Patna Mutation: कागजों के दलदल में फंसी उम्मीदें, सरकारी वादों की टूटी डोरियां, पटना के प्रशासनिक गलियारों में फिर एक बार सवाल खड़े हो गए हैं।
पटना म्यूटेशन: हजारों मामले लंबित, क्या जनता को नहीं मिलेगा इंसाफ?**
पटना म्यूटेशन: लंबित मामलों का बढ़ता बोझ
पटना जिले में जमीन से जुड़े प्रशासनिक कामकाज की सुस्त रफ्तार पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। दाखिल-खारिज, जिसे आम बोलचाल में म्यूटेशन कहते हैं, उसके 17,242 मामले अभी भी लंबित पड़े हैं। यह स्थिति तब है, जब राज्य सरकार ने इन सभी मामलों के निष्पादन के लिए 31 दिसंबर की समय-सीमा तय कर रखी थी। सरकार द्वारा निर्धारित समय-सीमा बीत जाने के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर मामलों का लटका रहना प्रशासनिक ढिलाई और जनता की परेशानी को दर्शाता है।
डिप्टी सीएम सह राजस्व मंत्री विजय सिन्हा ने स्वयं इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाते हुए त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। भू-अभिलेख के इन महत्वपूर्ण मामलों के लंबित रहने से न केवल आम जनता को परेशानी हो रही है, बल्कि इससे जमीन संबंधी विवादों में भी बढ़ोतरी की आशंका है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। अधिकारी और कर्मचारियों की जवाबदेही पर अब सवाल उठने लगे हैं।
विभागीय निष्क्रियता और जनता की परेशानी
दाखिल-खारिज की प्रक्रिया जमीन के स्वामित्व को कानूनी रूप से मान्यता देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके बिना जमीन की खरीद-बिक्री के बाद भी मालिकाना हक अधूरा रहता है, जिससे भविष्य में कई तरह की कानूनी अड़चनें आ सकती हैं। हजारों की संख्या में मामलों का लंबित रहना यह बताता है कि या तो संबंधित विभाग में कार्यबल की कमी है, या फिर अधिकारियों की ओर से अपेक्षित गंभीरता नहीं बरती जा रही है। इसका सीधा खामियाजा उन आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जो अपनी गाढ़ी कमाई से जमीन खरीदते हैं और फिर सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर होते हैं।
इस मामले में उदासीनता पर तत्काल संज्ञान लेना आवश्यक है, ताकि जनता को समय पर न्याय मिल सके और प्रशासनिक व्यवस्था पर उनका भरोसा कायम रहे। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। कई लोग तो इन चक्करों में थक हार कर बैठ जाते हैं और बिचौलियों के चंगुल में फंस जाते हैं, जिससे भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलता है।
## भविष्य की चुनौतियां और सरकार की भूमिका
राजस्व विभाग को इन लंबित मामलों को निपटाने के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। इसमें अधिकारियों की जवाबदेही तय करना, ऑनलाइन प्रक्रियाओं को और सुदृढ़ करना तथा समय-समय पर प्रगति की समीक्षा करना शामिल होना चाहिए। यदि यह संकट इसी तरह जारी रहता है, तो बिहार में भू-अभिलेख प्रबंधन और भी जटिल हो जाएगा, जिससे सरकार की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह केवल पटना जिले का मामला नहीं है, बल्कि यह राज्य भर में फैले जमीन संबंधी प्रशासनिक चुनौतियों का एक प्रतिबिंब है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को प्राथमिकता के साथ देखे और सुनिश्चित करे कि भविष्य में ऐसी समय-सीमाएं केवल कागजी खानापूर्ति बनकर न रह जाएं, बल्कि उनका प्रभावी ढंग से पालन हो।






