गंगा दशहरा
गंगा स्तुति
मणिकांत झा
दरभंगा,
गंगा दशहरा
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पतितोद्धारिणि गंगा मइया
बहय निर्मल धार यै
केहन केहन पापी के करिए
डूब दैत उद्धार यै।
नाम सुमरलक सेहो तरि गेल
दर्शन सँ हो ओतबहि लाभ
स्पर्श मात्र जे अपनेक कयलक
मिटा गेलय तकरो सब ताप
नवधा भक्तिक दान करय छी
भक्तक बेरा पार यै
केहन केहन पापी के करिए
डूब दैत उद्धार यै।
शिवक जटा अपने शोभय छी
उद्गम थिक हिम केर शिखर
भागिरथ मुनि के बात राखिकय
धरनी पर अयलहुँ निर्झर
रोग व्याधि सबटा हरि लै छी
पहुँचैत अपन किनार यै
केहन केहन पापी के करिए
डूब दैत उद्धार यै।
आत्मसात सबटा करय छी
अपने लेल किछु नहि निकृष्ट
सरल गलल जे किछु भेटैए
बना दिए सबके उत्कृष्ट
मणिकांतहुँ अहीं के बालक
राखब तकर विचार यै
केहन केहन पापी के करिए
डूब दैत उद्धार यै।
मणिकांत झा
दरभंगा,
गंगा दशहरा