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3 दिसम्बर, 2024
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हमारे पास भी है बंद फव्वारा… सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ

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च मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ…।

सवाल किससे की जाए। क्यों की जाए। और क्यों नहीं की जाए। यहां, कटघरे में पत्रकारिता भी है। सड़ती राजनीति भी है। ऊंधते लोग भी हैं। ज्यादा खतरनाक सच बोलने और लिखने से बेहतर है, आप एक मापदंड तय कर लीजिए। कारण, बिहार की सड़कों पर घूमेंगे तो रास्ते में कई बंद फव्वारे मिल ही जाएंगें और फिर उसे भी पता नहीं आप क्या समझ बैठेंगे।

हमारे पास भी है बंद फव्वारा... सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ

अब देखिए ना, चीन के पास आईटी प्रोफशनल हैं। टेक्नोलॉजी है। हमारे पास क्या है। यही एक फव्वारा। जो रतनलाल जैसों के ईद-गिर्द यूं सिमटा है, गोया, अमेरिका नेटो देशों में रूस और पुतिन का डर भरने में कामयाब हो गया हो। वैसा ही कुछ हमारे यहां भी है।

मानो, आर्थिक समानता को सांप्रदायिक समानता से दूर करने का कोई अचूक रास्ता देश ने तलाश लिया हो। मुगल आजकल फिर पन्नों से बाहर निकाले जा रहे। उनके पतन का कारण, औरंगजेब की कट्‌टर सोच, कठोर प्रशासन और फौज पर बेतहाशा खर्च के साथ उनके पड़पोते मो. शाह का रंगीला मिजाज आज कोई मायने नहीं रहा, ठीक वैसे ही जैसा, बिहार का सोनू, पिछड़ा नहीं सबको पछाड़ने वाला निकल गया। यह दीगर है, सोनू आया, छाया, और फिर गुमनामी में चला गया। मानो, एक फव्वारा तूफान बनकर उफनाया और फिर शांत हो गया।

या फिर, दरभंगा की वो साइकिल गर्ल ज्योति, पहले राजनेताओं से लेकर ट्रंप की बेटी, हर कोई उसकी साइकिल की मरम्मत में जुटा। बाद में, वही साइकिल गर्ल ज्योति आज की तारीख में पाइ-पाइ की मोहताज है। मानकर चलिए, वह भी एक इसी तरह की फव्वारा थीं। पहले खूब पानी का झाग, आज सोनू वाला बहाव। सबकुछ उसी पीपल के पेड़ तले वाले पथरी बाबा की तरह एक अदद छांव की तलाश में, धूप-पानी झेलते, नसीब की तलाश लिए कोई तो आए…इस देश में जहां सर झुकाते ही पत्थर देवता हो जाते हैं…के मानिंद उसी यूपी से लेकर बिहार तक अपात्र वाले राशन कार्डधारियों की तरह, खुद को सरेंडर करने की स्थिति में।

देखिए ना, सत्ता की विचारधारा, सिस्टम की विचारधारा और जनता की विचारधारा के बीच आज की पत्रकारिता कहां आकर अटक, ठहर गई है जहां सिर्फ एक ही एजेंडे हैं। सत्ता की विचारधारा को जनता की विचारधारा में ऐसा घाल-मेल करो, सबकुछ लागे नया-नया। मानों, सत्ता की अफीम को जनता के अंग-अंग में परोस दिया गया हो। गिरते रूपए, गिरती अर्थ व्यवस्था, विदेशी मुद्रा भंडार, गिरते नेता, गिरती कमाई, बढ़ती महंगाई-बेरोजगारी कहीं नजर ही नहीं आती। सब गुम।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंद्र राजपक्ष को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ गया। यदि श्रीलंका का विपक्ष देशभक्त है, तो उसका पहला लक्ष्य यह होना चाहिए  था, वह मंहगाई, बेरोजगारी और अराजकता पर काबू करे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष से भी आपात राशि की मांग करे। अभी तो लोग वहां दंगों और हमलों से मरे  हैं, लेकिन जब भुखमरी और बेरोजगारी से मरेंगे तो वे किसी भी नेता को नहीं बख्शेंगे। वह चाहे पक्ष हो या विपक्ष का। ऐसे में, भारत जैसे देशों को भी श्रीलंका की वर्तमान दुर्दशा से महत्वपूर्ण सबक लेने की जरूरत है।

क्योंकि, यह देश ऐसा ही है, बिल्कुल फव्वारा माफिक। कब कहां बहक जाए। किधर चले पड़े। किसे मसीहा समझने लगे। समझ से परे है। अब देखिए ना, जिस अपराधी को पहले फांसी, फिर आजीवन कारावास मिलती है, उसकी बाद में रिहाई तक हो जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे एजी पेरारिवालन को सर्वोच्च न्यायालय ने रिहा क्या किया, तमिलनाडु में मिठाइयां बंटने लगीं।

अब पत्रकारिता की हश्र देखिए, हत्यारे की कलम से लिखा गया एक लेख दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार ने प्रमुखता से छापा। छापा ही नहीं, इसमें उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया गया, जिन्होंने उसकी कैद के दौरान उसके साथ सहानुभूतियां दिखाईं। तमिलनाडु में एक अदद थोड़ा बहुत कांग्रेस को छोड़कर अन्य प्रमुख दल भी उसकी रिहाई का स्वागत करते नहीं थके।

हद तो यह, तमिलनाडु की सरकार, वहां की जनता जरा भी दु:खी मालूम नहीं पड़ी। यह हमारे देश का वर्तमान है, जो सच है और स्याह है। ज्योतिरादित्य सिंघिया, ट्वीट करते हैं, आधुनिक भारत के निर्माता राजीव गांधी को नमन…महज एक घंटे में वह ट्वीट बदला जाता है। उसके अंश संपादित कर दिए जाते हैं।  उसमें से आधुनिक भारत के निर्माता शब्द जड़मूल से नष्ट हो चुका होता है। सरकार आठ साल के जश्न में है। आसमां से तारे तोड़ने की कसमें कार्यकर्ता खा रहे हैं। ताजमहल की ज़मीन के एवज में शाहजहां ने जयपुर के राजपरिवार को हवेलियां दी थीं, आज रेलवे में नौकरी के लिए जमीन ली गई है। फर्क कहां है।

17 वीं शताब्दी में सम्राट शाहजहां की अपनी पत्नी मुमताज महल के लिए बनाए गए मकबरे, ताजमहल के नीचे के बंद कमरों में मूर्तियां, हाल ही में जयपुर के शाही परिवार की सदस्य और भाजपा सांसद राजकुमारी दिया कुमारी का ताजमहल की जमीन को लेकर दावा कि ताजमहल की जमीन उनके पुरखों-राजा मान सिंह की थी, लेकिन 1631-32 में जब ताजमहल बना, तब इसका मालिकाना हक़ राजा जय सिंह के पास था। और, आगरा में जमीन देने के एवज में शाहजहां ने शाही परिवार को जयपुर में चार हवेलियां दी थीं। यह सब वॉट्सएप पर फार्रवड करने, फेसबुक पर शेयर करने और गॉशिप के बीच फिर वही सामने पत्रकारिता है, जिसकी 36 इंच वाली स्क्रीन बिना चार लोगो के बहसों की चीख-गाली-गलौच से भरी हर दिन, खुद को नंबर 1 का दावा करती नहीं थक रही।

मानो, दरभंगा एयरपोर्ट पर मैथिली में उद्धोषणा क्या शुरू हुई, मिथिला राज बस चंद कदमों पर दिखने लगा। या फिर, हार्दिक पटेल और सुनील जाखड़…पता नहीं बीजेपी वाले ऐसे जाकड़ मालों को अपने जेब में क्यों भरती जा रही है? जिस कांग्रेस ने 70 सालों तक देश को लूटा-खसोटा उसी के खोटे सिक्के आजकर बीजेपी खेमे में टॉस के काम आ रहे हैं।
जीत-हार के बीच ऐसे सिक्के खूब उछल रहे, जो ऐसी पार्टी से निकलकर आए हैं जहां राज ठाकरे की अयोध्या यात्रा के ऐन पहले, ‘नकली हिंदुत्ववादी’ से सावधान रहने की पोस्टरबाजी होती है। कैसरगंज के भाजपा बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह, राज ठाकरे को ‘कालनेमि’ बताते अयोध्या में न घुसने देने की धमकी देते मिल रहे। वहीं, भाजपा सांसद लल्लू सिंह राज ठाकरे को ‘राम के साथ मोदी की शरण में आने’ की सीख के बीच न्यौता परोस रहे।

यूपी के बाद अब एमपी के मदरसों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता लाने की तैयारी हो रही। कर्नाटक सरकार धर्मांतरण विरोधी क़ानून लागू करने के लिए अध्यादेश ला रही है। राजद्रोह पर रोक लगी। यह सीधा गृह मंत्रालय के अधीन था जहां से,  पिछले ही साल कई पत्रकारों, मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, जफर आगा, विनोद जोस, अनंत नाथ के साथ ही कांग्रेस नेता शशि थरूर के खिलाफ राजद्रोह का आरोप-दोष लगा।

कहा गया, उन्होंने सार्वजनिक रूप से  दावा किया था, दिल्ली में 26 जनवरी, 2021 को किसानों के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए किसान को गोली मारी गई थी। इस सबके बीच, यह बात गुम हो गई कि मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कह दिया, किसानों ने केवल दिल्ली में अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ उनका आंदोलन अभी भी जीवित है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार पर निशाना साधा। कहा, देश में जिस रफ़्तार से बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही है उससे देश में संकट खड़ा होने वाला है। यह बात दब गई। कारण, यह उस जनता से जुड़ी हुई समस्या है, जिसका असर उन वर्गों पर सीधे तौर पर है, जो चुप और खामोशी के लबादे में इतने गर्म हो चुके हैं, उनकी जेबें, इसकी आदत डाले चुपचाप शांत बैठी हुई है, यह मानकर, जब छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ महल में आदिवासी समाज का प्रतीक ध्वज हटाकर भगवा झंडा लगाया और फहरा दिया जा सकता है, तो हमारी क्या विसात।

भले, सारंगढ़ राज परिवार का कांग्रेस से पुराना नाता रहा हो, शाही परिवार की सदस्य कुलिशा मिश्रा भले इसे आदिवासियों के ख़िलाफ़, उनकी संस्कृति को मिटाने का प्रयास बताए लेकिन सच यही है, यह देश ऐसा ही है,जहां हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला राज्य विधानसभा परिसर के मुख्य द्वार पर खालिस्तान के झंडे लहरा दिए जाते हैं। उसकी दीवारों पर आपत्तिजनक नारे लिख दिए जाते हैं।

या फिर अलीगढ़ के बाद वाराणसी विवि हो, जेएनयू हो यहां तक, दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में भी इफ्तार के बहाने हनुमान चालीसा का पाठ करने की नौबत ठीक वैसा ही, जहां, गुजरात की एक अदालत ने साल 2017 में मेहसाणा से बनासकांठा ज़िले के धनेरा तक बगैर अनुमति के ‘आज़ादी रैली’ निकालने के लिए निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी और नौ अन्य लोगों को तीन महीने क़ैद की सज़ा सुनाती मिल जाए। तैयारी तो, सात साल पहले, 2015 में ही कैलाश विजयवर्गीय ने शाहरुख खान के खिलाफ ट्वीट कर कर दी थी। इसके बाद उस समय लोकसभा सदस्य आदित्यनाथ ने उनकी तुलना हाफिज सईद से करते हुए आने वाले समय की झलक मात्र दिखाई थी।

इसके बाद बीस मई को मेरठ में हिंदू महासभा का महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के जन्मोत्सव पर अपने कार्यालय में विशेष पूजा-अर्चना करते  ‘हिंदू विरोधी गांधीवाद’ को ख़त्म करने की शपथ और दावा कि भारत जल्द ‘हिंदू राष्ट्र’ बनेगा। उस, कश्मीरी फाइल के साथ सिने घरों में लगते नारे, और इस सबके बीच जम्मू कश्मीर के बडगाम चादूरा में एक कश्मीरी पंडित तहसील कर्मचारी राहुल भट की हत्या के विरोध में श्रीनगर कश्मीरी पंडितों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले ठीक यूं लगा, मानों करोड़ों की कमाई करके कश्मीरी फाइल्स का नायक उस गुजरात पुलिस के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हाल में गिरफ़्तार की गईं झारखंड की खनन सचिव पूजा सिंघल के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तस्वीर साझा करने के मामले में फिल्मकार अविनाश दास के ख़िलाफ़ मामला दर्ज होने से खुद को अलग-थलग कर लिया हो।

सब-कुछ यूं स्पष्ट, चलचित्र की तरह, श्रव्य और दृश्य के साथ उस हरियाणा में जाकर छोड़ आया हो जहां, अभी-अभी हरियाणा के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से तैयार कक्षा 9 की इतिहास की एक नई किताब में विभाजन के लिए कांग्रेस को दोषी बताते आरएसएस और इसके संस्थापकों के ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को सराहा उसी का गुणगान होता शिक्षा के ‘राजनीतिकरण’ का वह अध्याय जोड़ना बस शेष छोड़ गया जहां, दरभंगा जैसे शांत जगहों पर भी हनुमान चालीसा का पाठ अनिवार्य होने की इच्छाशक्ति के बीच सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ और भंडारा का आयोजन 16 जुलाई से होने की छलांग लग चुकी हो।

ठीक वैसे ही, सीएनजी के दाम दो रुपए प्रति किलो बढ़ने का गम पेट्रोल 8.69 रुपए और डीज़ल 7.05 रुपए लीटर सस्ते होने की खुशी में कहीं गुम हो गई है। सच मानिए, मेरे पास भी एक बंद फव्वारा है। यकीं है, आपके घर भी होगा। क्योंकि बिहार सात निश्चय कर चुका है और इस निश्चय में बस बंद फव्वारा ही है जल नहीं… सच मानो तो मनोरंजन ठाकुर के साथ।

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