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दिसम्बर, 29, 2025

Islamic scientific thought: मुस्लिम उम्मत की तरक्की का मार्ग वैज्ञानिक चिंतन और इस्लामी शिक्षाओं में

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Islamic scientific thought: समय की नदी में गोता लगाकर जब हम अपने वर्तमान का आकलन करते हैं, तो अक्सर विमर्श के मोती अतीत की गहराइयों से निकलते हैं। आज मुस्लिम उम्मत के सामने भी यही सवाल है कि उसकी तरक्की की राहें कहाँ से होकर गुजरेंगी? जवाब है— वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इस्लामी मूल्यों का संगम।

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Islamic scientific thought: भागलपुर में मुस्लिम उम्मत की तरक्की के मूल मंत्र पर गहन वैज्ञानिक चिंतन

Islamic scientific thought: मस्जिद, शिक्षा और मुस्लिम समाज की नई दिशा

भागलपुर देशज टाइम्स। शहर के एक स्थानीय होटल में शरीफ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित मुहम्मद शरीफ मेमोरियल लेक्चर में मुस्लिम उम्मत की तरक्की के मूल मंत्र पर गहन चिंतन किया गया। इस कार्यक्रम का केंद्रीय विषय था “वैज्ञानिक सोच मुस्लिम उम्मत की तरक्की की बुनियाद”। इस महत्वपूर्ण आयोजन में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के पूर्व कुलपति प्रो. डॉ. असलम परवेज ने मुख्य वक्ता के तौर पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता और मुख्य अतिथि की भूमिका मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, जोधपुर के संस्थापक चांसलर डॉ. अतीक अहमद ने निभाई, जबकि वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी इंडियन लैंग्वेज के हेड ऑफ ट्रेनिंग इक़बाल अहमद विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। देश के कोने-कोने से आए बुद्धिजीवियों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक बड़ी संख्या ने इस वैचारिक गोष्ठी में शिरकत की। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।Islamic scientific thought: मुस्लिम उम्मत की तरक्की का मार्ग वैज्ञानिक चिंतन और इस्लामी शिक्षाओं मेंप्रो. डॉ. असलम परवेज ने अपने संबोधन में मस्जिद, शिक्षा और मुस्लिम समाज की वैचारिक दिशा पर विस्तार से बात करते हुए कहा, “हमें सबसे पहले यह आत्मचिंतन करना होगा कि कहीं हमारी मस्जिदें केवल पत्थर की इमारतें बनकर तो नहीं रह गई हैं? यदि मस्जिद का वास्तविक उद्देश्य ही खत्म हो जाए, तो इसका नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज को झेलना पड़ता है।” उन्होंने मस्जिदों की जमीनों पर कब्ज़े, ‘मस्जिद-ए-ज़िरार’ जैसे विवादास्पद विचारों, चंदे की राजनीति और बिगड़ते सामाजिक हालातों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। डॉ. परवेज ने ज़ोर देकर कहा कि इक्कीसवीं सदी को ज्ञान की पूर्णता का युग बनाना समय की सबसे बड़ी मांग है। उन्होंने कहा कि यह सदी न तो अधूरे दीन की हो सकती है और न ही अधूरी शिक्षा की, बल्कि इसे पूर्ण इस्लाम और पूर्ण शिक्षा की सदी होना चाहिए। इस संदर्भ में मुस्लिम शिक्षा सुधार एक अहम कदम है।डॉ. परवेज ने इस बात को स्पष्ट किया कि इस्लाम और वैज्ञानिक सोच के बीच कोई टकराव नहीं है। उनके अनुसार, “मुसलमानों के उत्थान की बुनियाद हमेशा से ही वैज्ञानिक दृष्टि, गहन शोध, अवलोकन और प्रश्न पूछने की परंपरा रही है।” उन्होंने आगे कहा कि अगर हम वास्तव में क़ुरआन मजीद की शिक्षाओं का अनुसरण करें, तो महिलाओं के अधिकार, समानता, न्याय और मानवीय गरिमा स्वतः ही समाज में स्थापित हो जाएगी।बीबीसी इंडियन लैंग्वेज के वरिष्ठ पत्रकार इक़बाल अहमद ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि आज इस्लाम की खूबसूरत शिक्षाएँ केवल मस्जिदों की चारदीवारी तक ही सीमित होकर रह गई हैं। व्यावहारिक जीवन में हम क़ुरआन के आदेशों का पालन नहीं करते, और “एक ही सफ़ में महमूद और अयाज़” का आदर्श सिर्फ एक नारा बनकर रह गया है। उन्होंने मुस्लिम समाज को आत्मचिंतन की ओर प्रेरित करते हुए कहा, “दोष किसी एक संगठन, किसी आलिम या किसी नेता का नहीं है। अगर हमारी संस्थाएँ हमें सही मार्ग नहीं दिखा रही हैं, तो यह हमारी अपनी भूल है कि हमने क़ुरआन को अपना सच्चा मार्गदर्शक नहीं बनाया।” देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, “मुसलमानों ने इस्लाम को नहीं बचाया, बल्कि इस्लाम ने ही मुसलमानों को बचाया है।” इक़बाल अहमद ने इस बात पर जोर दिया, “‘आई लव मुहम्मद ﷺ’ कहने से पहले हमें यह तय करना होगा कि हमें वास्तव में हज़रत मुहम्मद ﷺ से प्रेम है या नहीं, क्योंकि प्रेम का असली प्रमाण आज्ञाकारिता और अमल में ही होता है।” आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।इक़बाल अहमद ने शिक्षा, रोज़गार और महिलाओं से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विशेष ज़ोर देते हुए कहा कि दीन के साथ-साथ शिक्षा, आर्थिक संघर्ष और सामाजिक सुधार की अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से आग्रह किया कि उन्हें कम से कम एक साझा कार्यक्रम (Minimum Program) तय करना चाहिए। जो काम नहीं हो सकता, उसे खोजने के बजाय जो किया जा सकता है, उसे ईमानदारी से करना चाहिए। अपने उद्बोधन के समापन पर उन्होंने कहा, “हर इंसान में पूर्णता की तलाश न करें। सकारात्मक पहलुओं को सामने रखकर आगे बढ़ें। किसी भी काम को शुरू करने से पहले उसके परिणाम के डर में न पड़ें, क्योंकि सकारात्मक प्रयास स्वयं ही मार्ग प्रशस्त करते हैं।” उन्होंने सबको याद दिलाया कि क़यामत के दिन हर व्यक्ति से उसके कर्मों का ही हिसाब लिया जाएगा।

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इतिहास से सीख और बौद्धिक पतन की चुनौतियाँ

वरिष्ठ पत्रकार इक़बाल अहमद ने इस बात पर जोर दिया कि केवल वही कौमें जीवित रहती हैं, जो अपने इतिहास से जुड़ी रहती हैं। जो कौमें अपनी तारीख़ को भूल जाती हैं, वे अपना अस्तित्व भी खो देती हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज़करिया सिद्दीकी ने ध्यान दिलाया कि दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक होने के बावजूद पिछड़ेपन का शिकार हैं। इसका मुख्य कारण बौद्धिक और वैज्ञानिक पतन है। उन्होंने मुसलमानों के स्वर्णिम युग का उल्लेख करते हुए बताया कि अरबी विज्ञान के स्वर्ण युग में मुस्लिम वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया का नेतृत्व किया था और उस दौर के शीर्ष वैज्ञानिकों में मुस्लिम विद्वान शामिल थे। डॉ. सिद्दीकी ने ज़ोर देकर कहा कि क़ुरआनी सोच में अक़्ल (बुद्धि) के साथ-साथ दिल की भी भागीदारी आवश्यक है, और हमारे सभी निर्णयों में क़ुरआन ही हमारा सच्चा मार्गदर्शक होना चाहिए।सैयद शाह अली सज्जाद ने नीयत और इख़लास (निष्ठा) पर बात करते हुए कहा कि इख़लास बड़ी मुश्किल से आता है, लेकिन ज़रा सी चूक पर वह समाप्त भी हो जाता है। उन्होंने आज के समाज पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकतर लोग यही चाहते हैं कि वे खुद बच जाएँ, भले ही दूसरे को नुकसान हो। सज्जाद ने आगे कहा कि जिन लोगों ने वास्तव में दीन का काम किया, वे सच्चे और मخلص थे, भले ही कोई उनकी बात सुने या न सुने। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। डॉ. इम्तियाज़ुर रहमान ने इस तरह की वैचारिक बातचीत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे अवसर बहुत कम मिलते हैं, जबकि हमारे समाज में प्रतिभा, समझ और काम करने का जज़्बा रखने वालों की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज सम्मान और पहचान उन्हीं को मिलती है, जो नवाचार (Innovation) और पुनर्नवीनीकरण (Renewal) की प्रक्रियाओं से गुजरते हैं।कार्यक्रम का आगाज़ तिलावत-ए-क़लाम-ए-पाक से हुआ, जिसने पूरे माहौल को आध्यात्मिक बना दिया। उद्घाटन भाषण में शरीफ मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी जनाब अकमल शरीफ ने ट्रस्ट के उद्देश्यों और इस कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा पर प्रकाश डाला। मौलाना अता-उर-रहमान मिफ़्ताही ने अपने संबोधन में मरहूम हाजी मुहम्मद शरीफ से अपने संबंधों का उल्लेख करते हुए आयोजन के लिए आयोजकों की सराहना की। डॉ. हबीब मुरशिद ख़ान ने हाजी मुहम्मद शरीफ का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए इस्लामनगर कॉलोनी, बरहपुरा क्षेत्र में उनके द्वारा की गई उल्लेखनीय सेवाओं का जिक्र किया। इस महत्वपूर्ण वैचारिक मंथन में बड़ी संख्या में महिलाएँ और पुरुष उपस्थित थे। प्रमुख प्रतिभागियों में प्रो. डॉ. शाहिद रिज़वी, मुहम्मद शौकत, डॉ. नकी अहमद जान, मुहम्मद शब्बीर, एहसानुल हक़ आज़मी, मुहम्मद सज्जाद, तस्नीम कौसर, अक़दम सिद्दीकी, मुहम्मद शहबाज़, दाऊद अली अज़ीज़, असद इक़बाल रूमी जैसे कई गणमान्य व्यक्ति शामिल थे। कार्यक्रम के अंत में जनाब मुहम्मद महमूद आलम ने सभी उपस्थित लोगों और आयोजकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

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