
दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। प्लास्टिक प्रदूषण हटाने में सरकारी नीतियों का अहम योगदान है। भारत के कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक कैरी बैग के उत्पादन, बिक्री व प्रयोग पर रोक लगाई गई है। साथ ही री-यूज, री-साइकिल व रिड्यूज इन तीनों तरीकों को अपनाकर भारत सरकार प्लास्टिक प्रदूषण हटाने के लिए कमर कस चुकी है। यह बात कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ. अरविंद कुमार झा ने प्लास्टिक प्रदूषण हटाने में सरकारी नीति की भूमिका पर आयोजित सेमिनार सह क्विज प्रतियोगिता को संबोधित करते हुए कही। स्वयंसेवी संस्था डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन व आईक्यूएसी, एमआरएम कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. झा ने कहा कि सरकारी नीति तभी परवान चढ़ेगी जब इसमें आमलोग अपना सक्रिय योगदान देंगे। गर्वमेंट की पॉलिसी भी आमलोगों को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती है। इसलिए हर व्यक्ति का परम कर्तव्य बनता है कि वो क्षणिक सुविधा के चक्कर में पॉलीथिन कैरी बैग का इस्तेमाल न करें। अन्यथा जुर्माना के साथ दंड के भागी भी बन सकते है। रसायन शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. विवेकानंद झा ने कहा कि हमारे पर्यावरण को प्लास्टिक प्रदूषण काफी तेज से नुकसान पहुंचा रहा है। प्लास्टिक से उत्पन्न कचरे का निस्तारण मुश्किल से हो पाता है। इसलिए इसके प्रयोग पर रोक ही सर्वोत्तम उपाय है। प्लास्टिक के प्लेट, कटोरी, चम्मच, ग्लास बाजार में उपलब्ध है और ये न सिर्फ सस्ते हैं बल्कि इसके प्रयोग में भी असानी होती है। पर यह पर्यावरण के लिए घातक है। इसलिए कार्यक्रमों, उत्सवों, शादी-विवाह, भोज-भंडारे में प्लास्टिक से बने समानों का उपयोग आमजन ना करें। रसायन शास्त्र विभागाध्यक्ष ने प्लास्टिक निर्माण और उससे होनवाले नुकसानों का विस्तृत वर्णन किया तथा बतलाया कि प्लास्टिक सिर्फ सस्ता होने के कारण ही चलन में है, अन्यथा यह पर्यावरण के लिए घातक है।

फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने बताया कि वर्ष 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी करते हुए भारत सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को 2022 तक समाप्त करने की घोषणा की थी। सरकार की नीति इस प्रतिबद्धता को पूर्ण करने में लगी हुई है। अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. गजाला उर्फी ने कहा कि चूंकि हम प्लास्टिक के उपयोग के आदि हो चुके है इसलिए इसे एकाएक बंद करने में दिक्कतें आ रही है। हालांकि हम उन प्लास्टिक उत्पादों को आसानी से बंद कर सकते है, जिसके इको फ्रेंडली विकल्प उपलब्ध है। जैसे प्लास्टिक के कैरी बैग की जगह हम जूट, कपड़े या पेपर के बने थैलों का उपयोग कर सकते हैं। उसी तरह पार्टी और उत्सवों में प्लास्टिक के बने प्लेट-ग्लास आदि की जगह कागज या वृक्ष के पत्तों से बने प्लेट-ग्लास का उपयोग कर सकते हैं। कहने का मतलब यह है कि प्लास्टिक का विकल्प मौजूद है। भले ही उसके प्रयोग के शुरूआती चरणों में हमें कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा पर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमें यह मुश्किल झेलनी होगी। इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ.अजय कुमार झा ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों, राष्ट्रीय संप्रदाओं, समु्द्री तटों व जंगलों में प्लास्टिक प्रदूषण को हटाने के लिए सरकारी तंत्र तैयार है, पर हमारे घरों में जो प्लास्टिक प्रदूषण मौजूद है उससे निपटारा हमें स्वयं करना होगा। तभी जाकर सरकारी नीति सही मायने में जमीन पर उतरेगी। इस अवसर पर आयोजित क्विज प्रतियोगिता में महाविद्यालय के विभिन्न संकायों में अध्ययनरत छात्राओं ने भाग लिया। प्लास्टिक प्रदूषण से निजात के उपायों को भी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो. प्रीति झा, डॉ. पुतुल सिंह, राजकुमार गणेशन, अनिल कुमार सिंह, नवीन कुमार, मनीष आनंद, डॉ. निशा सक्सेना, डॉ. शीला यादव, डॉ. शशि श्रीवास्तव, श्वेता कुमारी, शिवानी कुमारी, सोनाली, सिल्की समेत दर्जनों की संख्या में छात्र मौजूद थे।



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