देशज टाइम्स राजनीतिक डेस्क। हमके मरदे चाहिले भूमिहार राजा जी…यह गाना इस वजह से आज चर्चा में है। क्योंकि, गया जिले के कोंच प्रखंड के टनकुप्पा में इसी गाने पर ऑर्केस्ट्रा में नचनियां जब थिरक रहीं थीं तो एक युवक मंच पर हाथ में पिस्टल लहराते चढ़ गया। गाने की धुन पर जमकर नाचा और पुलिस उसे खोज रही है।
दरअसल, यह गाना वहां मौजूद दर्शकों की खासी फरमाइश पर गाया गया। और, उसी ‘हमके मरदे चाहिले भूमिहार राजा जी…’ पर नर्तकियों की प्रस्तुति बॉलीवुड के आइटम नम्बर्स के मानिंद ऐसे वायरल हुए जैसे आज ही कंगना रनौत का रिएक्शन सामने आया है।
दरअसल, कंगना रनौत अपनी इंस्टा स्टोरी पर फिल्म हावड़ा ब्रिज के गाने ‘आइए मेहरबां’ का एक छोटा सा वीडियो साझा करते कैप्शन में लिखा है,’सेंसुअलिटी और सिडक्शन का अश्लीलता और घटिया आइटम नंबर से कोई लेना-देना नहीं है… इस गाने में सब कुछ है फिर भी महिला और उसके शरीर के अंगों का कोई ऑब्जेक्टिफिकेशन नहीं है…।’
यह वही कंगना हैं जिन्होंने हाल में राहुल गांधी की अर्से बाद तारीफ की। वैसे, इंदिरा की किरदार में फिल्म ‘इमरजेंसी’ की शूटिंग में व्यस्त कंगना का जिक्र यूं भी। क्योंकि, हमके मरदे चाहिले भूमिहार राजा जी…के मायने आज उसी इमरजेंसी के ईद और गिर्द है जहां मोकामा और गोपालगंज में उपचुनाव के प्रचार के आज आखिरी दिन कुत्तों की भी इंट्री हो गई है।
दरअसल, बिहार में चुनाव तो दो विधानसभा सीटों पर होने वाले हैं लेकिन, सबसे अधिक नजर मोकामा पर है। कई कारण हैं जिसके चलते यह हॉट उसी सलीके है मानो कंगना के कोई बयान सामने आएं हों। या फिर, हिमाचल से सियासी इंट्री के कोई फसाने कि अगर हुकूमत मेरी भागीदारी चाहती है, तो मैं हर तरह की हिस्सेदारी के लिए पूरी तरह से तैयार रहूंगी। अगर हिमाचल प्रदेश की अवाम मुझे अपना खिदमत करने का मौका देती हैं, तो यह मेरे लिए इज्जत की बात होगी। यकीनी तौर पर यह मेरी खुशकिस्मती होगी…यह यूं ही, मानो चिराग पहले से बीजेपी के साथ हों…।
वैसे, मोकामा उसी हॉट सीट की बात सबसे पहले और विशेष तौर पर जहां हरि अनंत, हरि कथा अनंता के बीच यहां रोमांच और उत्तेजना सभी दलों पर हावी है। केंद्र में वही भूमिहार है। क्या वजह है कि बिहार में भूमिहारों के बिना सत्ता का केंद्र निश्चित नहीं होता।
यह रिकॉर्ड तो आज तक कायम है कि अभी तक मोकामा विधान सभा से केवल भूमिहार उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं। इनकी एक लंबी फेहरिस्त है, जिनमें दो बार जगदीश नारायण सिन्हा, एक बार सरयू नंदन सिन्हा, कामेश्वर प्रसाद सिंह, दो बार कृष्ण शाही, दो बार श्याम सुंदर सिंह धीरज, दो बार दिलीप सिंह, एक बार सूरजभान सिंह और चार बार अनंत सिंह चुनाव जीत कर विधान सभा का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
पिछले मुजफ्फरपुर के बोचहां में भी उपचुनाव की लक्ष्मण रेखा भूमिहारों के बिना जीत-हार के झूले पर था। इसबार मोकामा उसी भूमिहारों के भरोसे है जिनकी संख्या एक लाख दस हजार के आसपास है। इसमें सवर्ण भी शामिल हैं।यहां भूमिहार के बाद निर्णायक की भूमिका में धानुक वोटर हैं। नीलम देवी और सोनम देवी दोनों भूमिहार जाति से हैं। मगर इसबार यही भूमिहार खामोशी के लबादा में हैं। कुछ बोल नहीं रहे।
दरअसल, बीजेपी मोकामा विधानसभा चुनाव अपने सहयोगी दल के साथ लड़ते रही है। यह कभी जेडीयू तो कभी एलजेपी उम्मीदवार खड़ा कर अपनी संघटनिक ताकत लगाते रही है। इस बार एनडीए गठबंधन से जेडीयू के चले जाने के कारण बीजेपी ने अपना उम्मीदवार उतारा है।
बीजेपी पहली बार यहां तरकश के सभी तीर इस्तेमाल कर रही। हर मोहल्ले में जाति के हिसाब से किरदार भेजे जा रहे हैं। नीलम देवी के पति अनंत सिंह 2020 के चुनाव में 38 हजार वोटों से जीते थे। जेडीयू प्रत्याशी राजीव लोचन सिंह को यहां हार मिली थी। इसबार नीतीश कुमार वहां प्रचार में नहीं उतरे। कारण भी है, मोकामा का मिजाज इसबार बदला-बदला सा है। समीकरण बदले हुए हैं। भाजपा की साख दांव पर है। हर इलाके में जातीय नेताओं की टीम भेजी जा रही।
बीजेपी के पक्ष में जो बातें समीकरण बनाते दिखती हैं वह यह कि यह क्षेत्र बीजेपी के आधार वोट वाला है। भूमिहार और वैश्य का है। अब तक यहां का भूमिहार वोट उम्मीदवारों के नाम पर बंटता रहा है। इस बार पार्टी आधार को देखते हुए बीजेपी को कितना वोट मिलता है यह बीजेपी के आगे का भी भविष्य तय करने जा रही है। आरजेडी उम्मीदवार के पक्ष में नीतीश कुमार का चुनाव प्रचार नहीं करना भी बीजेपी के पक्ष में जाता दिखता है। उनके न जाने से पिछड़ा और अतिपिछड़ा वोट में बीजेपी सेंध मारी कर सकती है।
राजद के भूमिहार और धानुक वोट के अलावे लगभग चालीस हजार के आसपास दलित वोटर, इसमें बीस हजार के करीब पासवान जाति के वहीं, राजपूत, यादव वोटरों की दस से पंद्रह हजार के बीच की आबादी के बीच मुस्लिम वोटर लगभग तीन से चार हजार हैं, ऐसे में दूसरे जातियों के मिले जुले लगभग 30 से 40 हजार वोटरों में सेंधमारी बीजेपी की चुनौती है।
बीजेपी की सबसे बड़ी मुश्किल अपने आधार वोट को बचाए रखना है। ऐसा इसलिए कि कई साल से भूमिहार वोटों के सहारे अनंत सिंह चार बार विधायक बने हैं। बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती कुर्मी कुशवाहा के साथ धानुक वोट बैंक में सेंधमारी का है। इस वोट बैंक में बीजेपी 50 प्रतिशत भी सेंधमारी कर लेती है तो बीजेपी की स्थिति काफी बेहतर साबित हो सकती है। बीजेपी को दियारा क्षेत्र में अक्सर धानुक और यादव जाति में होते संघर्ष को कैश करना होगा। और यह बीजेपी सूरजभान सिंह की मदद से पाने की कोशिश में है।
मगर, फायदा यही, अनंत सिंह के जेल में कटते दिन, यहां के मतदाताओं को बेहद खल रहे। लग रहा, कोई माय-बाप नहीं। अब, विकास के केंद्र में वोट पड़ेंगे। सड़कों की हालत, रोजगार समेत अन्य जरूरीयात यहां के मुद्दे हैं।