लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय के साथ कल यानि सोमवार को हो जाएगी। 9 नवंबर को खरना पूजा होगी, 10 नवंबर को पहला अर्घ्य और 11 नवंबर को दूसरे अर्घ्य के साथ छठ पर्व का महानुष्ठान खत्म हो जाएगा।
36 घंटे तक व्रती निर्जला उपवास करेंगे। छठ महापर्व को लेकर आज निरामिष दिवस है। सोमवार को कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को मूल नक्षत्र और सुकर्मा योग में नहाय-खाय होगा। छठ व्रती नहाय-खाय के दिन गंगा नदी या स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करके भगवान भास्कर को जलार्घ्य देंगे। चार दिवसीय अनुष्ठान की सफलता हेतु प्रार्थना करेंगे।
फिर पूरी पवित्रता से तैयार अरवा चावल की भात, चना दाल, कद्दू की सब्जी, आंवले की चटनी, पकौड़ी आदि ग्रहण कर अनुष्ठान आरंभ करेंगे। साथ ही प्रसाद के लिए मंगवाए गए गेहूं को गंगाजल में धोकर सुखाया जाएगा।
कार्तिक शुक्ल पंचमी यानी मंगलवार 9 नवंबर को खरना पूजा होगी। उसके बाद 10 नवंबर को पहला अर्घ्य और 11 नवंबर की सुबह प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद व्रती पारण करेंगे। खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास कर शाम में भगवान भास्कर की पूजा कर खीर-रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगे।
10 नवंबर दिन बुधवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। जबकि गुरुवार 11 नवंबर को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर आशीर्वाद लिया जाएगा। माना जाता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठी मइया प्रसन्न होती हैं और परिवार को सुख, शांति, धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। साथ ही असाध्य रोग, कष्ट, शत्रु का नाश, सौभाग्य तथा संतान की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ऋषि-मुनियों के श्राप के कारण कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे। जब भगवान कृष्ण के पुत्र शाम्ब को श्राप से कुष्ठ रोग हुआ तब वे अत्यन्त चिंतित हो गए। तब उन्हें उनके मंत्रियों ने सलाह दी कि शाकद्वीप (वर्तमान-ईरान) में इस रोग को ठीक करने वाले देवतुल्य ब्राहम्ण रहते हैं। शाम्ब ने वहां के अट्ठारह परिवारों को सम्मान पूर्वक मगध की धरती पर बुलवाया।
इन शाकद्वीपीय ब्राह्मणों ने उलार के तालाब में स्नान कर सवा महीने तक सूर्य की उपासना करने की सलाह शाम्ब को दी। इससे वे कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए थे। ठीक होने के बाद उन्होंने 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सूर्य की उपासना करने को कहा। इसके बाद शाम्ब ने उलार्क, लोलार्क, औंगार्क, देवार्क, कोणार्क समेत 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर बनवाए। इसके बाद से पूरे मगध सहित पूर्वांचल के क्षेत्रों में सूर्य उपासन का महापर्व छठ मनाया जाने लगा।
देश के 12 सूर्य मंदिरों में एक है पटना जिले का उलार सूर्य मंदिर। प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में पीड़ित लोग स्नान कर सूर्य को जल व दूध अर्पित करते हैं। देश के 12 आर्क स्थलों में कोणार्क और देवार्क (बिहार का देव) के बाद उलार (उलार्क) भगवान भास्कर की सबसे बड़े तीसरे सूर्य आर्क स्थल के रूप में जाना जाता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक सच्चे मन से जो नि:संतान सूर्य की उपासना करते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। पुत्र प्राप्ति के बाद मां द्वारा आंचल में पुत्र के साथ नटुआ व जाट-जटिन के नृत्य करवाने की भी परंपरा है।
इतिहास के अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर बने मंदिर को तोड़वा दिया था लेकिन भक्तगण जीर्ण-शीर्ण मंदिर के ऊपर लगे पीपल के पेड़ व भगवान सूर्य की प्रतिमा की पूजा करते रहे। सन् 1948 में पहुंचे सन्त सद्गुरु अलबेला बाबाजी महाराज ने पीपल के पेड़ की पूजा अर्चना की, जिसके प्रभाव से पीपल का पेड़ सूख गया। उसके बाद अलबेलाजी महाराज ने स्थानीय लोगों व भक्तों के सहयोग से इस स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।