भाई जब से अपने सुशासन बाबू पटना में बइठै हैं यकींन नहीं हो रहा था कि जुर्म, बेइमानी,ठगी,घूसखोरी का यह जमाना आ जाएगा। लग तो यह रहा था कि स्वतंत्र देश का सपना फिर से साकार होगा सुशासन की शक्ल मे अपना गांधी फिर से आएगा। मगर ये हो ना सका। वीर सपूतों का बलिदान व्यर्थ में अब जाएगा। अन्ना की हुंकार सुनकर जब इस देश में हर कोई अन्ना बनने की ठानी थी तो लगा था कि घूसखोरी, बेईमानी की रथ अब अपनेआप रुक जाएगी मगर ये हो ना सका। रथ का दंभी राजा मृतप्राय सा, अपना शीश झुका डाला और फिर हमारा बिहार हमारा देश,सही मायने में स्वदेश अब तक स्वतंत्र भारत नहीं कहला पाया।
दादा कहते हैं, गलत मार्ग के सब खिड़की-दरवाज़े भेड दो, ख़त्म होगी यह घटा अंधेरी, अब सूरज तुम छटा बिखेर दो। मगर ये भी हो ना सका, दिख रहा। देख रहे हैं हम, भ्रष्टाचार, बेईमानों के चलते महंगाई का यूं बढ़ जाना,आखें फेर नहीं सकते अब हम,ए घुसखोरों अब सुन जाना, जहां भी देखो घुसखोरी-बेइमानी, तुम बहियां वहीं मुरेड़ दो, ख़त्म होगी यह घटा अंधेरी, अब सूरज तुम छटा बिखेर दो।
भ्रष्टाचार में दम ही कितना, बस आंखें जरा तरेर दो, भ्रष्टाचार से अजादी की जंग अब सब भारतवासी छेड़ दो। तभी दादा एक खिस्सा सुनाते हैं दफ्तर का वहां जैसे ही एक कर्मी कार्यालय में आया, गुप डी पिउन पास आया, कटीली मुस्कान मुस्काया और फिर धीरे से चिल्लाया, शाब बहुत बहुत गरमा रहा है, और आपको तुरंत केबिन में बुला रहा है। मैं सोंचूं क्या करूं, ये सुबह सुबह कौन सी आफत आई। जैसे ही साहब के कैबिन में गरदन घुसाया, साहब ने फरमाया कहां है तू मेरे भाया, कल मेरे कक्ष में क्यों नहीं आया, देख रहा हूं बढ़ती जा रही तेरी धिठाई, चल दे-दे मुझे कल की आधी कमाई।