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23 जून, 2024
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दरभंगा पुलिस महकमा के शीर्ष नेतृत्व गठजोड़ का नतीजा…विरमित होने के दो माह बाद भी करते रहे थानेदारी

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दरभंगा, देशज टाइम्स अपराध ब्यूरो प्रमुख। दरभंगा के शीर्ष पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के गठजोड़ का यह छोटा सा नमूना है। पुलिस प्रशासन कैसे स्थानीय स्तर पर चल रही है जबकि पूरा महकमा बड़े ओहदों से भरा है। बावजूद, पुलिस की ऐसी ढ़िली और सुस्त प्रशासनिक व्यवस्था कई सवालों की जननी है।

कई सवाल सीधा उच्च पदस्थ अधिकारियों पर अटैक करते हैं। आखिर, ऐसा कैसे हो सकता है…दूसरे जिला में विरमित होने के बाद कैसे कोई थानेदारी कर सकता है। ऐसा वही कर सकता है जो पुलिस के शीर्ष नेतृत्व का खास हो या फिर उसकी पैठ इतनी मजबूत हो कि धन-बल से वह कुछ भी कर ले। फिलहाल यह खबर पढ़िए Sanjay Kumar Roy की EXCLUSIVEदरभंगा पुलिस महकमा के शीर्ष नेतृत्व गठजोड़ का नतीजा...विरमित होने के दो माह बाद भी करते रहे थानेदारी

पुलिस की कार्यशैली हमेशा से अनुशासनिक रही है। अगर यह व्यवस्था कुछ पुलिस पदाधिकारियों के कारण टूटने लगे तो बिहार पुलिस की बदनामी तो होती ही है। साथ ही, यह व्यवस्था उदंड रूप ले लेती है। और फिर जो होता है। सामने है।

इस कारण सरकार की बदनामी भी होती है। अपराध भी बढ़ते हैं। और, पुलिसिया व्यवस्था भी बदनाम होती है। दरभंगा क्षेत्र में तो जो हो रहा है वह कहा नहीं जा सकता। लेकिन, जो हो रहा है वह विभाग और सरकार पर बड़ा तमाचा है।

अब एक बानगी भर उदाहरण है कि बहादुरपुर और विशनपुर थानाध्यक्ष को मुख्यालय ने 30 अगस्त 22 को विरमित करने का निर्देश दिया था। इस पत्र के आलोक में एसएसपी ने दोनों थानाध्यक्षो को एक सितंबर 22 से विरमित भी कर दिया। लेकिन, यह बस कागजी खानापूर्ति था।

एसएसपी की ओर से विरमित किये जाने की तिथि से करीब दो माह बाद तक दोनों थानेदारी करते रहें। बाद में फिर विरमित किये पत्र को सुधार करते हुये एसएसपी ने तीन नवंबर कर दिया। अब सवाल उठता है कि ये दोनों थानेदार विरमित किये जाने के बाद भी कैसे थानेदारी करते रहें?

 

थानाध्यक्ष विशनपुर पुअनि रंजीत कुमार रजक को दरभंगा जिला से भागलपुर जिला बल में किया गया। वहीं, बहादुरपुर थानाध्यक्ष पुअनि रवींद्र कुमार को दरभंगा जिला बल से गया जिला बल विरमित किया गया है। यही नहीं, दोनों थानाध्यक्ष दागी हैं। फिर भी थानाध्यक्ष पद पर आसीन कैसे हुए?

दरभंगा पुलिस महकमा के शीर्ष नेतृत्व गठजोड़ का नतीजा...विरमित होने के दो माह बाद भी करते रहे थानेदारी यह अपने आप में बड़ा सवाल है। और, सरकार भी कहती है कि दागी छवि वाले को थानाध्यक्ष पद पर आसीन नहीं करें। बावजूद इसके, इन्हें थानाध्यक्ष बनाया गया। यही नहीं विरमित होने की तिथि से अब तक कैसे थानाध्यक्ष पद पर बने रहें, इसपर भी किसी का ध्यान नहीं है और अगर है तो सभी अंजान क्यों हैं, फिर यह भूल सुधार क्यों?

एक नवंबर को हवा में बात चलने लगी कि चार पुअनि को दूसरे जिला के विरमित किया है। इसमें बहादुरपुर और विशनपुर थानाध्यक्ष का नाम शामिल है। सूत्रों पर अगर भरोसा करें तो कहा जा रहा है कि इन दोनों थाना अध्यक्षों से एसपी वरीय पुलिस अधिकारियों का अटूट गठबंधन है। इस कारण ये लोग थानेदारी करते रहे।

सूत्रों का कहना है कि अभी भी दोनों अधिकारी जिला से अपने-अपने योगदान के जिले में नहीं गये हैं। इनकी कोशिश है कि इसी जिला बल में पुनः सामंजस हो जाएं। और, ऐसे पुलिस कर्मी एक दो नहीं बल्कि दर्जनों में हैं, जो दस साल से ऊपर से इसी जिलाबल में बने हुए हैं।

कई तो ऐसे भी हैं, जिनका कार्यकाल 15 से तीस साल तक का इसी जिले में है। इनकी कमाई वेतन से ज्यादा अवैध में है। और, पैसे के बल पर जिलाबल में बने हुए हैं। काली कमाई के बाद वरीय अधिकारियों के ताल-मेल से या अपनी जड़ें मजबूत किये हुये हैं।

सूत्रों का कहना है कि काली कमाई का हिस्सा ऊपर तक जाता है। चर्चा तो यहां तक है कि पोस्टिंग में भी बड़ा खेल बेल है। और, यह गठजोड़ दरभंगा ही नहीं समस्तीपुर और मधुबनी जिले तक है। बरह्हाल, पुलिस विभाग में अगर कागजी खानापूर्ति होती रही तो अनुशासनिक व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। और, ऐसा देखने को मिल भी रहा है।

दरभंगा में वरीय पुलिस अधिकारियों की गलत नीति और उनके कुव्यवस्था के कारण ऐसा लग रहा है कि इस क्षेत्र का पुलिसिया गठजोड़ पूर्णियां कांड से कम नहीं है। काली करतूतों के इतने कांड हैं जो धीरे-धीरे बाहर निकल रहें हैं। इसी का आलम यह है कि डीजीपी और एडीजी मुख्यालय के निर्देशों को भी यहां के वरीय पुलिस अधिकारी धत्ता बताते रहे हैं। और हद यह, ऊपरी महकमा सोया है। शायद खोट…?

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