
दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। विभिन्न अलंकारों, स्वर, श्रुति भेद से परत दर परत स्वरों की रागनी खोलने के साथ उसकी लयकारी, ठहराव, मद्धम व द्रुत की संगति के बीच हर राग के अलग-अलग स्वर से मूर्छना करने उसकी रागात्मक अनुभूति को समझने उसकी बारीकी से सीधे संवाद के साथ स्वर, लय व रागों के अलग-अलग अवतारणा का साक्षात संगम दिखा विश्वविद्यालय संगीत व नाट्य विभाग, ललित कला संकाय में।
मौका था, शुक्रवार को सोदाहरण व्याख्यान के आयोजन का। मौके पर बतौर विशेषज्ञ काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के संगीत व मंच कला संकाय के गायन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. शशि कुमार मौजूद थे। विषय था, हिंदुस्तानी व कर्नाटकी संगीत में साम्य विभिन्नता। कार्यक्रम के आरंभ में विभागाध्यक्ष प्रो.लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने आगत विशेषज्ञ का परंपरागत तरीके से स्वागत किया।
धन्यवाद ज्ञापन पूर्व अध्यक्ष प्रो. पुष्पम नारायण ने किया । मौके पर डॉ. निशींद्र किञ्जल्क ने विभाग के लिए दो बहुमूल्य चित्रों को प्रदान किया। एक नृत्य सम्राट पंडित गोपी कृष्ण वहीं दूसरा चित्र नृत्य साम्राज्ञी सितारा देवी का। अपने सोदाहरण व्याख्यान का आरंभ डॉ. के. शशि कुमार ने हिंदुस्तानी व कर्नाटकी संगीत के परिचय से किया। हिंदुस्तानी रागों का कर्नाटकी रागों से साम्य भेद के क्रम में अनेक रागों को गाकर बताया। विभिन्न अलंकारों, स्वर व श्रुति भेद को भी उदाहरण के साथ गाकर प्रस्तुत किया।
एक राग के प्रत्येक स्वर से मूर्छना करने से अलग-अलग रागों की अवतारणा की। स्वराभ्यास के महत्त्व के साथ-साथ पद गायन को उदाहरण के साथ बताया। कर्नाटकी गायन की विभिन्न शैलियों का भी ज्ञान उपस्थित विद्यार्थियों को हुआ। अपने सोदाहरण व्याख्यान के अंत में विषय विशेषज्ञ ने राग भैरवी में पुरंदर दास रचित रचना वंकटाचल निलयं वैकुण्ठपुर वासम् की प्रस्तुति की। यह सोदाहरण व्याख्यान छात्र – छात्राओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ।




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