भाई-बहन के असीम प्यार और स्नेह के पर्व रक्षाबंधन में अब कुछ ही घंटे शेष रह गए हैं, 22 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा।
इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन बहुत ही बेहतरीन योग बन रहे हैं। बहनें अपने भाई की कलाई पर सूर्योदय काल से लेकर शाम 5:10 बजे तक राखी बांध सकती हैं, यह शुभ योग है।
पंडित आशुतोष झा ने बताया कि रक्षा सूत्र बांधते समय ”येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल” मंत्र पढ़ने से सर्वांगीण कल्याण होगा। इधर, रक्षाबंधन को लेकर बहनों ने तैयारी पूरी कर ली है। भाई भी बहन को आशीर्वाद रूपी उपहार देने के लिए खरीदारी कर रहे हैं।
शहर से लेकर गांव तक के बाजारों में राखी की दुकानें सजी हुई है, जहां पर बहनें अपने पसंद की राखी खरीद रही है। बाजार में पांच रूपया से लेकर 50 हजार तक की राखी उपलब्ध है। दुकानदार विभिन्न ब्रांडेड कंपनी के साथ-साथ लोकल में बनी राखी भी बेच रहे हैं।
ज्वेलरी दुकानों में सोने एवं चांदी की राखी बनाई गई है। रक्षाबंधन को लेकर हर ओर उल्लास का माहौल है लेकिन बेगूसराय समेत बिहार के और कई इलाकों में आई प्रलयंकारी बाढ़ का रक्षाबंधन के बाजार पर भी व्यापक असर पड़ा है।
बेगूसराय की ही सिर्फ बात करें तो रक्षाबंधन के मौके पर एक करोड़ से अधिक का कारोबार होता था, लेकिन बाढ़ के कारण बेगूसराय जिला मुख्यालय, बलिया, साहेबपुर कमाल, बरौनी, तेघड़ा, और बछवाड़ा के बाजारों में ना तो मिठाई बनने के लिए पर्याप्त मात्रा में दियारा से दूध आ रहे हैं और ना ही बहनें राखी खरीदने के लिए भीड़ जुटाकर आ रही हैं।
बाढ़ग्रस्त इलाकों में किसी तरह से रक्षाबधन मनाए जाने की तैयारी बहनों ने कर रखी है। इधर, बाजार में कच्चा धागा से बने राखी से लेकर सिंथेटिक राखी तक की धूम मची हुई है। जिसमें सबसे अधिक बिक्री दस से लेकर एक सौ तक के राखी की हो रही है।
कचहरी रोड के राखी दुकानदार मनोज कुमार एवं विनोद राय ने बताया कि बाजार में राखी दुकानों की भरमार है। 15 दिन से राखी की बिक्री हो रही है, लेकिन आज से बिक्री कुछ अधिक बढ़ी है। ब्रांडेड राखी के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर महिलाओं द्वारा तैयार की गई राखी की भी डिमांड है।
राखी के दाम में पिछले साल की तुलना में कोई वृद्धि नहीं हुई है लेकिन बिक्री कम है, जिससे घाटा की उम्मीद लग रही है, जिसके कारण न्यूनतम मूल्य पर राखी बेच रहे हैं।
फिलहाल हर ओर रक्षाबंधन की धूम मची हुई है तथा शहर से लेकर गांव तक की गलियों में रक्षाबंधन के पारंपरिक गीत बज रहे हैं, बच्चों में अलग ही उत्साह का माहौल है।
पंडित आशुतोष झा ने बताया कि रक्षाबंधन के संबंध में ग्रंथों में कई कथाएं पर्व से जुड़ी हैं। जिसमें एक कथा विष्णु भगवान के वामन अवतार और राजा बली की भी है।
वामन अवतार में भगवान विष्णु, राजा बली की कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न होकर पाताल लोक चले जाते हैं। तब मां लक्ष्मी ने राजा बली को श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधा और विष्णु को वापस आ गई। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट लगी तो द्रौपदी ने साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था। तभी से रक्षाबंधन का त्यौहार चल रहा है और आज भी पारंपरिक तरीके से मनाया जा रहा है।




