दरभंगा, देशज टाइम्स ब्यूरो। बिहार के सर्वोदयी व गांधीवादी चिंतक हृदय नारायण चौधरी ने कहा कि महात्मा गांधी के राम कर्म योगी थे और गांधी ने कर्म की पूजा की है इसलिए गांधी के विचारों को आत्मसात करने की जरूरत है। राम के पीछे भागने की बजाए उसे वरण करना आज की सबसे ज्यादा जरूरत है। महात्मा गांधी व ललितेश्वरी चरण स्मृति दिवस पर जन जागरण परिषद की ओर से बुधवार को गांधी के राम विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि गांधी ने अपने संपूर्ण जीवन में राम को हृदयंगम किया, जिस कारण उनके सभी कर्मों में ईश्वरीय दृढ़ता दिखाई देती है।
छाया व भूत प्रेत से डरा करते थे गांधीजी
उन्होंने कहा कि बाल मन में ही महात्मा गांधी ने राम को महामंत्र के रूप में धारण किया। शैशवावस्था में गांधी छाया व भूत प्रेत से डरा करते थे तो रंभा धाई ने उन्हें राम का नाम लेकर कार्य करने को कहा और वहीं से गांधी जी को राम के प्रति अटूट आस्था हुई। आज गांधीमय व राममय होकर कार्य करने की जरूरत है।
प्रो. किरण शंकर ने कहा,निर्भीकता के साथ भयमुक्त थे गांधी
हिंदी के समालोचक और सामाजिक विचारों को आत्मसात करने वाले प्रो. किरण शंकर प्रसाद ने कहा कि गांधी में निर्भीकता थी। वह भयमुक्त थे। उन्होंने कहा कि सत्याग्रही का भय मुक्त होना अनिवार्य है इसलिए गांधी सत्ता के खिलाफ बोलने की हिम्मत रखते थे। उन्होंने राम को जीते हुए सत्ता से संघर्ष की बुनियाद रखी। आज जिस प्रकार राम के नाम का उपयोग हो रहा है। वह कहीं भी गांधी के राम नहीं है। गांधी के राम व आज के राम में बुनियादी फर्क है। आज राम कभी सत्ता की इर्द-गिर्द घूमते नजर आते हैं तो कहीं सत्ता के लिए नजर आते हैं। ऐसे में गांधी के राम को समझने व दृढ़ निश्चय के साथ उस पर चलने की जरूरत है।
प्रो. अजीत वर्मा ने कहा,गांधी स्वयं में एक आदर्श थे
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अजीत कुमार वर्मा ने कहा कि आज चरित्र का नहीं चारित्र का अनुकरण करना चाहिए। महापुरुषों के चारित्र का अनुकरण किया जाएगा तब मानव में परिवर्तन की धारा प्रस्फुटित होगी। उन्होंने कहा कि गांधी ने स्वदेशी की परिकल्पना की थी जो भारतीयता के रूप में है। यदि इसे अपनाया जाए तो भारत की अनेक समस्याओं का स्वत: समाधान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि गांधी ने स्वयं एक आदर्श प्रस्तुत किया। कस्तूरबा को जीवन पर्यंत साथ रखा। उन्होंने अपने जीवन में सत्य का प्रयोग किया। गांधी ने राम की तरह यह सोच नहीं रखी थी लोग क्या कहेंगे।
राम से हर वक्त यही करते थे गांधी प्रार्थना…हे प्रभु क्रोध ना आए
प्रो. वर्मा ने सीता व राम के संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि सीता को राम के निर्णय पर कोई आपत्ति नहीं थी व संघर्ष के पथ पर वन गमन को तैयार थी वस्तुतः इसे ही चारित्रिक बल कहते हैं। प्रो. वर्मा ने कहा कि गांधी हमेशा अपने इष्ट राम से यह प्रार्थना करते थे कि कोई भी व्यक्ति कितना भी कटु वाक्य उनके संबंध में कहे परंतु उन्हें क्रोध ना आए वस्तुतः गांधी ने क्रोध पर विजय प्राप्त कर लिया था। स्वागत परिषद के अध्यक्ष नरेश राय ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन राजू राम ने किया जबकि संचालन अभिताभ कुमार सिन्हा ने किया।