बेगूसराय। मां भगवती की पूजा कर शक्ति पाने का व्रत नवरात्र शुरू होने में अब तीन दिन शेष रह गए हैं। सात अक्टूबर को कलश स्थापन और मां भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना के साथ नवरात्र शुरू हो जाएगा। इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका के मद्देनजर किसी भी प्रकार के मेला के आयोजन पर रोक लगा दी गई है।
पंडाल भी विशेष थीम पर नहीं बनाए जाएंगे लेकिन भगवती की पूजा अर्चना भव्य तरीके से सादगी पूर्ण माहौल में होगी। इसको लेकर बेगूसराय के तीन सौ से अधिक मंदिरों में कलाकार प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर पूजा-अर्चना के लिए गंगाजल लेने के लिए गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है।
पिछले तीन दिनों से लगातार रुक-रुक कर हो रही बारिश के बावजूद बेगूसराय के पावन गंगा तट सिमरिया घाट में सिर्फ बेगूसराय जिला ही नहीं, दूरदराज से भी बड़ी संख्या में लोग जुट रहे हैं।
दरभंगा-मधुबनी समेत पूरे प्रदेश और नेपाल के श्रद्धालुओं का मां दुर्गा को समर्पित आस्था
समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, लखीसराय, नवादा, नालंदा, शेखपुरा, जमुई, गया, जहानाबाद के अलावे नेपाल तक से लोग आ रहे हैं। रविवार को भी झमाझम बारिश के बीच हजारों लोगों ने सिमरिया में गंगा स्नान किया। इसके बाद मां गंगा समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर गंगाजल लेकर अपने-अपने घरों के लिए रवाना हुए।
पंडित आशुतोष झा ने बताया
ज्योतिष अनुसंधान केंद्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (पैरवा) के दिन सात अक्टूबर को 03:38 शाम तक कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त है। भगवती का आगमन डोली पर हो रहा है, जो कष्टदायक मरणप्रद है, इसलिए पूरी निष्ठा और पवित्रता के साथ नवरात्रि व्रत करनी चाहिए।
आठ अक्टूबर को द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारी स्वरूप, नौ अक्टूबर को तृतीय स्वरूप चन्द्रघण्टा, दस अक्टूबर को चौथे स्वरूप कूष्माण्डा तथा 11 अक्टूबर को पंचमी तिथि 06:39 पूर्वाहन तक है, उसके बाद षष्ठी का प्रवेश होता है।
इसी दिन भगवती के पंचम स्वरूप स्कंदमाता एवं षष्ठ स्वरूप कात्यायनी की पूजा होगी, गज पूजा एवं बेल आमंत्रण दिया जाएगा।
इसके बाद 12 अक्टूबर को सप्तम स्वरूप कालरात्रि की पूजा, पत्रिका प्रवेश एवंं सरस्वती आह्वान होगा। 13 अक्टूबर को आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा, अष्टमी व्रत, संधी पूजा, निशा पूजा एवंं रात्रि जागरण होगा।
बुधवार को अष्टमी रहने केे कारण विशेष शुभ मुहूर्त बन रहा है, इस दिन दीक्षा ग्रह का भी हस्त नक्षत्र में सर्वार्थ सिद्धि योग है। 14 अक्टूबर को माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा, हवन और बलि प्रदान होगा।
इसके बाद 15 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन सुबह में अपराजिता पूजा, कलश विसर्जन, जयंती धारण और नवरात्र पारण के साथ नीलकंठ दर्शन करना चाहिए। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है तथा किसी भी दिशा में यात्रा की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि नवरात्र के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन और भगवती की लाल अड़हुल के फूल से पूूूजा विशेष फलदायक होता है। इधर पिछले दो साल से मेला नहीं लगने के कारण इस वर्ष कोरोना का कहर कम होने से लोगों ने तैयारी कर रखी थी, लेकिन प्रशासन द्वारा मेला के आयोजन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।
डीएम अरविंद कुमार वर्मा ने बताया कि मेला आयोजन के दौरान लापरवाही से कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए दुर्गा पूजा का आयोजन सीमित तौर पर ही किया जाए तथा मंदिर में पूजा स्थल-मंडप का निर्माण किसी विशेष थीम पर नहीं किया जाए, क्योंकि इससे भीड़ होने की संभावना होगी।
सभी लोगों का प्रयास रहे कि दुर्गा पूजा का आयोजन मनोरंजन भाव के बदले केवल धार्मिक भावनाओं तक निहित हो तथा इस दौरान किसी भी प्रकार का मेले का आयोजन नहीं किया जाए।
विसर्जन जूलूस की अनुमति नहीं दी जाएगी तथा निर्धारित तरीके से चिन्हित स्थानों पर ही विर्सजन किया जाएगा। रावण दहन समेत किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं होगी।