झारखंड को बिहार सरकार को 4,197 करोड़ रुपये पेंशन मद का देना होगा। इसे लेकर केंद्रीय मुख्य सचिव ने निर्देश दिया है। बिहार सरकार के वित्त विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार ने इस मुद्दे को पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में जोर-शोर से उठाया था।
इसके बाद बीते सोमवार को बिहार-झारखंड के सचिव स्तर के अधिकारियों सहित केंद्रीय मुख्य सचिव की बैठक में झारखंड को बिहार का बकाया 4,197 करोड़ देना का निर्देश दिया गया है।
साल 2000 में अलग झारखंड के निर्माण के लिए बिहार पुनर्गठन अधिनियम संसद में पारित किया गया था। इसके तहत कर्मचारियों के पेंशन दायित्व का बंटवारा बिहार और झारखंड के बीच 2:1 अनुपात में करना था। यानी पेंशन पर होने वाले कुल खर्च का दो तिहाई बिहार सरकार को और एक तिहाई झारखंड सरकार को वहन करना था।
इसे दोनों राज्यों के उस समय के क्षेत्रफल के आधार पर तय किया गया था। यह व्यवस्था 2020-21 तक के लिए बनाई गई थी। कुछ साल पहले झारखंड ने यह कहना शुरू किया कि वह पेंशन दायित्व का बंटवारा क्षेत्रफल के अनुपात की जगह आबादी के अनुपात में करेगा। झारखंड ने इसके लिए 3:1 का फॉर्मूला अपनाने की मांग की।
इस आधार पर पिछले पांच सालों से पेंशन की कोई रकम नहीं दी है। पिछले दिनों केंद्र सरकार की ओर से भी झारखंड को बिहार को पेंशन की तय हिस्सेदारी अदा करने के लिए कहा गया था।
बिहार-झारखंड और केंद्र सरकार के मुख्य सचिव के अधिकारियों के बीच वार्ता में मुख्य सचिव ने यह फैसला सुनाया कि ऑडिटर जनरल के फैसले को दोनों राज्यों को मानना होगा। ऑडिटर जनरल ने अपने फैसले में कहा कि झारखंड और बिहार सरकार के बीच जो पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ था।
इसके तहत 2:1 के अनुपात में दोनों राज्यों को एक दूसरे के कर्मचारियों की पेंशन राशि को सेटल करना था, लेकिन झारखंड ने अपने एक हिस्से की राशि बीते पांच साल से नहीं दी है जो 4,197 करोड़ रुपये बैठती है। ऑडिटर जनरल के फैसले के बाद केंद्रीय मुख्य सचिव ने झारखंड सरकार को यह आदेश दिया है कि यह राशि बिहार को अविलंब लौटायी जाए। इस फैसले से बिहार को एक तरह से जीत मिली है।