सुप्रीम कोर्ट ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित करने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस एम आर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस तरह का फैसला लेना कोर्ट का नहीं, संसद का काम है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका का मकसद प्रचार पाना लगता है।
बेंच ने पूछा, ‘क्या आप संस्कृत बोलते हैं? क्या आप संस्कृत में एक लाइन बोल सकते हैं या आपकी रिट याचिका की प्रार्थना का संस्कृत में अनुवाद कर सकते हैं।’ इसपर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट ने एक श्लोक सुना दिया और बेंच की तरफ से जवाब मिला ‘यह हम सभी को पता है।’
सुनवाई के दौरान वंजारा ने ब्रिटिश राज के दौरान कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी तरफ से पढ़ी गई 22 भाषाओं में एक बात साफ है कि संस्कृत मातृभाषा है। वहीं, कोर्ट ने कहा, ‘हम भी यह बात मानते हैं। हम जानते हैं कि हिंदी और राज्यों की कई भाषाओं के शब्द संस्कृत से आए हैं। लेकिन इसके आधार पर किसी भाषा को राष्ट्रभाषा नहीं घोषित किया जा सकता। हमारे लिए भाषा घोषित करना बहुत मुश्किल है।’
रिटायर्ड नौकरशाह डीजी वंजारा ने दायर याचिका में संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित कर भाषा का प्रचार करने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि देश के कितने शहरों में संस्कृत भाषा बोली जाती है। तब वंजारा ने कहा कि वह केंद्र की ओर से इस मामले पर चर्चा चाहते हैं। तब कोर्ट ने वंजारा से पूछा कि क्या आप संस्कृत बोलते हैं। क्या आप संस्कृत में एक लाइन बोल सकते हैं या आप अपनी याचिका की प्रार्थना का अनुवाद संस्कृत में कर सकते हैं।