याय और समानता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। इस पावन दिवस पर, आइए हम सभी गुरु जी के दिखाए धर्म पथ पर चलने का संकल्प लें और उनके प्रेरणादायक संदेशों को जन-जन तक पहुंचाएं, जिससे हर व्यक्ति उनके आदर्शों से प्रेरणा ले सके।


