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22 नवम्बर, 2024
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बोचहां में हार…हाय! भूमिहार, सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ

भाजपा से भूमिहारों की नाराजगी का असर सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले पर पड़ने वाला नहीं है। मुजफ्फरपुर के साथ सीतामढ़ी और वैशाली जिले जुड़े रहे हैं। किसी एक जिले से चलने वाली सियासी हवा तीनों जिलों पर असर डालती है। मुजफ्फरपुर का असर समस्तीपुर के भी बड़े हिस्से पर पड़ता है।

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च मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ
बिहार की लाल-लाल लीची, ललचाती उसकी मिठास और शहर मुजफ्फरपुर। एक ऐसा शहर जो बिहार की आर्थिक राजधानी का सबसे बड़ा हकदार। और इस शहर का एक विधानसभा इलाका जिले का बोचहां विधानसभा। जहां, अभी-अभी उपचुनाव के परिणाम सामने आएं हैं।बोचहां में हार...हाय! भूमिहार, सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ

बेइज्जत, इज्जत, मलानत, जमानत, दांव-पेंच, जूतम-पैजार की नौबत, यूपी चुनाव का दंभ, कुशेश्वरस्थान और तारापुर में सहयोगी पार्टी की जीत, नाराज वोटरों की भरपाई ‘पंचफोड़ना या पचपनिया’ से करने की कोशिश, वैश्य के साथ इन वोटरों की संख्या 50 हजार से अधिक को देखते, बेबी के लिए एक-एक गांव में भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता, विधायक, एमएलसी का कैंप, घर-घर जाकर मोदी-नीतीश के कार्यों का गुणगान में दिखता गुमान, गिले-शिकवे दूर करने को साथ हो रहे भोजन के आयोजन…मगर हश्र यही, बीजेपी को करारी हार मिली।

राजद के परंपरागत माई समीकरण।
करीब 34 हजार मुस्लिम और 20 हजार यादव मतदाता, बड़ा वोट बैंक ज्यों का त्यों। सबकुछ खामोशी से यह जानते-समझते कि एआइएमईआइएम की रिंकू देवी मैदान में हैं। बावजूद, मुस्लिम वोटर राजद से टूटे नहीं। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रामसूरत राय के ताबड़तोड़ जनसंपर्क यादव वोट में बड़ी टूट नहीं दिला सकी।

चिराग या केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस
कोने में उदास पड़े रहे।फायदा दिवंगत विधायक मुसाफिर के पुत्र अमर कुमार पासवान और उनके साथ सहानुभूति के साथ यहां के करीब 25 हजार पासवान वोटर उस अंतिम समय को नजरअंदाज कर चुकी जहां पारस भाजपा के लिए अंतिम समय में जनसंपर्क करने उतरे। इन वोटरों पर उनकी पकड़ होने से थोड़ा फायदा भाजपा को मिल सकता था जो लालटेन में बुझ गया।

नतीजा यही हुआ
टूटती उस विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का तिलिस्म, मुकेश सहनी से दो हाथ, सामना महंगा पड़ा। परंपरागत वोटरों ने बोचहां की भूमि से हार भरी नाराजगी दे दी। सीट पर राजद के अमर पासवान क्या जीते। भाजपा की बेबी कुमारी पर भूमिहार वोटरों का गुस्सा 36,763 मतों से फूटा।

लुटिस तो चुनाव के ऐलान के साथ शुरू हो चुका था। लुटा-लूटी लगातार कटती पतंगों के साथ मांझे में बंधी खींचतान के साथ लगातार गरम हो रही थी। सियासी खेल कैसा दिखा। मत पूछिए। पहले तेजस्वी ने VIP चीफ मुकेश सहनी को जोर का झटका दिया। उनका मजबूत कैंडिडेट पाले में कर लिया। फिर सहनी की पलटवारी में नया दांव दिखा और RJD के घर में घुसकर बदला वसूल करते आरजेडी के नेता सह पूर्व मंत्री रमई राम को उनकी बेटी गीता देवी समेत VIP में शामिल करा दिया। साथ ही गीता देवी को सहनी ने बोचहा उपचुनाव में अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। मगर हुआ क्या। कहते हैं अंत भला तो सब भला…।

कारण, यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में शुरू से फंसी रही। नतीजा,एक-एक वोट की मारामारी। भाजपा, राजद, वीआइपी समेत अन्य दल समीकरण दुरुस्त करते रहे। भाजपा शुरूआत में ही पार्टी से नाराज चल रहे भूमिहार-सहनी वोटरों से हो रहे नुकसान की भरपाई का मास्टर प्लान लेकर सामने आई। उसके अनुसार ही चुनाव-प्रचार हुए। मगर, चूक होती चली गई। उनके अपने भितरघात पर आमादा थे।

भाजपा के लिए यहां चुनौती शुरू से ही थोड़ी अधिक थी। पिछले कुछ चुनावों से पार्टी के मुख्य वोटर रहे भूमिहार के एक वर्ग में नाराजगी थी। सांगठनिक उपेक्षा के अलावे पिछले दिनों राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री का इस जाति के दो बड़े नेताओं के खिलाफ टिप्पणी इसकी वजह बनी।

तेजस्वी की सभा में इस जाति से
जुड़े कई संगठन के नेताओं की मौजूदगी के बाद भाजपा की चिंता लगातार बढ़ती चली गई। बोचहां विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटर भूमिहारों हैं। 100 प्रतिशत भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाले इस जाति के लोगों ने इस बार भाजपा को सिरे से खारिज कर दिया। बोचहां में जब भाजपा के नेता चुनाव प्रचार करने जा रहे थे तो इसका अंदाजा हो गया था।

लिहाजा भूमिहारों को मनाने के लिए हर कोशिश की गयी। भाजपा के दुर्दिन के दौर में पार्टी को अपने संसाधनों से चलाने वाले पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा को पार्टी ने सिरे से खारिज कर दिया था। बोचहां उपचुनाव से भाजपा का कोई बड़ा नेता उनसे बात करने तक को तैयार नहीं था, लेकिन उप चुनाव आया तो प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल उनके दरवाजे पर पहुंच गए।

विधानसभा क्षेत्र में इस जाति के करीब 44 हजार वोटर हैं। इनमें टूट की आशंका को देखते हुए डैमेज कंट्रोल करने में पार्टी की पूरी मशीनरी यहां लग गई है। पार्टी उम्मीदवार बेबी कुमारी के लिए एक-एक गांव में भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता, विधायक, एमएलसी कैंप किए हुए हैं। घर-घर जाकर मोदी-नीतीश के कार्य को गिनाया जा रहा। गिले-शिकवे दूर करने को साथ भोजन हो रहा। साथ ही नाराज वोटरों की भरपाई ‘पंचफोड़ना या पचपनिया’ से करने की कोशिश हो रही है।

बिहार के डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद बोचहां के जमींदार रहे चुन्नू बाबू के घर हाजिरी बजा आए लेकिन रामसूरत राय जो डैमेज कर गए थे, उसे भर नहीं पाए। बोचहां नहीं बल्कि, पूरे मुजफ्फरपुर के भूमिहारों की आम शिकायत है, मंत्री रामसूरत राय सरेआम भूमिहारों को गाली देते हैं। वे मीडिया में बयान देकर भूमिहारों के नेताओं को जलील करते हैं।

मुजफ्फरपुर के विधायक और पूर्व मंत्री रहे सुरेश शर्मा ने जब शहर के ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने के लिए मुहिम छेड़ी तो रामसूरत ने उनका जमकर विरोध किया। उन्होंने मीडिया में बयान देकर सुरेश शर्मा को अज्ञानी करार दिया। लंबे समय से भाजपा के एक भूमिहार कार्यकर्ता ने कहा कि जब राजद का शासन था तो रामसूरत राय और उनके पिता अर्जुन राय ने लालू यादव का दूत बनकर कितना छाली काटी ये सबको पता है। अब वे भाजपा भी चलाएंगे और हमें ही जलील करेंगे। ऐसा नहीं होने वाला। भाजपा के उस कार्यकर्ता ने बताया कि हम ये भी समझते हैं रामसूरत राय अपने दम पर नहीं बोल रहे हैं। उनको भाजपा में कहां से ताकत मिल रही है ये सबको पता है। अभी तो शुरुआत हुई है 2024 और 2025 में असली जवाब मिल जायेगा।

भ्रष्टाचार को नहीं कर सकते नाकार
बोचहां में भाजपा की हार के लिए मंत्री रामसूरत राय के बयान ही नहीं बल्कि उनके विभाग में फैला भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा रहा। दरअसल बोचहां विधानसभा क्षेत्र मुजफ्फरपुर शहर से ठीक सटा हुआ है। इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा तो मुजफ्फरपुर शहर का हिस्सा है। लिहाजा वहां की जमीन बेशकीमती है। खरीद बिक्री भी जमकर होती है। लेकिन जमीन के दाखिल खारिज से लेकर दूसरे काम में राजस्व और भूमि सुधार विभाग की करतूत से लोगों में भारी नाराजगी है।डीएसएलआर और सीओ ही नहीं बल्कि एक राजस्व कर्मचारी भी डायरेक्ट रामसूरत राय से कॉन्टेक्ट में रहता है।

भाजपा के सामने भीषण संकट
इस चुनाव परिणाम ने भाजपा के लिए भीषण संकट खड़ा कर दिया है। 11 विधानसभा सीट और दो लोकसभा सीट वाले मुजफ्फरपुर में भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक दरक गया है।1990 के बाद से कम से कम मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहारों का कमोबेश पूरा वोट भाजपा को ही मिलता आया है। लालू के जिस लालटेन से इस जाति को सबसे ज्यादा एलर्जी थी, वह खत्म हो गया है। अगर यही ट्रेंड रहा तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या होगा, इसे भाजपा के नेता समझते हैं। वोट बैंक के साथ भूमिहार जाति प्रदेश में डोमिनेट करती है। उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह अर्थतंत्र और जमीन की ताकत है। बिहार के पांच सबसे धनी व्यक्तियों में तीन भूमिहार जाती है नाता रखते हैं। इनमें सम्प्रदाय सिंह की फार्मा कंपनी अलकैम, किंग महिंद्रा की एरिस्टो प्रमुख है।

असर तो अभी शुरू ही हुआ है…
भाजपा से भूमिहारों की नाराजगी का असर सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले पर पड़ने वाला नहीं है। मुजफ्फरपुर के साथ सीतामढ़ी और वैशाली जिले जुड़े रहे हैं। किसी एक जिले से चलने वाली सियासी हवा तीनों जिलों पर असर डालती है। मुजफ्फरपुर का असर समस्तीपुर के भी बड़े हिस्से पर पड़ता है। भाजपा समझ रही होगी कि उसका सबसे बड़ा वोट बैंक नाराज है तो कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाजपा इतनी करारी हार से हारेगी…
सोच से परे। सबके अनुमान से कहीं अधिक। कारण, बिहार में सरकार बनाने की सपने पाले और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ एक माहौल के बीच बोचहां के मतदाताओं ने भाजपा और उसके उम्मीदवार को जिस तरीके स्पष्ट शब्दों में रिजेक्ट किया, सवाल तो पूछे ही जाएंगें आख़िर कारण क्या है? सवाल के जवाब में परत दर परत बिहार भाजपा की वर्तमान नीति उसके निर्धारक, उनका अहंकार, अति आत्मविश्वास, मुकेश सहनी के साथ बर्ताव, तीन विधायकों को मिला लेने के बीच मल्लाह जाति के वोटरों की अनदेखी जो एनडीए के कट्टर समर्थक और जनाधार में छेद करने को बेकरार थे, इसका कितना विपरीत असर। विशेषकर केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, भाजपा अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने जिस तरीके सारे फैसले बिना जमीनी हकीकत भांपे किया, असल में यह चुनावी परिणाम उसी के नतीजे हैं…To be honest, with Manoranjan Thakur

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