दिल फसुरदा तो हुआ देख के उसको, लेकिन उम्र भर कौन जवां, कौन हंसी रहता है। पर एक हैं बाबा, जो हर दिल का शायर, धड़कन, प्यार का फरिश्ता है। जिसकी आहट से गुनगुनाती हुई आती है, फलक से बूंदें, लगता है कोई बदली उसकी पाजेब से टकरायी है।
जी हां, वहीं फरिश्ता वैलेंटाइन बाबा, जो आसमां से उतरेंगे हमारे बीच अगाध प्यार की सौगात लेकर। वो सौगात, जिसमें है उन्मुक्ता, मस्ती, उन्माद, उल्लास, उमंग व नवसृजन की ताकत।
यानी मदनोत्सव, जिसे तूलिका बनाकर युवा वैलेंटाइन डे पर लिखेंगे दुलार का नवगीत। प्यार का पहला खत। माधुर्य, लावण्य सिंदुरी लाल रंग से सजाएंगे सेज। प्रेयसी का करेंगे तहे दिल से स्वागत।
गुलमोहरी, रजनीगंधा के मनमोहक खुशबू में लवरेज। खुली बाहों से रात की चांदनी में दुपट्टे को जुल्फों के साये में लिपटाएंगे। धूप सेंकती कलियों को तोड़कर बिछायेंगे मखमली चादर। आगोश में सारा आकाश सहेजकर जिंदगी भर का स्नेह,रस्म निभायेंगे।
इस उम्मीद, विश्वास के साथ कि थक गया हूं करते-करते याद तुमको, अब तुम्हें में याद आना चाहता हूं। जिस याद में उस ईश्वर रूपी प्रेमी पर भरोसा भी होगा, सुकून भी कि खफा जो आज है वो कल किसी बहाने से, गले में फूल सी बाहें भी डाल सकता है।
उस कंधे का भरोसा भी जिसके सहारे प्यार आज भी जिंदा है। प्यार कोई मजहब नहीं होता। मंदिरों में बजते शंख या मस्जिद में अजान का नाम ही है प्यार। प्यार बच्चे की मुस्कुराहट में है। प्रेयसी की शर्मिली आंखों में बसने का नाम है प्यार। तभी मोबाइल की घंटी बजती है।
जवाब मिलता है, अरे बेशरम…रंग का मतलब तलाश रहे हो। अमुआ-महुआ की झूमती डालियों में धर्म तलाश रहे हो। सरसराती खेतों की हरियाली में बिस्तर बिछाने की चाहत है। चारों ओर फूलों की रंगोली को संप्रदाय में बांटने की कोशिश कर रहे हो। फागुन की गीतों में प्रकृति की अठखेलियां पलाश, टेसू, चंपा, चमेली, निखरती धूप,रंगों की जोली, प्रकृति की रंग-बिरंगे परिधानों में, शाखाओं की थाप पर थिरकती टोलियों में, सर्द हवाओं के धूप संग अंगड़ाइयों में मजहब तलाश रहे हो। पर्वतों पर झरनों की हंसी, नदियों को रंगती सागर के चहरे की लाली में नायिका के अंग उसके प्रत्यंग, उसके अवयव, उसके निस्तारण, उसके मुड़ते-सिकुड़ते लोच निहार रहे हो…
मगर आप हैं कौन…पूछता हूं हैलो कौन? कौन बोल रहा है, जवाब मिलता है-बच्चा मुझे नहीं पहचाना। मैं बाबा वैलेंटाइन बोल रहा हूं। क्या जीवन के रहस्य के बारे में नहीं जानोगे। मैंने कहा, बाबा जीवन का मूल मंत्र जानने के लिये न जाने कितने वैलेंटाइन डे गुजार दिये लेकिन बाबा अब भी अज्ञान हूं। बाबा बोलने लगे-सुन, जीवन का मूल मंत्र है प्रेम व प्यार। जितना प्रेम बांटोगे उतना ही प्यार पाओगे। इसी प्रेम व प्यार के रस में राग भी है तो लय भी। ताल है तो सुर भी। कहीं कृष्ण की बांसुरी पर मुग्ध राधा है तो कहीं राम के धनुष के टंकार में सीता का वरण भी है प्यार। दुर्गा की तेज रूप को बाहों में सहेजने की चाह में महिषासुर भी है तो श्याम की याद में तड़पती मीरा की विरह-वेदना भी प्यार है।
प्यार महज वो अहसास भर है जिसके क्षणिक आवेग में ही समस्त जीवन,ऊर्जा का समावेश हो जाता है। रामायण, महाभारत का उपदेश, गीता के शब्द, कुरान का ज्ञान, बाइबिल के अक्षर, बुद्ध का संदेश या भीष्म की प्रतिज्ञा भी तो प्यार ही है बच्चे। बाबा बोलते गये।
प्यार स्वच्छंद गति में अवतरित वो खुशबू है जिसे कभी गुलाबों की पंखुडिय़ों में शहद तलाशते तितलियों की गुनगुनाहट, कभी हवाओं के फरेब से दरवाजे पर कोई दस्तक कि शायद वो आ गया हो हमारे करीब। बाबा वैलेंटाइन के शब्दों में मैं खोता, मुग्ध होते जा रहा था। बाबा बोलते जा रहे थे-प्यार की सरिता सरस्वती की वीणा में है। गुरु नानक की वाणी में है। उस बसंत में है जब लता-वल्लरियां लहलहा जाती है। खेतों में पीले फूल नतमस्तक हो जाते हैं। पेड़-पौधों में नयी कोपलें फूटने लगती है।
शायद खामोश जिंदगी को शब्द देने का नाम ही है प्यार। ऊबड़-खाबड़ जिंदगी में चुप रहकर किसी समतल की तलाश या जुवां खोलकर किसी उजड़ी हुई बस्ती को फिर से बसा देखना ही है प्यार। किसी अपने को खो देने के बाद फिर से उसका सामीप्य पाना ही प्यार की परिभाषा, जीत है।
देर तलक किसी को जाते हुये देखना अच्छा लगे कि कोई मुड़कर देख ले दोबारा या इशारों में सायों की लकीरें खींचकर एहसास को पुख्ता कर दे। शायद, कोई लौट आये अपनी पुरानी हवेली में या किसी झाड़ फानुस के समान बेच दिया जाये बाजारों में। यह कहते-कहते बाबा चुप हो गये। मैंने पूछा बाबा चुप क्यों हो गये। एक तो इतने दिनों बाद बात कर रहे हो और कुछ बताओ न बाबा वैलेंटाइन। पता नहीं फिर कब आसमां से उतरोगे। बाबा बोले, बेटा मैं अब दोबारा प्यार का पैगाम बांटने नहीं आ सकता।
बहुत दिनों से दिली इच्छा थी तुमसे बात करने की सो फोन कर लिया। मैं बाबा की बातें सुनकर बेचैन हो उठा। कहा, ऐसा मत कहो बाबा। पर वो मानने को तैयार नहीं हुये कहा मेरा नंबर मोबाइल में मत रखना। मेरा मन इस जमीन पर अब नहीं लगता जहां प्यार की खुलेआम मार्केटिंग होने लगे।
आवो-हवा में प्यार के नाम पर नये-नये फ्लेवर के कंडोम का गंध पूरे समाज को गंदा कर दे। जहां पश्चिमी सभ्यता की भाषा, खुलापन महानगरों से लेकर छोटे शहरों व गांवों की पगडंडियों तक गंदा खेल खेले। जोड़े खुलेआम मदमस्त अंगड़ाई ले। कुसंस्कृति के बीच प्यार का जहां नाटक खेला जाता हो। वहां मैं कैसे रहूंगा। पर बाबा देखो फोन काटना मत एक बात बताते जाना।
बाबा ने कहा बस इतना ही कहूंगा-उम्मीद है इस वैलेंटाइन डे पर यकीं है तुम यह मेरा संदेश लोगों तक पहुंचा देना- ना आयेगा कोई दोबारा स्वर्ग से, इस नरक की जिंदगी को बेहतर संवार दिया जाये। यह कहते-कहते बाबा मेरे फोन पर अवतरित हो उठे कहा- परेशान मत हो, आओ मिल-बैठकर बांटते हैं प्यार। गाते हैं खुशी के गीत कि शायद मां के आंचल से, बहन की राखी व वैलेंटाइन बाबा के दोबारा स्वर्ग से उतरने तक हम यूं ही मर्यादित, सुसंस्कृत बनें रहें। मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करते कहा-जय वैलेंटान बाबा।