दरभंगा, देशज टाइम्स अपराध ब्यूरो प्रमुख। नई सरकार गठन के बाद लोगों के जेहन में कई सवाल उभरकर सामने आ रहे हैं। इन सवालों में एक महत्वपूर्ण सवाल है कि राज्य की जनता भय मुक्त वातावरण चाहती है, और यह तब संभव है जब बेहतर पुलिसिंग हो।
अक्सर लोग चौक-चौराहों पर चर्चा करते हैं कि जिले समेत अनुमंडल की सभी कुर्सियां खरीदी और बेची जाती हैं। ऐसी परिस्थितियों में कैसे आम नागरिक को इंसाफ मिलेगा! लोगों का कहना कि बिना नाजायज पैसे के कोई काम नहीं होता।
नाजायज पैसों की वसूली के लिए प्रखंड से जिला तक सभी पदाधिकारी “सुपरमैन” रखते हैं। सुपरमैन का काम साहब के बदले नाजायज वसूली कर उनके खास ठिकानों तक पहुंचाना है। इस बात की पुष्टि एक जबरन सेवानिवृत्त किए गए आईपीएस अमिताभ दास करते हैं।
एक जिले के एसपी के बारे में पूर्व आईपीएस श्री दास ने यह कहकर पर्दा हटाया कि एसपी के मातहत सुपर एसपी काम करते हैं, जिनका काम बड़े-बड़े कांडों में उगाही करना, थानेदारों से मासिक वसूलना आदि है। पूर्व आईपीएस अमिताभ दास के इस खुलासे के बाद एक प्रश्न उठना तो लाजमी है। क्या राज्य के सभी एसपी सुपर एसपी को रखे हुए हैं!
जानकार लोग कहते हैं कि यह एक सिस्टम है जिसे तोड़ने वाले खुद टूट जाते है! इनका कहना है कि सभी के सभी जवाबदेह पद पर बैठे पदाधिकारियों की पोस्टिंग में बड़ा खेला होता है! सरकार को पार्टी चलानी पड़ती है। इसमें एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च है।
इनका कहना है कि कुछ बड़े-बड़े लोग पार्टी फंड में पैसा देते हैं। बाकी के कमी को पूरा करने के लिए सरकार जिला से प्रखंड स्तर की कुर्सियां बेचती है। अब जवाबदेह पद पर बैठे यह लोग भी वहीं काम करते हैं। सिर्फ नाजायज वसूली!इनका कहना है, ऐसे ही राज्य और देश की सरकारें चलती हैं! लेकिन आम नागरिकों को अपनी सुरक्षा से ज्यादा मतलब है और पुलिस का काम अहम हो जाता है!
लोगों को उम्मीद भी पुलिस से बहुत ज्यादा है! आम लोगों को किसी काम के निष्पादन में बस पुलिस याद आती है!
ऐसे में, सिस्टम अगर ज्यादा भ्रष्ट हो तो न्याय की बात बेईमानी होगी। बावजूद इसके पुलिस तो कुछ काम करती है लेकिन जिला प्रशासन में सिर्फ कागजी घोड़ा दौड़ता है और पन्नों पर लाखों करोड़ों सिमट जाते हैं।
मामला अगर चर्चित हुआ तो एक दूसरे टेबल पर आदेश और निर्देश पर महीने गुजर जाते हैं। और, बात जब लोग भूल जाते हैं तो रद्दी की टोकरी में वह जांच सिमट कर फेंक दी जाती है। कागजों पर बड़े-बड़े घोटाले प्रशासनिक पदाधिकारी कर देते हैं, लेकिन आम लोगों को उससे फर्क नहीं पड़ता है!
आम लोगों को किसी पदाधिकारी से फर्क पड़ता है तो वह है पुलिस! पुलिस के खिलाफ शिकायतें भी बहुत होती हैं। लेकिन, उम्मीद भी लोगों को पुलिस से ही है। ऐसे में पुलिस अगर बिकती है और सिस्टम का हिस्सा बनकर यह काम करती है तो आम लोगों पर इसका बहुत ज्यादा ही असर पड़ता है।
ऐसे में, पुलिस की कार्यशैली को ठीक करना सरकार की जवाबदेही है। यह जवाबदेही सरकार को ही पूरा करनी है। क्योंकि, पुलिस को अब भी संसाधनों के अभाव में काम करना पड़ता है। और, पुलिस की मजबूरी हो जाती है। लेकिन ऐसे में एसपी को कुर्सी खरीदना पड़े? या थानेदार को थाने की बोली लगानी पड़े तो बेहतर पुलिसिंग की बात करना नाईंसाफी है। अब बढ़ते अपराध और अपराध मुक्त प्रदेश बनाना सरकार की जवाबदेही है? सिस्टम वहीं रहेगा तो पुलिस बदनाम तो है ही, अपराध पर नियंत्रण नहीं हो सकता। देखिए क्या होता है…?