Gold Reserve: ब्रिक्स देशों का सोने के भंडार को लगातार बढ़ाना एक ऐसी रणनीति है जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली में बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की इस चाल से दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों की भौंहें तन गई हैं, और इस पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। हाल ही में इस समूह में मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया और ईरान के जुड़ने से इसका भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव और भी बढ़ गया है, जिससे यह वैश्विक मंच पर एक दुर्जेय शक्ति बन गया है।
ब्रिक्स, जिसमें मूल रूप से ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे, को दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के समूह के रूप में गठित किया गया था ताकि उनके बीच व्यापार और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा मिल सके। अब ये देश अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए तेजी से गोल्ड रिजर्व बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। आज के समय में, ब्रिक्स देशों के पास दुनिया के कुल सोने के भंडार का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है। वहीं, ब्रिक्स के गैर-सदस्य देशों, जिनके ब्रिक्स के साथ मजबूत संबंध हैं, को मिलाकर उनके पास दुनिया के कुल गोल्ड रिजर्व का 50 प्रतिशत हिस्सा है।
ब्रिक्स देशों का Gold Reserve बढ़ाने का अभियान
सोने की खरीद के मामले में रूस और चीन सबसे आगे हैं। 2024 में चीन ने 380 टन सोने का उत्पादन किया, जबकि रूस में 340 टन सोने का उत्पादन हुआ। इसी क्रम में सितंबर 2025 में ब्राजील ने 16 टन सोना खरीदा, जो 2021 के बाद उसकी पहली सोने की खरीद थी। इस संदर्भ में, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
या वेल्थ के डायरेक्टर अनुज गुप्ता ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ब्रिक्स सदस्य देश ज्यादा से ज्यादा सोना प्रोड्यूस कर रहे हैं और कम बेच रहे हैं। साथ ही, वे इंटरनेशनल मार्केट से भी सोना खरीद रहे हैं। मौजूदा डेटा के अनुसार, 2020 और 2024 के बीच ब्रिक्स देशों के सेंट्रल बैंकों ने दुनिया के 50 प्रतिशत से ज्यादा का सोना खरीदा। यह जानकारी शायद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सुनना पसंद न आए।”
डॉलर के वर्चस्व को चुनौती
सेंट्रिसिटी वेल्थटेक के इक्विटी हेड और फाउंडिंग पार्टनर सचिन जासूजा ने सोने पर ब्रिक्स की इस दोहरी रणनीति को समझाते हुए कहा, “ब्रिक्स देशों द्वारा सोने के भंडार और सोने की खरीद पर बढ़ता नियंत्रण अमेरिकी डॉलर के दबदबे वाले ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में तनाव का एक अहम संकेत बनकर उभर रहा है। हालांकि, अमेरिकी डॉलर दुनिया की मुख्य रिजर्व करेंसी बनी हुई है, लेकिन हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि इसकी बेजोड़ बादशाहत को अचानक चुनौती देने के बजाय धीरे-धीरे चुनौती दी जा रही है।” यह एक ऐसा कदम है जिस पर आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1, गहनता से नजर रख रहा है।
आज ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक व्यापार का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा हैं। ऐसे में उनके मौद्रिक फैसले दुनिया पर असर डालते हैं। इन देशों का लंबे समय से एक ही मकसद रहा है – अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना। दरअसल, ब्रिक्स देश डॉलर के दबदबे को खत्म करना चाहते हैं और अपने प्रभाव क्षेत्र में नई करेंसी को ताकतवर बनाना चाहते हैं। हालांकि, ट्रंप ब्रिक्स देशों को डॉलर का विकल्प तलाशने को लेकर कड़ी चेतावनी दे चुके हैं। वैश्विक व्यापार और राजनीति के इस बदलते समीकरण में, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1, हमेशा सटीक जानकारी आप तक पहुंचाएगा। रियल-टाइम बिजनेस – टेक्नोलॉजी खबरों के लिए यहां क्लिक करें




