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दिसम्बर, 29, 2025

Indo-Persian Studies सम्मेलन में अररिया कॉलेज के विभागाध्यक्ष का दबदबा: फारसी संस्कृति के संरक्षण पर मंथन

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Indo-Persian Studies: ज्ञान की गंगा जब सरहदों को लांघकर बहती है, तो संस्कृतियों का मिलन होता है। इसी संगम का एक महत्वपूर्ण पड़ाव हाल ही में तब देखा गया जब अररिया कॉलेज के फारसी विभागाध्यक्ष डॉ. जफरुल हसन ने एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सम्मेलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

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Indo-Persian Studies सम्मेलन में अररिया कॉलेज के विभागाध्यक्ष का दबदबा: फारसी संस्कृति के संरक्षण पर मंथन

Indo-Persian Studies: भारतीय विद्वानों का मिलन

भारतीय विद्वानों के एक समूह ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो पर्शियन स्टडीज’ द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण शैक्षिक सम्मेलन में अररिया कॉलेज के फारसी विभागाध्यक्ष डॉ. जफरुल हसन ने भाग लिया। यह सम्मेलन फारसी भाषा और संस्कृति के संरक्षण, प्रचार-प्रसार और उसके महत्व पर केंद्रित था। डॉ. हसन की उपस्थिति ने सीमांचल क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित संस्थान अररिया कॉलेज की शैक्षिक प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय मंच पर और मजबूती प्रदान की है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इस तरह के आयोजनों से न केवल शिक्षाविदों को अपने शोध और विचारों को साझा करने का अवसर मिलता है, बल्कि यह नई पीढ़ी को भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है।

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डॉ. जफरुल हसन ने बताया कि यह सम्मेलन भारत और फारसी जगत के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस प्रतिष्ठित मंच पर उन्होंने अपने विचार और अनुभव साझा किए, जो फारसी भाषा के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होंगे। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर ऐसे सम्मेलनों का प्रभाव गहरा होता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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फारसी भाषा और संस्कृति का महत्व

फारसी भाषा का भारत में एक लंबा और गहरा इतिहास रहा है। यह भाषा न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि इसने भारतीय उपमहाद्वीप की कला, वास्तुकला, संगीत और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला है। मुगलकाल के दौरान फारसी राजभाषा थी और इसके माध्यम से ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान बड़े पैमाने पर हुआ। आधुनिक समय में भी, भारत के कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में फारसी विभाग सक्रिय रूप से फारसी भाषा और साहित्य का अध्ययन करवा रहे हैं। डॉ. हसन जैसे विद्वानों का ऐसे सम्मेलनों में भाग लेना इस परंपरा को जीवित रखने और आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है। संस्थान के विद्वानों का यह समूह भारतीय-फारसी अध्ययनों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस शैक्षिक सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए फारसी विद्वानों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों ने भाग लिया। सभी ने एक स्वर में फारसी भाषा के संरक्षण और उसके आधुनिक संदर्भों में प्रासंगिकता पर जोर दिया। यह आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। ऐसे आयोजनों से भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ती है और युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका मिलता है। अररिया कॉलेज के विभागाध्यक्ष की भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया कि बिहार के सीमांचल क्षेत्र की आवाज़ भी राष्ट्रीय फलक पर सुनी गई।

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