बिहार और खासकर मिथिलांचल का मखाना विदेशों में चर्चित है। मगर जब बिहार में ही मखाना का अवैध फैक्ट्री चल रहा हो और उसमें दरभंगा के बाल मजदूरों से काम लिया जा रहा हो तो मामला हाईप्रोफाइल हो जाता है।
मामला, कटिहार से जुड़ा है जहां दरभंगा और मधुबनी के गांव से ट्रैफिकिंग से यहां लाए गए नौ बाल मजदूरों को बचपन बचाओ आंदोलन और बिहार पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन से मुक्त करवाया गया है। पढ़िए पूरी खबर
जानकारी के अनुसार, कटिहार जिले की एक मखाना बनाने वाली फैक्ट्री से नौ बाल मजदूरों को छापेमारी कर मुक्त करवाया गया। मखाने की फैक्ट्री बिना मंजूरी के चलाई जा रही थी। इसमें बाल मजदूरों को काम पर लगाया गया था। यह पहली बार है जब बाल मजदूरों के रेस्क्यू के लिए किसी मखाना फैक्ट्री में छापा मारा गया।
नौ बच्चों में से छह लड़कियां और तीन लड़के हैं। सभी की उम्र 10 से 14 साल के बीच है। इन को ट्रैफिकिंग के जरिए राज्य के मधुबनी एवं दरभंगा जिले से लाया गया था। मखाने की कीमत प्रति किलो 500 से 1,300 रुपए तक होती है। इन बच्चों से बहुत ही मामूली मजदूरी के बदले दोपहर तीन बजे से रात 11 बजे तक काम करवाया जाता था।
इन बच्चों में से एक 13 साल की रानी (बदला हुआ नाम) दरभंगा जिले के एक गांव से ट्रैफिकिंग कर लाई गई थी। उसके पिता को बरगलाया गया था कि उसे अच्छी मजदूरी मिलेगी और एडवांस पैसे देने का भी वादा किया था। नौ लोग के परिवार से आने वाली रानी, आर्थिक तंगी के चलते काम करने को मजबूर थी और इसीलिए उसके पिता ने उसे यहां आने के लिए भेजा था।
छापेमारी की यह कार्रवाई नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ श्रम अधिकारियों, बिहार पुलिस और अतिरिक्त जिला सुरक्षा अधिकारी के संयुक्त ऑपरेशन और कटिहार के जिला जज के नेतृत्व में किया गया।