बिहार में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में अब तक हुए मतदान और मतगणना ने निवर्तमान जनप्रतिनिधियों के इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र की बखिया उधेड़ दी है।
85% से अधिक जनप्रतिनिधियों को करना पड़ा हार का सामना
अब तक के हुए मतगणना में पूरे बिहार में 85 प्रतिशत से अधिक जनप्रतिनिधियों को हार का सामना करना पड़ा है। हमेशा से बदलाव की धरती रही रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि बेगूसराय ने भगवानपुर, वीरपुर और डंडारी प्रखंड के 90 प्रतिशत मुखिया सहित अन्य जनप्रतिनिधियों को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
वहीं, दरभंगा के बहेड़ी प्रखंड में अस्सी फीसद सीट पर निवर्तमान के हाथ से छिन गई है मुखिया की कुर्सी। पचीस में से पांच निवर्तमान ही जीतने में कामयाब रहे।
राजनीति और समाज नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले दरभंगा के चंदन सिंह कहते हैं कि शौचालय से लेकर आवास तक मचाए गए भ्रष्टाचार ने मुखिया को ले डूबा। शौचालय में दो-दो हजार खाना महंगा पड़ गया, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की ओर से
सभी गरीबों को छत देने के लिए लगातार आवास योजनाा चलाए जा रहे हैं लेकिन यह योजना भी मुखिया और वार्ड सदस्य के लिए कामधेनु गाय बन गया, आवाास योजना देने के नाम पर 20 से 40 तक रुपया वसूला गया। कर्ज पर उठाकर लोग से एडवांस में रुपया लिया गया, रुपया देने के साल-साल भर बाद जाकर योजना का लाभ मिला, बहुत लोग पैसा देकर आज तक चक्कर लगा रहे हैं, जनता भेड़ है जो आता है वो मुंडन कर चला जाता है।
दरभंगा के बहेड़ी के आशुतोष कुमार बताते हैं, श्रमिकोंं के लिए सरकार के शुरू किये गये मनरेगा करोड़पति बनने का रास्ता बन गया। न्याय देने के लिए चुने गए सरपंच लोगों को केस में उलझाते रहे, पंचायत समिति सदस्य प्रमुख बनाने-गिराने के लिए वसूली करते रहे, जिला परिषद सदस्य
कमीशन मेंं उलझ गए। पंचायतों की जो अंदरूनी हालत थी, उसे सभी लोगों को बताने में बीते वर्षो में सोशल मीडिया ने चमत्कार किया। हर छोटी बड़ी चीज-समस्याएं सोशल मीडिया पर वायरल होती रही, इससे मतदाता तक सही बात पहुंची और उन्होंने चुपके-चुपके जनप्रतिनिधियों को खारिज कर दिया गया।
वहीं, बेगूसराय के रामकृष्ण ने कहा कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के व्यवस्था से परेशान होकर लिखी गई कविता ”दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” आज एक बार फिर सच हो रही है। मिट्टी की मूर्ति की तरह मूर्तिमान रहने वालों ने आज अपना मुंह खोल दिया है, वेदना को सहनेवाली जनता हुंकार भर रही है।
जनता का रुख जिधर जाता है उधर बवंडर उठने लगते हैं, खेत-खलिहानों में रहने वाली प्रजा ने अपना मुंह नहीं, भावना को खोल दिया है। दिनकर द्वारा कही गई सदियों की ठंढी और बुझी हुई राख में सुगबुगाहट दिखायी पड़ रही है, क्रांति की बदलाव रूपी चिनगारी अपनी गरमी के साथ प्रज्ज्वलित रूप ले रही है।
मिट्टी यानी जनता सोने का ताज पहनने के लिए आकुल-व्याकुल है, जनता के रथ के पहियों की घर्घर आवाज साफ सुनायी पड़ रही है। जनप्रतिनिधियों अब भी चेतो और सिंहासन खाली करो-देखो जनता आ रही है।
लंबे समय से पीड़ित, शोषित, दमित जनता के सुलगते-उभरते क्रांतिकारी भावनाओं के आगे सभी लुटेरे जनप्रतिनिधि चित हो गए हैं, नए पद पाने वाले जनप्रतिनिधियों और अगले चरण के उम्मीदवारों को जनता ने चुप रह कर अपनी भावनाओं से सबको अवगत कराते हुए समय चक्र को समझने के लिए विवश किया है।