Kumbh Mela: समय का चक्र कभी-कभी ऐसे मोड़ ले आता है, जहां कल्पना भी हकीकत के सामने फीकी पड़ जाती है। खोई हुई उम्मीदों की राख से जब जीवन की चिनगारी फिर भड़क उठती है, तो पूरे गांव में कौतूहल और खुशी की लहर दौड़ जाती है।
कुंभ मेला में बिछड़ने की वो कहानी
बिहार के औरंगाबाद जिले में एक ऐसी अविश्वसनीय घटना सामने आई है, जिसने पूरे इलाके को चौंका दिया है। परिवार ने जिस मुखिया को 24 साल पहले कुंभ मेले में बिछड़ने के बाद मृत मान लिया था और विधिवत उनका पुतला बनाकर अंतिम संस्कार भी कर दिया था, वह अब अचानक जीवित घर लौट आए हैं। यह खबर सुनकर न सिर्फ गांव बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी हर कोई अचंभित है। परिवार के सदस्यों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं, जो अपने पिता और पति को फिर से अपने बीच पाकर भावुक हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
आज से करीब दो दशक पहले, परिवार के एक सदस्य कुंभ मेले के दौरान अचानक लापता हो गए थे। काफी खोजबीन के बाद जब उनका कोई पता नहीं चला, तो अंततः परिवार ने उन्हें मृत मान लिया। हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार, उनके पुतले का दाह संस्कार कर दिया गया और पूरे परिवार ने शोक मनाया। 24 साल तक उनकी यादों के साथ जीवन जी रहे परिवार को भला क्या पता था कि नियति ने उनके लिए कुछ और ही लिख रखा था।
हाल ही में, एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। पंजाब के एक आश्रम में उन्हें पहचान लिया गया। यह खबर बिजली की तरह पूरे गांव में फैल गई। गांव वाले और रिश्तेदार सभी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे थे कि जिसे उन्होंने श्रद्धांजलि दे दी थी, वह सचमुच जिंदा है और वापस आ रहा है। इस अनोखे familial reunion (पारिवारिक पुनर्मिलन) की खबर ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
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24 साल बाद कैसे संभव हुआ पुनर्मिलन?
जिस शख्स को परिवार ने सालों पहले खो दिया था, उसकी वापसी की कहानी किसी फिल्म स्क्रिप्ट से कम नहीं है। पंजाब के एक आश्रम में रहने के दौरान, किसी तरह गांव के लोगों को उनके बारे में जानकारी मिली। प्रारंभिक पहचान के बाद जब परिवार के सदस्यों ने पुष्टि की कि यह वही व्यक्ति हैं, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। यह लम्हा पूरे परिवार के लिए बेहद भावुक करने वाला था, जहां खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। गांव के लोगों के लिए भी यह एक ऐतिहासिक क्षण बन गया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जीवन में कुछ भी असंभव नहीं। खोए हुए रिश्ते जब फिर से जुड़ते हैं, तो उनका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस घटना से यह सीख मिलती है कि आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए। 24 साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद, इस परिवार का इंतजार खत्म हुआ और उन्होंने अपने बिछड़े सदस्य को फिर से पा लिया। यह कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपनों को ढूंढ रहे हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।


