शहर में मच्छर बेहिसाब हैं। पहले गर्मी में दिखती थी अब ताक सर्दी की धूप में, रजाई की छांव में, शहर की भीड़ में, कूड़े के ढेर में, पानी के गंदे संग्रह में, मच्छर मिल ही जाता है हर राह में, कभी डेंगू फैलाकर कभी मलेरिया की टेबलेट कभी चिकनकुनिया हो या ज़ीका हर बीमारी फ़ैलाने का उसके पास है तरीका मगर हमारे नगर निगम के साहेब हैं पूरी तक मस्ती में हैं। इधर मच्छर है, गंदे जल को दूर भी रखें, घर में ओडोमॉस, आल आउट जला लें। देर रात घर में पूरे कपड़े ही पहन लें, यह सब सावधानी के बाद भी एक अदद मच्छर किसी को न छोड़े। पहले जब ठंडक में मच्छर कम हो जाती थी तब लोग यह समझते थे गरमी व बारिश आएगी तभी मच्छर बहुत सताएगी, भिन-भिन करके शोर मचाएगी मगर अब तो भीषण ठंड में भी खून चूस कर दम ले रही है कभी डेंगू कभी फीवर कर दे रही है। नगर निगम के अधिकारी चैन में हैं क्योंकि दादा कहते हैं, गौर फरमाइएगा साहेब, चाहकर भी आप उसे मार नहीं पाए क्योंकि उसकी रगों में आप ही का खून है।
गौर फरमाइएगा साहेब, आप उसे मार नहीं पाए क्योंकि उसकी रगों में आप ही का खून है
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